विधवा विवाह: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " कदम " to " क़दम ") |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
||
Line 16: | Line 16: | ||
*[http://days.jagranjunction.com/2011/09/26/ishwar-chandra-vidyasagar-full-profile/ नारी उत्थान के समर्थक ईश्वर चंद्र विद्यासागर] | *[http://days.jagranjunction.com/2011/09/26/ishwar-chandra-vidyasagar-full-profile/ नारी उत्थान के समर्थक ईश्वर चंद्र विद्यासागर] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{सामाजिक प्रथाएँ}} | {{सामाजिक प्रथाएँ}}{{विवाह}} | ||
[[Category:विवाह]] | |||
[[Category:प्राचीन समाज]] | [[Category:प्राचीन समाज]] | ||
[[Category:सामाजिक प्रथाएँ]] | [[Category:सामाजिक प्रथाएँ]] |
Revision as of 10:00, 9 April 2013
विधवा से तात्पर्य ऐसी महिला से है जिसके विवाह उपरांत उसके पति का देहांत हो गया हो और वह वेध्वय जीवन व्यतीत कर रही हो। कुलीन वर्गीय ब्राह्मणों में यह व्यवस्था थी कि पत्नी के निधन हो जाने पर वह किसी भी आयु में दूसरा विवाह कर सकते हैं। यह आयु वृद्धावस्था भी हो सकती थी। पत्नी के रूप वह किशोरवय लड़की का चयन करते थे और जब उनकी मृत्यु हो जाती थी तो उस विधवा को समाज से अलग कर उसके साथ पाशविक व्यवहार किया जाता था। जो महिलाएं इस तरह के व्यवहार को सहन नहीं कर पाती थीं, वह खुद को समर्थन देने के लिए वेश्यावृत्ति की ओर क़दम बढ़ा लेती थीं। विधवा विवाह को बेहद घृणित दृष्टि से देखा जाता था। इसी कारण बंगाल में महिलाओं विशेषकर बाल विधवाओं की स्थिति बेहद दयनीय थी।
- ब्राह्मण, उच्च राजपूत, महाजन, ढोली, चूड़ीगर तथा सांसी जातियों में विधवा विवाह वर्जित था। अन्य जातियों में विधवा विवाह प्रचलित थे। विधवा विवाह को "नाता' के नाम से पुकारा जाता था। विधवा को विवाह करने से पूर्व मृतक पति के घर वालों से "फारगती' (हिसाब का चुकाना) करना आवश्यक था। फारगती के लिए मालियों में 16 से 50 रुपये तक एवं भाटों में 50 रुपये देने का रिवाज था।
- विधवा के द्वारा ऐसा न करने पर जाति पंचायत एवं सरकार द्वारा जुर्माना किया जाता था। उदाहरण स्वरुप कोटा के राजा मीना ने फारगती नहीं की थी, अत: सरकार ने उस पर 10 रुपये जुर्माना किया था। विधवा विवाह में भी धन का लेन-देन होता था। पेशेवर तथा निम्न जातियों की स्त्रियाँ पति के जीवित होते हुए भी धन के लालच में किसी अन्य से "नाते' चली जाती थी। नाते सो जो संतान पैदा होती थी वो वैध समझी जाती थी।
- वर्ष 1853 में हुए एक अनुमान के अनुसार कोलकाता में लगभग 12,718 वेश्याएं रहती थी। ईश्वर चंद्र विद्यासागर उनकी इस हालत को परिमार्जित करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे। अक्षय कुमार दत्ता के सहयोग से ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह को हिंदू समाज में स्थान दिलवाने का कार्य प्रारंभ किया। उनके प्रयासों द्वारा 1856 में अंग्रेज़ी सरकार ने विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित कर इस अमानवीय मनुष्य प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की कोशिश की। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने पुत्र का विवाह भी एक विधवा से ही किया था।
विधवा विवाह उपहार योजना
बजट घोषणा वर्ष 2007-08 की अनुपालना में विधवा महिलाओं की वैधव्य अवस्था को समाप्त करने की दृष्टि से इस योजना को प्रारम्भ किया गया है। योजनान्तर्गत, वर्तमान पेन्शन नियमों में हकदार विधवा महिला यदि शादी करती है तो उसे शादी के मौके पर राज्य सरकार की ओर से उपहार स्वरूप 15,000 रुपये की राशि प्रदान की जाती है। इस हेतु आवेदिका को निर्धारित प्रार्थना पत्र भरकर विवाह के एक माह बाद तक सम्बन्धित ज़िले के ज़िला अधिकारी, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग को प्रस्तुत करना होगा।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- संस्कार : राजस्थानी संस्कृति के अभिन्न अंग
- विधवा विवाह योजना नियम, 2007
- नारी उत्थान के समर्थक ईश्वर चंद्र विद्यासागर
संबंधित लेख