बुंदेलखंड ओरछा के बुंदेला: Difference between revisions

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== छत्रसाल का नेतृत्व==
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इसी के बाद छत्रसाल के नेतृत्व में पन्ना दरबार उन्नति करता है। ओरछा गज़ेटियर के अनुसार [[मुगल शासक|मुगल शासकों]] नें चम्पतराय के परिवार को गद्दी न दी और जुझारसिंह के भाई पहाड़सिंह को शासक नियुक्त किया था। सन् 1707 ई. सें औरंगज़ेब के मरने के बाद बहादुरगढ़ गद्दी पर बैठा। [[छत्रसाल]] से इसकी खूब बनी। इस समय [[मराठा साम्राज्य|मराठों]] का भी ज़ोर बढ़ गया था।
इसी के बाद छत्रसाल के नेतृत्व में पन्ना दरबार उन्नति करता है। ओरछा गज़ेटियर के अनुसार [[मुग़ल शासक|मुग़ल शासकों]] नें चम्पतराय के परिवार को गद्दी न दी और जुझारसिंह के भाई पहाड़सिंह को शासक नियुक्त किया था। सन् 1707 ई. सें औरंगज़ेब के मरने के बाद बहादुरगढ़ गद्दी पर बैठा। [[छत्रसाल]] से इसकी खूब बनी। इस समय [[मराठा साम्राज्य|मराठों]] का भी ज़ोर बढ़ गया था।


छत्रसाल स्वयं कवि थे। [[छत्तरपुर]] इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कलाप्रेमी और भक्त के रुप में थी। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड राज्य भागों में बँट गया था। एक भाग [[हिरदेशाह]], दूसरा [[जगतराय]] और तीसरा [[पेशवा]] को मिला। छत्रसाल की मृत्यु 13 मई सन् 1731 में हुई थी।
छत्रसाल स्वयं कवि थे। [[छत्तरपुर]] इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कलाप्रेमी और भक्त के रुप में थी। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड राज्य भागों में बँट गया था। एक भाग [[हिरदेशाह]], दूसरा [[जगतराय]] और तीसरा [[पेशवा]] को मिला। छत्रसाल की मृत्यु 13 मई सन् 1731 में हुई थी।

Revision as of 14:18, 28 August 2010

बुंदेलखंड के इतिहास में ओरछा का बुंदेला भी प्रमुख है। ओरछा के शासकों का युगारंभ रुद्रप्रताप के साथ ही होता है। रुद्रप्रताप सिकन्दर और इब्राहिम लोधी दोनों से लड़ा था। सन् 1530 में ओरछा की स्थापना हुई थी। रुद्रप्रताप बड़ा नीतिज्ञ था, उसने मैत्री संधी ग्वालियर के तोमर नरेशों से की थी। उसकी मृत्यु के बाद भारतीचन्द्र (1531ई.-1554ई.) गद्दी पर बैठा था। कलिं का क़िला कीर्तिसिंह चन्देल के अधिकार में था। शेरशाह ने इस पर जब आक्रमण किया तो भारतीचन्द ने कीर्तिसिंह की सहायता ली थी। शेरशाह युद्ध में मारा गया और उसके पुत्र सलीमशाह को दिल्ली जाना पड़ा।

भारतीचन्द के उपरांत मधुकरशाह (1554 ई.-1592 ई.) गद्दी पर बैठा था। स्वतंत्र ओरछा राज्य की स्थापना इसके बाद के समय में हुई थी। अकबर के बुलाने पर जब वे दरबार में नही पहुँचा तो ओरछा पर चढ़ाई करने लिए सादिख खाँ को भेजा गया था। युद्ध में मधुकरशाह हार गए। मधुकरशाह के आठ पुत्र थे, उनमें सबसे बड़े पुत्र रामशाह के द्वारा बादशाह से क्षमा याचना करने पर उन्हें ओरछा का शासक बनाया गया था। उनके छोटे भाई इन्द्रजीक राज्य का प्रबन्ध किया करते थे। केशवदास नामक प्रसिद्ध कवि इन्हीं के दरबार में थे।

इन्द्रजीत का भाई वीरसिंह देव (जिसे मुसलमान लेखकों ने नाहरसिंह लिखा है) सदैव मुसलमानों का विरोध किया करता था। उसे कई बार दबाने की चेष्टा की गई पर वह असफल ही रही। वीरसिंहदेव ने सलीम का अबुलफज़ल को मारने में पूरा सहयोग किया था, इसलिए वह सलीम के शासक बनते ही बुंदेलखंड का महत्वपूर्ण शासक बना। जहाँगीर ने इसकी चर्चा अपनी डायरी में की है।

ओरछा में जहाँगीर महल तथा अन्य महत्वपूर्ण मंदिर वीरसिंह देव (1605 ई. - 1627 ई.) के शासनकाल में ही बने थे। जुझारसिंह बड़े पुत्र थे, उन्हें गद्दी दी गई और शेष 11 भाइयों को जागीरें दी गई थीं। सन् 1633 ई. में जुझारसिंह ने गोड़ राजा प्रेमशाह पर आक्रमण करके चौरागढ़ को जीता था परंतु शाहजहाँ नें प्रत्याक्रमण किया और ओरछा खो बैठे। उन्हें दक्षिण की ओर भागना पड़ा था। वीरसिंह के बाद ओरछा के शासकों में देवीसिंह और पहाड़सिहं का नाम लिया जाता है परंतु ये अधिक समय तक राज न कर सके।

वीरसिंह के उपरांत चम्पतराय प्रताप का इतिहास प्रसिद्ध है। जब उन्होंने औरंगज़ेब की सहायता की थी तब उन्हें ओरछा से जमुना तक का प्रदेश जागीर में दिया गया था। चम्पतराय ने दिल्ली दरबार के उमराव होते हुए भी बुंदेलखंड को स्वाधीन करने का प्रयत्न किया और वे औरंगज़ेब से ही भिड़ गए थे। चम्पतराय ने सन् 1664 मे आत्महत्या कर ली। ओरछा दरबार का प्रभाव यहाँ से शून्य हो जाता है।

छत्रसाल का नेतृत्व

इसी के बाद छत्रसाल के नेतृत्व में पन्ना दरबार उन्नति करता है। ओरछा गज़ेटियर के अनुसार मुग़ल शासकों नें चम्पतराय के परिवार को गद्दी न दी और जुझारसिंह के भाई पहाड़सिंह को शासक नियुक्त किया था। सन् 1707 ई. सें औरंगज़ेब के मरने के बाद बहादुरगढ़ गद्दी पर बैठा। छत्रसाल से इसकी खूब बनी। इस समय मराठों का भी ज़ोर बढ़ गया था।

छत्रसाल स्वयं कवि थे। छत्तरपुर इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कलाप्रेमी और भक्त के रुप में थी। बुंदेलखंड की शीर्ष उन्नति इन्हीं के काल में हुई। छत्रसाल की मृत्यु के बाद बुंदेलखंड राज्य भागों में बँट गया था। एक भाग हिरदेशाह, दूसरा जगतराय और तीसरा पेशवा को मिला। छत्रसाल की मृत्यु 13 मई सन् 1731 में हुई थी।