गांधार महाजनपद: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replace - "यहां" to "यहाँ") |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replace - "काफी" to "काफ़ी") |
||
Line 34: | Line 34: | ||
[[अंगुत्तरनिकाय]] के अनुसार [[बुद्ध]] तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था। [[अलक्ष्येन्द्र|सिकन्दर]] के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि। [[मौर्य काल|मौर्य साम्राज्य]] में संपूर्ण गंधार देश सम्मिलित था। कुषाण साम्राज्य का भी वह एक अंग था। कुषाण काल में ही यहाँ की नई राजधानी पुरुषपुर या पेशावर में बनाई गई। इस काल में तक्षशिला का पूर्व गौरव समाप्त हो गया था। [[गुप्त काल]] में गंधार शायद गुप्तों के साम्राज्य के बाहर था क्योंकि उस समय यहाँ यवन, शक आदि बाह्यदेशीयों का आधिपत्य था। | [[अंगुत्तरनिकाय]] के अनुसार [[बुद्ध]] तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था। [[अलक्ष्येन्द्र|सिकन्दर]] के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि। [[मौर्य काल|मौर्य साम्राज्य]] में संपूर्ण गंधार देश सम्मिलित था। कुषाण साम्राज्य का भी वह एक अंग था। कुषाण काल में ही यहाँ की नई राजधानी पुरुषपुर या पेशावर में बनाई गई। इस काल में तक्षशिला का पूर्व गौरव समाप्त हो गया था। [[गुप्त काल]] में गंधार शायद गुप्तों के साम्राज्य के बाहर था क्योंकि उस समय यहाँ यवन, शक आदि बाह्यदेशीयों का आधिपत्य था। | ||
---- | ---- | ||
7वीं शती ई॰ में गंधार के अनेक भागों में [[बौद्ध]] धर्म | 7वीं शती ई॰ में गंधार के अनेक भागों में [[बौद्ध]] धर्म काफ़ी उन्नत था। 8वीं-9वीं शतियों में मुसलमानों के उत्कर्ष के समय धीरे-धीरे यह देश उन्हीं के राजनैतिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव में आ गया। 870 ई॰ में अरब सेनापति याकूब एलेस ने [[अफ़ग़ानिस्तान]] को अपने अधिकार में कर लिया लेकिन इसके बाद काफ़ी समय तक यहाँ हिन्दू तथा बौद्ध अनेक क्षेत्रों में रहते रहे। अलप्तगीन और सुबुक्तगीन के हमलों का भी उन्होंने सामना किया। 990 ई॰ में लमगान (प्राचीन लंपाक) का क़िला उनके हाथों से निकल गया और इसके बाद काफिरिस्तान को छोड़कर सारा अफ़ग़ानिस्तान मुसलमानों के धर्म में दीक्षित हो गया। | ||
Revision as of 13:45, 6 May 2010
गांधार / गंधार / Gandhar
अन्य सम्बंधित लेख |
पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक। पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र। इसे आधुनिक कंदहार से जोड़ने की गलती कई बार लोग कर देते हैं जो कि वास्तव में इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। इस प्रदेश का मुख्य केन्द्र आधुनिक पेशावर और आसपास के इलाके थे। इस महाजनपद के प्रमुख नगर थे - पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी । इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहाँ बौद्ध धर्म बहुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया।
इस प्रदेश का उल्लेख महाभारत और अशोक के शिलालेखों में मिलता है। महाभारत के अनुसार धृतराष्ट्र की रानी और दुर्योधन की माता गांधारी गंधार की राजकुमारी थीं। आजकल यह पाकिस्तान के रावलपिंडी और पेशावर जिलों का क्षेत्र है। तक्षशिला और पुष्कलावती यहीं के प्रसिद्ध नगर थे। अशोक के साम्राज्य का अंग रहने के बाद कुछ समय यह फारस के और कुषाण राज्य के अंतर्गत रहा। यह पूर्व और पश्चिम के सांस्कृतिक संगम का स्थल था और यहाँ कला की 'गांधार शैली' का जन्म हुआ।
thumb|300px|गांधार महाजनपद
Gandhar Great Realm
