घट-पल्लव: Difference between revisions

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Latest revision as of 11:38, 2 August 2014

घट-पल्लव भारतीय कला का महत्त्वपूर्ण आलंकारिक तत्त्व, जिसमें फूल और पत्तियों से भरा एक कलश होता है। वैदिक साहित्य में यह जीवन का प्रतीक और वनस्पति का स्रोत है, जो अब भी मान्य है।

  • भारतीय कला में लगभग आरंभ से ही घट-पल्लव विद्यमान था और सभी कालों में इसका प्रमुखता से उपयोग हुआ।
  • पांचवीं शताब्दी से विशेषकर उत्तरी भारत में, घट-पल्लव का उपयोग वास्तुशास्त्र में स्तंभ के आधार और शीर्ष के रूप में होने लगा था। 15वीं शताब्दी तक इस प्रकार का उपयोग जारी रहा।
  • बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्मो में भरे हुए घड़े[1] का उपयोग देवता अथवा सम्मानित अतिथि के आनुष्ठानिक चढ़ावे के लिए भी होता है; पवित्र प्रतीक के रूप में धर्मस्थलों और भवनों की सज्जा में भी इसका प्रयोग होता है।
  • घट-पल्लव अलंकरण में पात्र को पानी, वनस्पति और अक्सर एक नारियल से भर दिया जाता है और इसके चारों ओर पवित्र धागा बांधा जाता है।
  • समृद्धि और जीवन के स्रोत के प्रतीक के रूप में पूर्ण कलश[2] को हिन्दू मान्यता के संदर्भ में समृद्धि और सौभाग्य की देवी 'श्री' या लक्ष्मी का प्रतीक भी माना जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पूर्ण घट या पूर्ण कलश
  2. आनुष्ठानिक वस्तु और आलंकारिक तत्त्व, दोनों अर्थों में

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