ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह: Difference between revisions
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दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है। खास बात यह भी है कि ख्वाज़ा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाज़ा के दर पर दस्तक देने जरूर आते हैं। यह स्टेशन से 2 किमी़. दूर घनी आबादी के बीच स्थित है। अंदर सफेद संगमरमरी शाहजहांनी मस्जिद, बारीक कारीगरी युक्त बेगमी दालान, जन्नती दरवाजा, बुलंद दरवाजा ओर 2 अकबरकालीन देग हैं इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बाँटा जाता है। | *[[राजस्थान]] के शहर [[अजमेर]] में कई [[पर्यटन स्थल|अजमेर पर्यटन]] है जिनमें से ये एक है। | ||
*दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है। | |||
*ख्वाज़ा मोइनुद्धीन चिश्ती की दरगाह-ख्वाजा साहब या ख्वाजा शरीफ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलम्बियों के लिये एक पवित्र स्थान है। | |||
*मक्का के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान हैं। इसलिये इसे भारत का मक्का भी कहा जाता हैं। | |||
*इसका निर्माण 13वीं शताब्दी का माना जाता हैं। | |||
*अपने बेटे सलीम के जन्म के बाद अपना प्रण पूरा करने के लिये [[अकबर]] स्वंय पैदल चल कर [[आगरा]] से दरगाह पहुँचा था। | |||
*इसका प्रमाण वे तीन पेंटिग हैं जो [[मुम्बई]] के प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम में और [[उत्तर प्रदेश]] के [[रामपुर दरबार]] के पुस्तकालय में रखी हुई हैं। | |||
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*यह स्टेशन से 2 किमी़. दूर घनी आबादी के बीच स्थित है। | |||
*दरगाह में अंदर सफेद संगमरमरी शाहजहांनी मस्जिद, बारीक कारीगरी युक्त बेगमी दालान, जन्नती दरवाजा, बुलंद दरवाजा ओर 2 अकबरकालीन देग हैं इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बाँटा जाता है। | |||
*ख्वाज़ा साहब की पुण्य तिथि पर प्रतिवर्ष रज्जब के पहले दिन से छठे दिन तक यहाँ उर्स का आयोजन किया जाता हैं। | |||
*दरगाह का मुख्य धरातल सफेद संगमरमर का बना हुआ है। | |||
*इसके ऊपर एक आकर्षक गुम्बद हैं जिस पर सुनहरा कलश हैं। | |||
*मजार पर मखमल की गिलाफ़ चढी हुई हैं। | |||
*इसके चारों ओर परिक्रमा के स्थान पर चांदी के कटघरे बने हुए हैं। | |||
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{{राजस्थान के पर्यटन स्थल}} |
Revision as of 11:08, 24 June 2010
- राजस्थान के शहर अजमेर में कई अजमेर पर्यटन है जिनमें से ये एक है।
- दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है।
- ख्वाज़ा मोइनुद्धीन चिश्ती की दरगाह-ख्वाजा साहब या ख्वाजा शरीफ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलम्बियों के लिये एक पवित्र स्थान है।
- मक्का के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान हैं। इसलिये इसे भारत का मक्का भी कहा जाता हैं।
- इसका निर्माण 13वीं शताब्दी का माना जाता हैं।
- अपने बेटे सलीम के जन्म के बाद अपना प्रण पूरा करने के लिये अकबर स्वंय पैदल चल कर आगरा से दरगाह पहुँचा था।
- इसका प्रमाण वे तीन पेंटिग हैं जो मुम्बई के प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम में और उत्तर प्रदेश के रामपुर दरबार के पुस्तकालय में रखी हुई हैं।
- खास बात यह भी है कि ख्वाज़ा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है।
- यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाज़ा के दर पर दस्तक देने जरूर आते हैं।
- यह स्टेशन से 2 किमी़. दूर घनी आबादी के बीच स्थित है।
- दरगाह में अंदर सफेद संगमरमरी शाहजहांनी मस्जिद, बारीक कारीगरी युक्त बेगमी दालान, जन्नती दरवाजा, बुलंद दरवाजा ओर 2 अकबरकालीन देग हैं इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बाँटा जाता है।
- ख्वाज़ा साहब की पुण्य तिथि पर प्रतिवर्ष रज्जब के पहले दिन से छठे दिन तक यहाँ उर्स का आयोजन किया जाता हैं।
- दरगाह का मुख्य धरातल सफेद संगमरमर का बना हुआ है।
- इसके ऊपर एक आकर्षक गुम्बद हैं जिस पर सुनहरा कलश हैं।
- मजार पर मखमल की गिलाफ़ चढी हुई हैं।
- इसके चारों ओर परिक्रमा के स्थान पर चांदी के कटघरे बने हुए हैं।