ताज उल मस्जिद भोपाल: Difference between revisions
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1971 में भारत सरकार के दखल के बाद ताज-उल-मस्जि पूरी तरह से बन गई। आब जो ताज-उल-मस्जिद हमें दिखाई देती है उसे बनवाने का श्रेय मौलाना मुहम्मद इमरान को जाता है जिन्होने 1970 में इस मुकम्मल करवाया। यह दिल्ली की जामा मस्जिद की हूबहू नक़ल है। आज एशिया की छठी सबसे बड़ी मस्जिद है लेकिन यदि क्षेत्रफल के लिहाज से देखें और इसके मूल नक्षे के हिसाब से वुजू के लिए बने 800 * 800 फीट के मोतिया तालाब को भी इसमें शामिल कर लें तो बकौल अख्तर हुसैन के यह दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद होगी। | 1971 में भारत सरकार के दखल के बाद ताज-उल-मस्जि पूरी तरह से बन गई। आब जो ताज-उल-मस्जिद हमें दिखाई देती है उसे बनवाने का श्रेय मौलाना मुहम्मद इमरान को जाता है जिन्होने 1970 में इस मुकम्मल करवाया। यह दिल्ली की जामा मस्जिद की हूबहू नक़ल है। आज एशिया की छठी सबसे बड़ी मस्जिद है लेकिन यदि क्षेत्रफल के लिहाज से देखें और इसके मूल नक्षे के हिसाब से वुजू के लिए बने 800 * 800 फीट के मोतिया तालाब को भी इसमें शामिल कर लें तो बकौल अख्तर हुसैन के यह दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद होगी। | ||
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Revision as of 15:05, 27 June 2010
ताज-उल-मस्जिद मध्य प्रदेश के भोपाल शहर मे स्थित है। ताज-उल-मस्जिद भोपाल की सबसे बड़ी मस्जिद है। ताज-उल-मस्जिद भारत और एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। ताज-उल-मस्जिद का अर्थ है 'मस्जिदों का ताज'। ताज-उल-मस्जिद दिल्ली की जामा मसजिद से प्रेरणा लेकर बनाई गई है। ताज-उल-मस्जिद में हर साल तीन दिन का इज्तिमा उर्स होता है। जिसमें देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।
सिकन्दर बेगम का ख्वाब
सिकन्दर बेगम ने ताज-उल-मस्जिद को तामीर करवाने का ख्वाब देखा था इसलिए ताज-उल-मस्जिद सिकन्दर बेगम का ख्वाब थी।
सिकन्दर बेगम की कहानी
सिकन्दर बेगम 1861 में इलाहाबाद दरबार के बाद जब वह दिल्ली गई तो उन्होंने देखा कि दिल्ली की जामा मस्जिद को ब्रिटिश सेना की घुड़साल में तब्दील कर दिया गया है। सिकन्दर बेगम ने अपनी वफादारियों के बदले अंग्रेज़ों से इस मस्जिद को हासिल कर लिया और ख़ुद हाथ बँटाते हुए इसकी सफाई करवाकर शाही इमाम की स्थापना की। ताज-उल-मस्जिद से प्रेरित होकर उन्होने तय किया की भोपाल में भी ऐसी ही मस्जिद बन वायेगी। सिकन्दर जहाँ का ये ख्वाब उनके जीते जी पूरा न हो सका फिर उनकी बेटी शाहजहाँ बेगम ने इसे अपना ख्वाब बना लिया।
वैज्ञानिक नक्षा
शाहजहाँ बेगम ने ताज-उल-मस्जिद का बहुत ही वैज्ञानिक नक्षा तैयार करवाया। ध्वनि तरंग के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए 21 खाली गुब्बदों की एक ऐसी संरचना का नकशा तैयार किया गया कि मुख्य गुंबद के नीचे खडे होकर जब ईमाम कुछ कहेगा तो उसकी आवाज़ पूरी मस्जिद में गूँजेगी। शाहजहाँ बेगम ने ताज-उल-मस्जिद के लिए विदेश से 15 लाख रुपए का पत्थर भी मंगवाया चूँकि इसमें अक्स दिखता था अत: मौलवियों ने इस पत्थर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। आज भी ऐसे कुछ पत्थर दारुल उलूम में रखे हुए हैं। धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी और शाहजहाँ बेगम का ये ख्वाब भी अधूरा ही रह गया और गाल के कैंसर के चलते उनका असामयिक मृत्यु हो गई। इसके बाद सुल्तानजहाँ और उनके बेटा भी इस मस्जिद का काम पूरा नहीं करवा सके।
मस्जिद की ख़ूबसूरती
- ताज-उल-मस्जिद में सुर्ख लाल रंग की मीनारें हैं, जिनमें सोने के स्पाइक जड़े हैं।
- गुलाबी रंग की इस विशाल मस्जिद की दो सफेद गुंबदनुमा मीनारें हैं, जिन्हें मदरसे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
- इसके चारों ओर दीवार है और बीच में एक तालाब है।
- ताज-उल-मस्जि का प्रवेश द्वार दो मंजिला है और वह बहुत बेहद ख़ूबसूरत है।
- ताज-उल-मस्जि के प्रवेश द्वार के चार मेहराबें हैं और मुख्य प्रार्थना हॉल में जाने के लिए 9 प्रवेश द्वार हैं। पूरी इमारत बेहद खूबसूरत है।
- गुलाबी पत्थर से बनी इस मसजिद में दो विशाल सफेद गुंबद हैं। मुख्य इमारत पर तीन सफेद गुंबद और हैं।
मुकम्मल हुआ ख्वाब
1971 में भारत सरकार के दखल के बाद ताज-उल-मस्जि पूरी तरह से बन गई। आब जो ताज-उल-मस्जिद हमें दिखाई देती है उसे बनवाने का श्रेय मौलाना मुहम्मद इमरान को जाता है जिन्होने 1970 में इस मुकम्मल करवाया। यह दिल्ली की जामा मस्जिद की हूबहू नक़ल है। आज एशिया की छठी सबसे बड़ी मस्जिद है लेकिन यदि क्षेत्रफल के लिहाज से देखें और इसके मूल नक्षे के हिसाब से वुजू के लिए बने 800 * 800 फीट के मोतिया तालाब को भी इसमें शामिल कर लें तो बकौल अख्तर हुसैन के यह दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद होगी।