विषाद मठ -रांगेय राघव: Difference between revisions
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Revision as of 05:44, 24 January 2013
विषाद मठ -रांगेय राघव
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लेखक | रांगेय राघव | |
प्रकाशक | किताबघर प्रकाशन | |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2006 | |
ISBN | 81-7016-609-8 | |
देश | भारत | |
भाषा | हिन्दी | |
प्रकार | उपन्यास | |
टिप्पणी | पुस्तक क्रं = 3374 |
'विषाद मठ' प्रसिद्ध साहित्यकार, कहानीकार और उपन्यासकार रांगेय राघव द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह उपन्यास 1 जनवरी, 2006 को प्रकाशित हुआ था, और इसे 'किताबघर प्रकाशन' द्वारा प्रकाशित किया गया था। रांगेय राघव के अनुसार - 'जब मुगलों का राज्य समाप्त होने को आया था तब बंगाल की हरी-भरी धरती पर अकाल पड़ा था। उस पर बंकिमचंद्र चटर्जी ने ‘आनंद मठ’ लिखा था। जब अँग्रेजों का राज्य समाप्त होने पर आया तब फिर बंगाल की हरी-भरी धरती पर अकाल पड़ा। उसका वर्णन करते हुए मैंने इसलिए इस पुस्तक को ‘विषाद मठ’ नाम दिया।'[1]
- प्रस्तुत उपन्यास तत्कालीन जनता का सच्चा इतिहास है।
- इसमें एक भी अत्युक्ति नहीं, कहीं भी ज़बर्दस्ती अकाल की भीषणता को गढ़ने के लिए कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं। जो कुछ है, यदि सामान्य रुप से दिमाग में, बहुत अमानुषिक होने के कारण, आसानी से नहीं बैठता, तब भी अविश्वास की निर्बलता दिखाकर ही इतिहास को भी तो फुसलाया नहीं जा सकता।
- ‘विषाद मठ’ हमारे भारतीय साहित्य की महान परंपरा की एक छोटी-सी कड़ी है। जीवन अपार है, अपार वेदना भी है, किंतु यह श्रृंखला भी अपना स्थायी महत्त्व रखती है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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