सीताबेंगरा गुफ़ा: Difference between revisions
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'''सीताबेंगरा | '''सीताबेंगरा गुफ़ा''' [[छत्तीसगढ़]] की राजधानी [[रायपुर]] से 280 किलोमीटर दूर रामगढ़ में स्थित है। यह गुफ़ा प्रसिद्ध [[जोगीमारा गुफ़ाएँ|जोगीमारा गुफ़ा]] के नजदीक ही स्थित है। सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। माना जाता है कि यह [[एशिया]] की अति प्राचीन नाट्यशाला है। इसमें कलाकारों के लिए मंच निचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊँचाई पर है। प्रांगन 45 फुट लंबा और 15 फुट चौडा है। इस नाट्यशाला का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है, क्यूँकि पास ही जोगीमारा गुफ़ा की दीवार पर [[सम्राट अशोक]] के काल का एक लेख उत्कीर्ण है। ऐसे गुफ़ा केन्द्रों का मनोरंजन के लिए प्रयोग प्राचीन काल में होता था। | ||
==इतिहास== | |||
रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुहाश्रय के अन्दर लिपिबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पूर्व होने की बात इतिहासकारों एवं पुरात्त्वविदों ने समवेत स्वर में स्वीकार की है। सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि [[कालिदास]] की विख्यात रचना '[[मेघदूत]]' ने यहीं आकार लिया था। यह विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान [[श्रीराम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में 'भेंगरा' का अर्थ कमरा होता है। गुफ़ा के प्रवेश द्वार के समीप खम्बे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर श्रीराम के चरण चिह्न अंकित हैं। कहते हैं कि ये चरण चिह्न [[महाकवि कालिदास]] के समय भी थे। कालीदास की रचना '[[मेघदूत]]' में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं ([[अप्सरा|अप्सराओं]]) की उपस्थिति तथा उसके रघुपतिपदों से अंकित होने का उल्लेख भी मिलता है। | |||
====संचालन==== | |||
यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी 'सुतनुका देवदासी' के हाथ में था। यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी। देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का 'कोपभाजन' बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा। रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर [[अभिलेख]] के रूप में सदैव के लिए अंकित कर दिया। यह भी कहा जाता है कि इस गुफ़ा में उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक आदि करवाए जाते रहे होंगे। | |||
==स्थापत्य== | |||
सीताबेंगरा गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है। यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेश द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फ़ीट है, जो भीतर जाकर 4 फ़ीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया गया है। गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीड़ियाँ बनाई गयी हैं। सीताबेंगरा गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ सीड़ियाँ बनी हुई हैं। प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ जैसी बनी हुई है। इसमें सीढ़ीदार दर्शक दीर्घा गैलरीनुमा ऊपर से नीचे की और अर्द्धाकार स्वरूप में चट्टान को इस तरह काटा गया है कि दर्शक-दीर्घा में बैठकर आराम से कार्यक्रमों को देखा जा सके। | |||
[[ | गुफ़ा के बाहर दो फुट चौड़ा गडढ़ा भी है, जो सामने से पूरी गुफ़ा को घेरता है। मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है। इसके बाहर एक पांव का निशान भी है। इस गुफ़ा के बाहर एक सुरंग है। इसे 'हथफोड़ सुरंग' के नाम से जाना जाता है। इसकी लंबाई करीब 500 मीटर है। यहाँ पहाडी में [[राम]], [[लक्ष्मण]], [[सीता]] और [[हनुमान]] की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है। चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहाँ मेला लगता है। सीताबेंगरा गुफ़ा को 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा संरक्षित किया गया है। | ||
== | ====अभिलेख==== | ||
सीताबेंगरा गुफ़ा के [[ब्राह्मी लिपि]] में लिखे हुए [[अभिलेख]] का आशय है- | |||
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रात्रि में वासंती से दूर हास्य एवं विनोद में अपने | रात्रि में वासंती से दूर हास्य एवं विनोद में अपने | ||
को भुलाकर [[चमेली]] के [[फूल|फूलों]] की माला का आलिंगन करता है।</poem> | को भुलाकर [[चमेली]] के [[फूल|फूलों]] की माला का आलिंगन करता है।</poem></blockquote> | ||
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दूसरे शब्दों में यह रचनाकार की परिकल्पना है कि 'मनुष्य कोलाहल से दूर एकांत रात्रि में [[नृत्य]], [[संगीत]], हास्य-परिहास की दुनिया में स्वीकार स्वर्गिक आनन्द में आलिप्त हो। भीनी-भीनी खुशबू से मोहित हो, फूलों से आलिंगन करता हो।' | |||
==बादलों की पूजा== | |||
सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालीदास ने विख्यात रचना '[[मेघदूत]]' यहीं लिखी थी। कालीदास ने जब [[उज्जयिनि]] का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने [[साहित्य]] की रचना की थी। इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल [[आषाढ़]] के महीने में बादलों की [[पूजा]] की जाती है। [[भारत]] में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहाँ कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है। इसके लिए हर साल प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन होता है। इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskarhindi.com/News/11830/.html|title=कालीदास ने यहीं लिखी थी 'मेघदूतम'|accessmonthday=08 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
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Revision as of 10:29, 8 July 2013
सीताबेंगरा गुफ़ा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 280 किलोमीटर दूर रामगढ़ में स्थित है। यह गुफ़ा प्रसिद्ध जोगीमारा गुफ़ा के नजदीक ही स्थित है। सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। माना जाता है कि यह एशिया की अति प्राचीन नाट्यशाला है। इसमें कलाकारों के लिए मंच निचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊँचाई पर है। प्रांगन 45 फुट लंबा और 15 फुट चौडा है। इस नाट्यशाला का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है, क्यूँकि पास ही जोगीमारा गुफ़ा की दीवार पर सम्राट अशोक के काल का एक लेख उत्कीर्ण है। ऐसे गुफ़ा केन्द्रों का मनोरंजन के लिए प्रयोग प्राचीन काल में होता था।
इतिहास
रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुहाश्रय के अन्दर लिपिबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पूर्व होने की बात इतिहासकारों एवं पुरात्त्वविदों ने समवेत स्वर में स्वीकार की है। सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालिदास की विख्यात रचना 'मेघदूत' ने यहीं आकार लिया था। यह विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में 'भेंगरा' का अर्थ कमरा होता है। गुफ़ा के प्रवेश द्वार के समीप खम्बे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर श्रीराम के चरण चिह्न अंकित हैं। कहते हैं कि ये चरण चिह्न महाकवि कालिदास के समय भी थे। कालीदास की रचना 'मेघदूत' में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं (अप्सराओं) की उपस्थिति तथा उसके रघुपतिपदों से अंकित होने का उल्लेख भी मिलता है।
संचालन
यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी 'सुतनुका देवदासी' के हाथ में था। यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी। देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का 'कोपभाजन' बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा। रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर अभिलेख के रूप में सदैव के लिए अंकित कर दिया। यह भी कहा जाता है कि इस गुफ़ा में उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक आदि करवाए जाते रहे होंगे।
स्थापत्य
सीताबेंगरा गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है। यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेश द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फ़ीट है, जो भीतर जाकर 4 फ़ीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया गया है। गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीड़ियाँ बनाई गयी हैं। सीताबेंगरा गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ सीड़ियाँ बनी हुई हैं। प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ जैसी बनी हुई है। इसमें सीढ़ीदार दर्शक दीर्घा गैलरीनुमा ऊपर से नीचे की और अर्द्धाकार स्वरूप में चट्टान को इस तरह काटा गया है कि दर्शक-दीर्घा में बैठकर आराम से कार्यक्रमों को देखा जा सके।
गुफ़ा के बाहर दो फुट चौड़ा गडढ़ा भी है, जो सामने से पूरी गुफ़ा को घेरता है। मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है। इसके बाहर एक पांव का निशान भी है। इस गुफ़ा के बाहर एक सुरंग है। इसे 'हथफोड़ सुरंग' के नाम से जाना जाता है। इसकी लंबाई करीब 500 मीटर है। यहाँ पहाडी में राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है। चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहाँ मेला लगता है। सीताबेंगरा गुफ़ा को 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा संरक्षित किया गया है।
अभिलेख
सीताबेंगरा गुफ़ा के ब्राह्मी लिपि में लिखे हुए अभिलेख का आशय है-
दूसरे शब्दों में यह रचनाकार की परिकल्पना है कि 'मनुष्य कोलाहल से दूर एकांत रात्रि में नृत्य, संगीत, हास्य-परिहास की दुनिया में स्वीकार स्वर्गिक आनन्द में आलिप्त हो। भीनी-भीनी खुशबू से मोहित हो, फूलों से आलिंगन करता हो।'
बादलों की पूजा
सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालीदास ने विख्यात रचना 'मेघदूत' यहीं लिखी थी। कालीदास ने जब उज्जयिनि का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने साहित्य की रचना की थी। इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है। भारत में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहाँ कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है। इसके लिए हर साल प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन होता है। इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कालीदास ने यहीं लिखी थी 'मेघदूतम' (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 जुलाई, 2013।
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