छंदमाला: Difference between revisions
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Revision as of 12:27, 31 March 2015
छंदमाला ग्रन्थ के लेखक केशवदास है। इसका रचनाकाल अज्ञात है। 'छंदमाला' की 'जैन ग्रंथ भण्डार, बीकानेर से उपलब्ध प्रति अधूरी जान पड़ती है। इसकी प्रतिलिपि किसी खण्डित प्रति से हुई प्रतीत होती है। 'रामचन्द्रिका' में आये सभी छ्न्दों का लक्षण तो इसमें होना ही चाहिए था पर उसके भी कई छ्न्द इसमें नहीं आ सके हैं। इसकी एक हस्तलिखित प्रति 'गुरुमुखी लिपि' में पटियाला में भी है। यह अभी तक अप्रकाशित कृति है।
पिगलशास्त्र का ग्रंथ
'छन्दमाला' पिगलशास्त्र का ग्रंथ है और इसमें दो खण्ड हैं। पहले खण्ड में वर्णवृत्तों का विचार किया गया है और दूसरे मात्रावृतों का। पहला खण्ड महादेव की स्तुति से तथा दूसरा गणेश और पिंगलाचार्य की स्तुति से आरम्भ होता है। इसमें लक्षण लक्ष्य सहित छन्दों की संख्या 157 है। मात्रिक की अपेक्षा वर्णिक वृतों के विवेचन की ओर अधिक दृष्टि रही है। इसका आधार संस्कृत के 'वृत्तरत्नाकर' आदि पिंगल ग्रंथ ही हैं। इसमें कोई नवीनता नहीं है।
भाषाकल्पवृत की तीन शाखाएँ=
केशव ने 'छन्दमाला' में भाषाकल्पवृत की तीन शाखाएँ कही है- सुरभाषा, नागभाषा और नरभाषा। सुरभाषा के आदि कवि वाल्मीकि, नागभाषा प्राकृत-अपभ्रंश भाषा के महसु[1] और नरभाषा या देश भाषा के पिंगलनाग[2] बताये गये हैं। इन्होंने वर्णवृत के केवल सम छन्दों को ही लिया है। कलावृति में सम और विषम दोनों को स्वीकृत दी है। छ्न्दोंभंग में 'प्राकृतपिंगलम' के आधार पर श्रवणतुला को प्रमाण माना है। अंत में सूची दी गयी है।
लक्षणों की सरलता
इसमें लक्षण देने की प्रणाली केशव ने अपनी रखी है। ऐसा ही प्रवाह परवर्ती प्राचीन हिन्दी छन्द-ग्रंथों में दिखायी देता है। इसमें लक्षणों को बहुत सरल बनाकर रखने का प्रयास किया गया है फिर भी कुछ ऐसे पारिभाषिक शब्द व्यवहृत हैं जिनसे पिंगल से परिचित व्यक्तियों को भी होती है, जैसे-
- प्रिय (॥), द्विज (॥॥)नन्द (s।)धुजा (।s)करना (॥)तिरना (॥॥)
- कहीं कहीं बढ़े छन्द के लक्षणों में छोटे छन्द को परिभाषिक रूप में रख दिया गया है।
- 'छन्दमाला' के अधिकतर उदाहरण 'रामचन्द्रिका' से उद्धृत हैं, कुछ ही नवनिर्मित है। इसमें यह स्पष्ट होता है कि 'रामचन्द्रिका' में प्रयुक्त छन्दों के ही आधार पर 'छन्दमाला' पिरो दी गयी है। पुस्तक की पूर्ति कुछ नये उदाहरणों से की गयी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 192-193।
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