पट्टदकल: Difference between revisions
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'''पट्टदकल''' एक ऐतिहासिक स्थान | '''पट्टदकल''' एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है, जो [[कर्नाटक]] के [[बीजापुर ज़िला|बीजापुर ज़िले]] में मलयप्रभा नदी के [[तट]] पर, [[बादामी]] से 12 मील की दूरी पर स्थित है। [[चालुक्य साम्राज्य]] के दौरान पट्टदकल एक ख्याति प्राप्त महत्त्वपूर्ण शहर हुआ करता था। अद्भुत शिल्पकला की वजह से इस शहर को '[[विश्व विरासत स्थल|विश्व विरासत स्थलों]]' की सूची में रखा गया है। पट्टदकल ऐतिहासिक मंदिरों और भारतीय स्थापत्य कला की बेसर शैली के आरंभिक प्रयोगों वाले स्मारक समूह के लिए प्रसिद्ध है। ये मंदिर आठवीं [[शताब्दी]] में बनवाये गये थे। यहाँ द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं। अपने ख़ूबसूरत मंदिरों के लिए ही यह शहर 'मन्दिरों का शहर' कहलाता है। यहाँ बड़ी संख्या में श्रृद्धालु तथा पर्यटक आते हैं। | ||
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पट्टदकल [[दक्षिण भारत]] के [[चालुक्य वंश]] की राजधानी बादामी से 22 कि.मी. और एहोल शहर से मात्र 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। एहोल को 'स्थापत्य कला का महाविद्यालय' तो पट्टदकल को 'विश्वविद्यालय' कहा जाता है। आठवीं [[शताब्दी]] में चालुक्य वंश द्वारा बनवाये गये पट्टदकल के स्मारक [[हिन्दू]] मंदिर वास्तुकला में बेसर शैली के प्रयोग का चरम हैं। यूनेस्को ने [[वर्ष]] [[1987]] में पट्टदकल को 'विश्व धरोहर' की सूची में शामिल किया था। चालुक्य साम्राज्य के दौरान पत्तदकल महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था। राजनीतिक केंद्र और राजधानी हालांकि उस दौरान 'वातापी' (वर्तमान बादामी) राजनीतिक केंद्र और राजधानी थी, जबकि पत्तदकल सांस्कृतिक राजधानी थी। यहाँ पर राजसी उत्सव और राजतिलक जैसे कार्यक्रम हुआ करते थे। | |||
*992 ई. के एक [[अभिलेख]] में पट्टदकल नगर को [[चालुक्य]] नरेशों की राजधानी कहा गया है। सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में ग्यारहवीं शताब्दी तक निर्मित मन्दिरों के लिए यह स्थान प्रख्यात रहा है। | *992 ई. के एक [[अभिलेख]] में पट्टदकल नगर को [[चालुक्य]] नरेशों की राजधानी कहा गया है। सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में ग्यारहवीं शताब्दी तक निर्मित मन्दिरों के लिए यह स्थान प्रख्यात रहा है। | ||
*पट्टदकल के मन्दिर बादामी और [[ऐहोल]] से अधिक विकसित हैं। | *पट्टदकल के मन्दिर बादामी और [[ऐहोल]] से अधिक विकसित हैं। |
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[[चित्र:Pattadakal-Ruins.jpg|thumb|250px|पट्टदकल में एक मन्दिर के अवशेष]] पट्टदकल एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है, जो कर्नाटक के बीजापुर ज़िले में मलयप्रभा नदी के तट पर, बादामी से 12 मील की दूरी पर स्थित है। चालुक्य साम्राज्य के दौरान पट्टदकल एक ख्याति प्राप्त महत्त्वपूर्ण शहर हुआ करता था। अद्भुत शिल्पकला की वजह से इस शहर को 'विश्व विरासत स्थलों' की सूची में रखा गया है। पट्टदकल ऐतिहासिक मंदिरों और भारतीय स्थापत्य कला की बेसर शैली के आरंभिक प्रयोगों वाले स्मारक समूह के लिए प्रसिद्ध है। ये मंदिर आठवीं शताब्दी में बनवाये गये थे। यहाँ द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय या आर्य) दोनों ही शैलियों के मंदिर हैं। अपने ख़ूबसूरत मंदिरों के लिए ही यह शहर 'मन्दिरों का शहर' कहलाता है। यहाँ बड़ी संख्या में श्रृद्धालु तथा पर्यटक आते हैं।
इतिहास
