पानीपत युद्ध: Difference between revisions

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उत्तर [[भारत]] के इतिहास में महत्वपूर्ण तीन युद्ध [[दिल्ली]] से 80 किमी. उत्तर में स्थित पानीपत के घुड़सवारों के अनुकूल समतल मैदान में लड़े गए थे। जो इस प्रकार है:-
उत्तर [[भारत]] के इतिहास में महत्त्वपूर्ण तीन युद्ध [[दिल्ली]] से 80 किमी. उत्तर में स्थित पानीपत के घुड़सवारों के अनुकूल समतल मैदान में लड़े गए थे। जो इस प्रकार है:-
*पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1526 ई0),
*पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1526 ई0),
*पानीपत का द्वितीय युद्ध (5 नवम्बर, 1556),
*पानीपत का द्वितीय युद्ध (5 नवम्बर, 1556),

Revision as of 13:36, 4 January 2011

thumb|250px|पानीपत युद्ध उत्तर भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण तीन युद्ध दिल्ली से 80 किमी. उत्तर में स्थित पानीपत के घुड़सवारों के अनुकूल समतल मैदान में लड़े गए थे। जो इस प्रकार है:-

  • पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1526 ई0),
  • पानीपत का द्वितीय युद्ध (5 नवम्बर, 1556),
  • पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी, 1761)।

पानीपत का प्रथम युद्ध

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

यह पानीपत का प्रथम युद्ध था। यह युद्ध सम्भवतः बाबर की महत्वाकांक्षी योजनाओं की अभिव्यक्ति थी। यह युद्ध दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी (अफ़ग़ान) एवं बाबर के मध्य लड़ा गया। 12 अप्रैल, 1526 ई0 को दोनों सेनायें पानीपत के मैदान में आमने-सामने हुईं पर दोनों मध्य युद्ध का आरम्भ 21 अप्रैल को हुआ। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध का निर्णय दोपहर तक ही हो गया। युद्ध में इब्राहीम लोदी बुरी तरह से परास्त हुआ।

पानीपत का द्वितीय युद्ध

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवम्बर, 1556 ई0 को अफ़ग़ान बादशाह आदिलशाह सूर के योग्य हिन्दू सेनापति और मंत्री हेमू और अकबर के बीच हुई, जिसने अपने पिता हुमायूँ से दिल्ली से तख़्त पाया था। हेमू के पास अकबर से कहीं अधिक बड़ी सेना तथा 1,500 हाथी थे।

पानीपत का तृतीय युद्ध

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई0 को अफ़ग़ान आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली और मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय के संरक्षक और सहायक मराठों के बीच हुई। इस लड़ाई में मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ अफ़ग़ान सेनापति अब्दाली से लड़ाई के दाँव-पेचों में मात खा गया। अवध का नवाब शुजाउद्दौला और रुहेला सरदार नजीब ख़ाँ अब्दाली का साथ दे रहे थे। अब्दाली ने घमासान युद्ध के बाद मराठा सेनाओं को निर्णयात्मक रूप से हरा दिया। सदाशिव राव भाऊ, पेशवा के होनहार तरुण पुत्र और अनेक मराठा सरदारों ने युद्धभूमि में वीरगति पायी। इस हार से मराठों की राज्यशक्ति को भारी धक्का लगा। युद्ध के छह महीने बाद ही भग्नहृदय पेशवा बालाजीराव की मृत्यु हो गयी।


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