सिंधुनदी के पूर्व और उत्तरपश्चिम की ओर स्थित प्रदेश। वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी भाग भी इसमें सम्मिलित था। ॠग्वेद में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है तथा उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है और अथर्ववेद में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है-
'उपोप मे परामृश मा में दभ्राणिमन्यथा:,
सर्वाहमस्मि रोमशा गंधारीणामिवाविका'<balloon title="ऋग्वेद 1,126,18;" style="color:blue">*</balloon>
'गंधारिम्यों मूजवद्भ्योड् गेभ्यो मगधेभ्य:
प्रैष्यन् जनमिव शेवधिं तक्मानं परिदद्मसिं <balloon title="अथर्ववेद 5,22,14 ।" style="color:blue">*</balloon>
अथर्ववेद में गंधारियों की गणना अवमानित जातियों में की गई है किंतु परवर्ती काल में गंधारवासियों के प्रति मध्यदेशीयों का दृष्टिकोण बदल गया और गंधार में बड़े विद्वान पंडितों ने अपना निवास-स्थान बनाया। तक्षशिला गंधार की लोकविश्रुत राजधानी थी।
छान्दोग्य उपनिषद में उद्दालक-अरुणि ने गंधार का, सद्गुरु वाले शिष्य के अपने अंतिम लक्ष्य पर पहुंचने के उदाहरण के रूप में उल्लेख किया है। जान पड़ता है कि छांदोग्य के रचयिता का गंधार से विशेष रूप से परिचय था।
शतपथ ब्राह्मण <balloon title="शतपथ ब्राह्मण 12,4,1" style="color:blue">*</balloon> तथा अनुगामी वाक्यों में उद्दालक अरुणि का उदीच्यों या उत्तरी देश (गंधार) के निवासियों से संबंध बताया गया है। पाणिनि ने जो स्वयं गंधार के निवासी थे, तक्षशिला का <balloon title="शतपथ ब्राह्मण 4,3,93" style="color:blue">*</balloon> उल्लेख किया है। ऐतिहासिक अनुश्रुति में कौटिल्य को तक्षशिला महाविद्यालय का ही रत्न बताया गया है। वाल्मीकि ने रामायण <balloon title="रामायण उत्तर- 101,11" style="color:blue">*</balloon> में गंधर्वदेश की स्थिति गांधार विषय के अंतर्गत बताई गई है। कैकय देश इस के पूर्व में स्थित था। केकय-नरेश युधाजित के कहने से अयोध्यापति रामचंद्र जी के भाई भरत ने गंधर्व देश को जीतकर यहाँ तक्षशिला और पुष्कलावती नगरियों को बसाया था।
महाभारत काल में गंधार देश का मध्यदेश से निकट संबंध था। धृतराष्ट्र की पत्नी गंधारी, गंधार की ही राजकन्या थी। शकुनि इसका भाई था। जातकों में कश्मीर और तक्षशिला-दोनों की स्थिति गंधार में मानी गई है। जातकों में तक्षशिला का अनेक बार उल्लेख है। जातककाल में यह नगरी महाविद्यालय के रूप में भारत भर में प्रसिद्ध थी। पुराणों में <balloon title="(मत्स्य पुराण, 48, 6 वायु पुराण, 99,9)" style="color:blue">*</balloon> गंधार नरेशों को द्रुहयु का वंशज माना। वायु पुराण में गंधार के श्रेष्ठ घोड़ों का उल्लेख है।
अंगुत्तरनिकाय के अनुसार बुद्ध तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि। मौर्य साम्राज्य में संपूर्ण गंधार देश सम्मिलित था। कुषाण साम्राज्य का भी वह एक अंग था। कुषाण काल में ही यहाँ की नई राजधानी पुरुषपुर या पेशावर में बनाई गई। इस काल में तक्षशिला का पूर्व गौरव समाप्त हो गया था। गुप्त काल में गंधार शायद गुप्तों के साम्राज्य के बाहर था क्योंकि उस समय यहाँ यवन, शक आदि बाह्यदेशीयों का आधिपत्य था।
7वीं शती ई॰ में गंधार के अनेक भागों में बौद्ध धर्म काफ़ी उन्नत था। 8वीं-9वीं शतियों में मुसलमानों के उत्कर्ष के समय धीरे-धीरे यह देश उन्हीं के राजनैतिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव में आ गया। 870 ई॰ में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफ़ग़ानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया लेकिन इसके बाद काफ़ी समय तक यहाँ हिन्दू तथा बौद्ध अनेक क्षेत्रों में रहते रहे। अलप्तगीन और सुबुक्तगीन के हमलों का भी उन्होंने सामना किया। 990 ई॰ में लमगान (प्राचीन लंपाक) का क़िला उनके हाथों से निकल गया और इसके बाद काफिरिस्तान को छोड़कर सारा अफ़ग़ानिस्तान मुसलमानों के धर्म में दीक्षित हो गया।