अभिनय: Difference between revisions

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'''अभिनय''' एक कला है जिसे सीखने और अभ्यास करने की जरूरत होती है यह जीवन के अनुभव का काव्यात्मक प्रतिरूप है। जैसे- किसी [[अभिनेता]] या [[अभिनेत्री]] के द्वारा किया जाने वाला वह कार्य है जिसके द्वारा वे किसी कथा को दर्शाते हैं।
'''अभिनय''' एक कला है जिसे सीखने और अभ्यास करने की ज़रूरत होती है यह जीवन के अनुभव का काव्यात्मक प्रतिरूप है। जैसे- किसी [[अभिनेता]] या [[अभिनेत्री]] के द्वारा किया जाने वाला वह कार्य है जिसके द्वारा वे किसी कथा को दर्शाते हैं।
*'[[नाट्यशास्त्र]]' अभिनय का मूल ग्रन्थ माना जाता है। इसके रचयिता [[भरतमुनि]] थे।
*'[[नाट्यशास्त्र]]' अभिनय का मूल ग्रन्थ माना जाता है। इसके रचयिता [[भरतमुनि]] थे।
==अभिनय के प्रकार==
==अभिनय के प्रकार==

Revision as of 10:46, 2 January 2018

अभिनय एक कला है जिसे सीखने और अभ्यास करने की ज़रूरत होती है यह जीवन के अनुभव का काव्यात्मक प्रतिरूप है। जैसे- किसी अभिनेता या अभिनेत्री के द्वारा किया जाने वाला वह कार्य है जिसके द्वारा वे किसी कथा को दर्शाते हैं।

अभिनय के प्रकार

अभिनय मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है-

  1. आंगिक
  2. वाचिक
  3. आहार्य और
  4. सात्त्विक।
आंगिक अभिनय

आंगिक अभिनय का अर्थ है- "शरीर, मुख और चेष्टाओं से कोई भाव या अर्थ प्रकट करना, जिसमें पूरे शरीर की विशेष चेष्टा के द्वारा अभिनय किया जाता है।" अभिनय विशेष रस, भाव तथा संचारी भाव के अनुसार किए जाते हैं।

वाचिक अभिनय

अभिनेता रंगमंच पर जो कुछ मुख से कहता है वह सबका सब वाचिक अभिनय कहलाता है। साहित्य में तो हम लोग व्याकृता वाणी ही ग्रहण करते हैं, किंतु नाटक में अव्याकृता वाणी का भी प्रयोग किया जा सकता है। सीटी देना या ढोरों को हाँकते हुए चटकारी देना आदि सब प्रकार की ध्वनियों को मुख से निकालना वाचिक अभिनय के अंतर्गत आता है।

आहार्य अभिनय

वास्तव में अभिनय का अंग न होकर नेपथ्यकर्म का अंग है आहार्य अभिनय और इसका संबंध अभिनेता से उतना नहीं है जितना नेपथ्यसज्जा करने वाले से।

सात्त्विक

सात्विक अभिनय तो उन भावों का वास्तविक और हार्दिक अभिनय है जिन्हें रस सिद्धांत वाले सात्विक भाव कहते हैं और जिसके अंतर्गत, स्वेद, स्तंभ, कंप, अश्रु, वैवर्ण्य, रोमांच, स्वरभंग और प्रलय की गणना होती है। इनमें से स्वेद और रोमांच को छोड़कर शेष सबका सात्विक अभिनय किया जा सकता है। अश्रु के लिए तो विशेष साधना आवश्यक है, क्योंकि भाव मग्न होने पर ही उसकी सिद्धि हो सकती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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