पट्टदकल दक्षिण भारत के चालुक्य वंश की राजधानी बादामी से 22 कि.मी. और एहोल शहर से मात्र 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। एहोल को 'स्थापत्य कला का महाविद्यालय' तो पट्टदकल को 'विश्वविद्यालय' कहा जाता है। आठवीं शताब्दी में चालुक्य वंश द्वारा बनवाये गये पट्टदकल के स्मारक हिन्दू मंदिर वास्तुकला में बेसर शैली के प्रयोग का चरम हैं। यूनेस्को ने वर्ष 1987 में पट्टदकल को 'विश्व धरोहर' की सूची में शामिल किया था। चालुक्य साम्राज्य के दौरान पत्तदकल महत्वपूर्ण शहर हुआ करता था। राजनीतिक केंद्र और राजधानी हालांकि उस दौरान 'वातापी' (वर्तमान बादामी) राजनीतिक केंद्र और राजधानी थी, जबकि पत्तदकल सांस्कृतिक राजधानी थी। यहाँ पर राजसी उत्सव और राजतिलक जैसे कार्यक्रम हुआ करते थे।
- 992 ई. के एक अभिलेख में पट्टदकल नगर को चालुक्य नरेशों की राजधानी कहा गया है। सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में ग्यारहवीं शताब्दी तक निर्मित मन्दिरों के लिए यह स्थान प्रख्यात रहा है।
- पट्टदकल के मन्दिर बादामी और ऐहोल से अधिक विकसित हैं।
- पट्टदकल की मूर्तिकला धार्मिक और लौकिक दोनों प्रकार की है। प्रथम में देवी-देवताओं तथा रामायण-महाभारत की अनेक धार्मिक कथाओं का चित्रण मिलता है। दूसरी में सामाजिक और घरेलू जीवन, पशु-पक्षी, वाद्य यंत्र तथा पंचतंत्र की कथाओं का अंकन का अंकन मिलता हैं।
- यह बात महत्त्वपूर्ण है कि पट्टदकल के कलाकारों ने आर्य शैली के चार मन्दिर और द्रविड़ शैली दोनों को साथ-साथ विकसित करने का प्रयास किया है।
- पट्टदकल आर्य शैली के चार मन्दिर और द्रविड़ शैली के छः मन्दिर हैं।
- आर्य शैली का सबसे अधिक प्रसिद्ध मन्दिर पापनाथ का है और द्रविड़ शैली के मन्दिरों में विरुपाक्ष का है।
- पापनाथ मन्दिर के गर्भगृह के ऊपर एक शिखर है। वह ऊपर की ओर संकरा होता गया है। इसके गर्भगृह और मण्डप के बीच जो अंतराल बनाया गया है, वह भी एक मण्डप की भाँति प्रतीत होता है।
- इस युग का सबसे महत्त्वपूर्ण मन्दिर विरुपाक्ष मंदिर है, जिसे पहले लोकेश्वर मन्दिर भी कहा जाता था। इस शिव मन्दिर को विक्रमादित्य द्वितीय (734-745 ई.) की पत्नी लोक महादेवी ने बनवाया था।
- विरुपाक्ष मंदिर के गर्भगृह और मण्डप के बीच में भी अंतराल है। यह अंतराल छोटा है, जिससे इमारत का अनुपात बिगड़ने नहीं पाया है। मुख्य भवन 120 फुट लम्बा है।
- विरुपाक्ष मंदिर के चारों ओर प्राचीर और एक सुन्दर द्वार है। द्वार मण्डपों पर द्वारपाल की प्रतिमाएँ हैं। एक द्वारपाल की गदा पर एक सर्प लिपटा हुआ है, जिसके कारण उसके मुख पर विस्मय एवं घबराहट के भावों की अभिव्यंजना बड़े कौशल के साथ अंकित की गई है। मुख्य मण्डप में स्तम्भों की छः पंक्तियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक में पाँच स्तम्भों हैं।
- शृंगारिक दृश्यों का प्रदर्शन किया गया है। अन्य पर महाकाव्यों के चित्र उत्कीर्ण हैं। जिनमें हनुमान का रावण की सभा में आगमन, खर दूषण- युद्ध तथा सीता हरण के दृश्य उल्लेखनीय हैं।
- विरुपाक्ष मन्दिर अपने स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। इसमें विभिन्न भागों का कलात्मक मूर्तियों से अलंकरण किया गया है।
- कलामर्मज्ञों ने इस मन्दिर की बड़ी प्रशंसा की है।
वीथिक
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गलगनाथ मंदिर, पट्टदकल
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संगमेश्वर मंदिर, पट्टदकल
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पट्टदकल
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भैरव की मूर्ति, पट्टदकल
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विरुपाक्ष मंदिर में शिव के प्रमुख मन्दिरों की शृंखला, पट्टदकल
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विरुपाक्ष मंदिर में शिव की प्रतिमा, पट्टदकल
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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