रसखान- अभिधा शक्ति: Difference between revisions
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नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।<ref>सुजान रसखान, 46</ref> | नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।<ref>सुजान रसखान, 46</ref> | ||
Latest revision as of 14:03, 2 June 2017
रसखान के काव्य में भक्ति तथा प्रेम सम्बन्धी पद्यों में, वात्सल्य-वर्णन में, संयोग लीला तथा रूप-चित्रण के सामान्य इतिवृत्तात्मक अंशों में अभिधा शक्ति से द्योतित वाच्यार्थ की प्रधानता स्वभावत: है ही, विशेष भावपूर्ण स्थलों पर अभिधा में भी चमत्कार का निरूपण है—
- बैन वही उनको गुन गाइ औ कान वही उन बैन सो सानी।[1]
- सेष सुरेस दिनेस गनेस प्रजेस धनेस महेस मनावौ।[2]
- देस बिदेस के देखे नरेसन रीझ की कोऊ न बूझ करैगो।[3]
- वेई ब्रह्म ब्रह्मा जाहि सेवत हैं रैन-दिन, सदासिव सदा ही धरत ध्यान गाढ़े हैं।[4]
- सुनिये सब की कहिये न कछू रहिये इमि या मन-बागर में।[5]
- गावैं गुनी गनिका गंधरब्बा औ सरद सबै गुन गावत।[6] उपर्युक्त पंक्तियों में रसखान ने अभिधा शक्ति द्वारा अपने मन की अभिलाषा को बड़े सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है। भक्तिपूर्ण मनोभिलाषा की इस हृदयहारिणी अभिव्यक्ति में चमत्कार का वैशेष्ट्य है।
- रसखान ने कृष्ण के बाल-रूप का चित्रण अभिधा के द्वारा किया है-
आजु गई हुती भोर ही हौं रसखानि रई वहि नंद के भौनहिं।
वाकौ जियौ जुग लाख करोर जसोमति को सुख जात कह्यौ नहिं।
तेल लगाइ लगाइ कै अंजन भौंह बनाइ बनाइ डिठौनहिं।
डालि हमेलनि हार निहारत वारत ज्यौ चुचकारत छौनहिं॥[7]
धूरि भरे अति सोभित स्यामजू तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरें अंगना पग पैजनी बाजति पीरी कछौटी।[8]
- लक्षणा और व्यंजना की निबंधना न होने पर भी कृष्ण के बाल सौंदर्य की अभिव्यक्ति निस्संदेह शक्तिमती है-
मैया की सौं सोच कटू मटकी उतारे को न
गोरस के ढारे को न चीर चीरि डारे को।
यहै दु:ख भारी गहै डगर हमारी माँझ,
नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।[9]
गौरज बिराजै भाल लहलही बनमाल,
आगे गैयाँ ग्वाल गावैं मृदु बानि री।
तैसी धुनि बाँसुरी की मधुर मधुर जैसी,
बंक चितवनि मंद मंद मुसकानि री।
कदम विटप के निकट तटनी के तट,
अटा चढ़ि चाहि पीत पटा फहरानि री।
रस बरसावै तनतपति बुझावै नैन,
प्राननि रिझावै वह आवै रसखानि री।[10]
रसखान ने पद्यों में अभिधा शक्ति का प्रयोग किया है। अंतिम पद्य अभिधा का सुन्दर उदाहरण है। रसखान के भक्ति प्रेम तथा बाललीला संबंधी पद्यों में अभिधाशक्ति के चमत्कारपूर्ण दर्शन होते हैं। उनकी प्राय: सभी रचनाएं रसपूर्ण या भावपूर्ण हैं। अतएव उनके काव्य में अभिधा का एकांत प्रयोग अधिक नहीं है। जहां रस या भाव की व्यंजना होती है वहां व्यंजना-शक्ति का अस्तित्व स्वयं सिद्ध है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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