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*[[गीता]]<ref>गीता (10.35 | *[[गीता]]<ref>गीता (10.35</ref> में स्वयं भगवान ने कहा है '''मासाना मार्गशीर्षोऽयम्'''। | ||
*[[सत युग]] में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया। | *[[सत युग]] में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया। | ||
*इसी मास में [[कश्यप]] ऋषि ने सुन्दर [[कश्मीर]] प्रदेश की रचना की। इसलिए इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए। | *इसी मास में [[कश्यप]] ऋषि ने सुन्दर [[कश्मीर]] प्रदेश की रचना की। इसलिए इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए। | ||
*मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए। | *मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए। | ||
*प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के [[केशव (विष्णु)|केशव]] से [[दामोदर]] तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुँच जाता है, जहाँ फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।<ref> (अनुशासन, अध्याय 10-, बृ. सं. 104.14-16 | *प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के [[केशव (विष्णु)|केशव]] से [[दामोदर]] तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुँच जाता है, जहाँ फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।<ref> (अनुशासन, अध्याय 10-, बृ. सं. 104.14-16</ref> | ||
*मार्गशीर्ष की [[पूर्णिमा]] को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था। | *मार्गशीर्ष की [[पूर्णिमा]] को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था। | ||
*इस दिन गौओं का नमक दिया जाए, तथा माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। | *इस दिन गौओं का नमक दिया जाए, तथा माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। |
Revision as of 12:55, 27 July 2011
- हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के नवम माह का नाम मार्गशीर्ष है। इस माह को अगहन भी कहा जाता है।
- मार्गशीर्ष का सम्पूर्ण मास अत्यन्त पवित्र माना जाता है।
- मास भर बड़े प्रात:काल भजन मण्डलियाँ भजन तथा कीर्तन करती हुई निकलती हैं।
- गीता[1] में स्वयं भगवान ने कहा है मासाना मार्गशीर्षोऽयम्।
- सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया।
- इसी मास में कश्यप ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की। इसलिए इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए।
- मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारम्भ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए।
- प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुँच जाता है, जहाँ फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।[2]
- मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था।
- इस दिन गौओं का नमक दिया जाए, तथा माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए।
- इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर एक उत्सव भी किया जाना चाहिए।
- मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही 'दत्तात्रेय जयन्ती' मनायी जानी चाहिए।[3]
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