टूस (मंदेसर) उदयपुर: Difference between revisions

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टूस, [[राजस्थान]], [[उदयपुर]] के समीप बेड़च नदी के तट पर स्थित है तथा यहाँ का [[सूर्य देवता|सूर्य]] मंदिर मूर्तिकला परंपरा के अध्ययन में विशेष महत्व रखता है। वैष्णव संप्रदाय की तुलना में सूर्य पूजा का [[मेवाड़]] क्षेत्र में कम प्रचलन था। कुछ मंदिर, जो प्रारंभ में सूर्य पूजा के लिए बनाये गये थे, उनमें समय के साथ धीरे- धीरे [[विष्णु]] या [[लक्ष्मीनारायण]] की पूजा होने लगी थी।
[[उदयपुर]], [[राजस्थान]] का एक ख़ूबसूरत शहर है। और [[उदयपुर पर्यटन]] का सबसे आकर्षक स्थल माना जाता है। वैष्णव संप्रदाय की तुलना में सूर्य पूजा का [[मेवाड़]] क्षेत्र में कम प्रचलन था। कुछ मंदिर, जो प्रारंभ में सूर्य पूजा के लिए बनाये गये थे, उनमें समय के साथ धीरे- धीरे [[विष्णु]] या [[लक्ष्मीनारायण]] की पूजा होने लगी थी।


टूस का सूर्य मंदिर सौर- संप्रदाय की एकांतिक पूजा के लिए बना प्रतीत होता है, क्योंकि पूरे मंदिर में किसी अन्य देव की प्रतिमा उत्कीर्ण नहीं है। इस मंदिर के शिखर तथा मंडप चूने के पलस्तर से दुबारा निर्मित हुए हैं तथा इसका शिखर सपाट है। सभामण्डल अष्टकोणीय ग़ुम्बदाकार छत से ढकी हुयी है, जिसमें कोष्टक बने है। इन कोष्टकों में हाथी के सिर पर आरुढ़ अप्सराएँ तथा मातृका मूर्तियाँ अंकित की गई है।
टूस का सूर्य मंदिर सौर- संप्रदाय की एकांतिक पूजा के लिए बना प्रतीत होता है, क्योंकि पूरे मंदिर में किसी अन्य देव की प्रतिमा उत्कीर्ण नहीं है। इस मंदिर के शिखर तथा मंडप चूने के पलस्तर से दुबारा निर्मित हुए हैं तथा इसका शिखर सपाट है। सभामण्डल अष्टकोणीय ग़ुम्बदाकार छत से ढकी हुयी है, जिसमें कोष्टक बने है। इन कोष्टकों में हाथी के सिर पर आरुढ़ अप्सराएँ तथा मातृका मूर्तियाँ अंकित की गई है।

Revision as of 05:57, 28 October 2010

उदयपुर, राजस्थान का एक ख़ूबसूरत शहर है। और उदयपुर पर्यटन का सबसे आकर्षक स्थल माना जाता है। वैष्णव संप्रदाय की तुलना में सूर्य पूजा का मेवाड़ क्षेत्र में कम प्रचलन था। कुछ मंदिर, जो प्रारंभ में सूर्य पूजा के लिए बनाये गये थे, उनमें समय के साथ धीरे- धीरे विष्णु या लक्ष्मीनारायण की पूजा होने लगी थी।

टूस का सूर्य मंदिर सौर- संप्रदाय की एकांतिक पूजा के लिए बना प्रतीत होता है, क्योंकि पूरे मंदिर में किसी अन्य देव की प्रतिमा उत्कीर्ण नहीं है। इस मंदिर के शिखर तथा मंडप चूने के पलस्तर से दुबारा निर्मित हुए हैं तथा इसका शिखर सपाट है। सभामण्डल अष्टकोणीय ग़ुम्बदाकार छत से ढकी हुयी है, जिसमें कोष्टक बने है। इन कोष्टकों में हाथी के सिर पर आरुढ़ अप्सराएँ तथा मातृका मूर्तियाँ अंकित की गई है।

राजस्थान के अन्य मंदिरों की तुलना में इस मंदिर के गर्भगृह के बाह्य ताखों की सभी मूर्तियाँ आकार में बड़ी है। इसके अंतराल की बाह्य भित्ति पर भी सूर्य की एक विचित्र प्रतिमा है, जिसे दो स्त्री मूर्तियों के साथ उत्कीर्ण किया गया है। इन स्त्रियों का अंकन सूर्यदेव की पत्नी के रुप में कम तथा अप्सरा मूर्तियों की मुद्रा में अधिक प्रतीत होता है।

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