पुण्ड्रवर्धन: Difference between revisions
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'''पुण्ड्रवर्धन''' का उल्लेख [[गुप्तकाल|गुप्तकालीन]] [[अभिलेख|अभिलेखों]] में हुआ है। इन अभिलेखों से सूचित होता है कि [[गुप्त साम्राज्य]] में 'पुण्ड्रवर्धन' नाम की एक 'भुक्ति'<ref>किसी वस्तु पर अधिकार रखकर उसका उपयोग करने की स्थिति</ref> थी, जो 'पुंड्र देश' के अंतर्गत आती थी। इसमें [[कोटिवर्ष]] आदि अनेक वर्ष सम्मलित थे। इन ताम्रपट्ट लेखों से सूचित होता है कि लगभग समग्र उत्तरी [[बंगाल]] या पुंड्र देश, पुंड्रवर्धन भुक्ति में सम्मलित था और यह 443 ई. से 543 ई. तक गुप्त साम्राज्य का अविछिन्न अंग था। | |||
*यहाँ के शासक 'उपरिक महाराज' की उपाधि धारण करते थे और इन्हें गुप्त नरेश नियुक्त करते थे। | |||
*[[कुमारगुप्त प्रथम]] के समय में उपरिक चिरातदत्त को पुण्ड्रवर्धन का शासक नियुक्त किया गया था और [[बुधगुप्त]] के समय<ref> 163 गुप्त सम्वत या 483-484 ई.</ref> में यहाँ का शासक [[ब्रह्मदत्त]] था। | |||
*सम्भवत: पुण्ड्रवर्धन भुक्ति का प्रधान नगर वर्तमान [[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]] के निकट रहा होगा। | |||
*[[भारत]] के [[बिहार|बिहार राज्य]] के [[पूर्णिया ज़िला|पूर्णिया ज़िले]] में [[मौर्य]] सम्राट [[अशोक]] के [[स्तूप]] हैं। पूर्व में बंगाल तक [[मौर्य साम्राज्य]] के विस्तृत होने की पुष्टि 'महास्थान शिलालेख' से होती है। यह अभिलेख [[ब्राह्मी लिपि]] में है और [[मौर्य काल]] का माना जाता है। | |||
*[[महावंश]] के अनुसार [[अशोक]] अपने पुत्र को विदा करने के लिए [[ताम्रलिप्ति]] तक आया था। | |||
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Latest revision as of 12:36, 5 October 2012
पुण्ड्रवर्धन का उल्लेख गुप्तकालीन अभिलेखों में हुआ है। इन अभिलेखों से सूचित होता है कि गुप्त साम्राज्य में 'पुण्ड्रवर्धन' नाम की एक 'भुक्ति'[1] थी, जो 'पुंड्र देश' के अंतर्गत आती थी। इसमें कोटिवर्ष आदि अनेक वर्ष सम्मलित थे। इन ताम्रपट्ट लेखों से सूचित होता है कि लगभग समग्र उत्तरी बंगाल या पुंड्र देश, पुंड्रवर्धन भुक्ति में सम्मलित था और यह 443 ई. से 543 ई. तक गुप्त साम्राज्य का अविछिन्न अंग था।
- यहाँ के शासक 'उपरिक महाराज' की उपाधि धारण करते थे और इन्हें गुप्त नरेश नियुक्त करते थे।
- कुमारगुप्त प्रथम के समय में उपरिक चिरातदत्त को पुण्ड्रवर्धन का शासक नियुक्त किया गया था और बुधगुप्त के समय[2] में यहाँ का शासक ब्रह्मदत्त था।
- सम्भवत: पुण्ड्रवर्धन भुक्ति का प्रधान नगर वर्तमान रंगपुर के निकट रहा होगा।
- भारत के बिहार राज्य के पूर्णिया ज़िले में मौर्य सम्राट अशोक के स्तूप हैं। पूर्व में बंगाल तक मौर्य साम्राज्य के विस्तृत होने की पुष्टि 'महास्थान शिलालेख' से होती है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है और मौर्य काल का माना जाता है।
- महावंश के अनुसार अशोक अपने पुत्र को विदा करने के लिए ताम्रलिप्ति तक आया था।
- ह्वेनसांग को भी ताम्रलिप्ति, कर्णसुवर्ण, समतट, पूर्वी बंगाल तथा पुण्ड्रवर्धन में अशोक के स्तूप देखने को मिले थे।
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