व्यक्ति व्यंजना -विद्यानिवास मिश्र: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "उच्छवास" to "उच्छ्वास")
m (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर")
 
Line 31: Line 31:
==सारांश==
==सारांश==
विद्यानिवास जी के ही अनुसार, व्यक्ति-व्यंजक निबन्ध व्यक्ति का व्यंजक नहीं होता, वह व्यक्ति के माध्यम से व्यंजक होता है। यानि जो कुछ भी (लेखक) के अनुभव के दायरे में आता है, उसे वह लोगों तक पहुँच पाने वाली भाषा की कड़ाही में झोंक देता है। तब जो पककर निकलता है, वह व्यक्ति-व्यंजक निबन्ध बनता है। कहना न होगा कि इस संग्रह के निबन्ध, निस्संदेह, इसी रचना-प्रकिया के साक्षी हैं। ‘व्यक्ति-व्यंजना’ के निबन्धों में लालित्यानुभूति के साथ ही कुछ ऐसा भी है जो असुन्दर और अनसँवरा है। इनमें जहां लोक के अनुभव और लोक की भाषा का ताप है, वहीं समाज से बृहत्तर और व्यापक इकाई-लोक की महिमा और गरिमा की जीवन्त अभिव्यक्ति भी है। <br />
विद्यानिवास जी के ही अनुसार, व्यक्ति-व्यंजक निबन्ध व्यक्ति का व्यंजक नहीं होता, वह व्यक्ति के माध्यम से व्यंजक होता है। यानि जो कुछ भी (लेखक) के अनुभव के दायरे में आता है, उसे वह लोगों तक पहुँच पाने वाली भाषा की कड़ाही में झोंक देता है। तब जो पककर निकलता है, वह व्यक्ति-व्यंजक निबन्ध बनता है। कहना न होगा कि इस संग्रह के निबन्ध, निस्संदेह, इसी रचना-प्रकिया के साक्षी हैं। ‘व्यक्ति-व्यंजना’ के निबन्धों में लालित्यानुभूति के साथ ही कुछ ऐसा भी है जो असुन्दर और अनसँवरा है। इनमें जहां लोक के अनुभव और लोक की भाषा का ताप है, वहीं समाज से बृहत्तर और व्यापक इकाई-लोक की महिमा और गरिमा की जीवन्त अभिव्यक्ति भी है। <br />
लेखक की ओर से नहीं लेखक तो लिखकर कहीं गुम हो जाता है, व्यक्ति की ओर से यह निवेदित है पाठकों से, आलोचकों से नहीं। आलोचकों से तो कोई संवाद सम्भव नहीं, वे बस एकालाप ही अधिकतर करते हैं,  या अधिक-से-अधिक ‘जनान्तिके (कानाफूसी वह भी अपने गोल के लोगों से) ही भाषण करते हैं। रचना से विशेष रूप से वे कतराते हैं, हाँ व्यक्ति को जरूर गाहे बगाहे ललकारते है। सो उनसे कुछ कहना-सुनना बेमतलब है। पाठकों से निवेदन का विशेष अभिप्राय है। मेरी रचना के पाठक संख्या में ज्यादा नहीं, जो हैं वे कुछ तो पाठ्य-पुस्तक में मेरा निबन्ध पढ़कर-पढ़ाकर कृपालु हो गये हैं कुछ हैं, कुछ हैं जो निखालिस पाठक हैं, उनसे विशेष रूप से कुछ कहना है। -[[विद्यानिवास मिश्र]]
लेखक की ओर से नहीं लेखक तो लिखकर कहीं गुम हो जाता है, व्यक्ति की ओर से यह निवेदित है पाठकों से, आलोचकों से नहीं। आलोचकों से तो कोई संवाद सम्भव नहीं, वे बस एकालाप ही अधिकतर करते हैं,  या अधिक-से-अधिक ‘जनान्तिके (कानाफूसी वह भी अपने गोल के लोगों से) ही भाषण करते हैं। रचना से विशेष रूप से वे कतराते हैं, हाँ व्यक्ति को ज़रूर गाहे बगाहे ललकारते है। सो उनसे कुछ कहना-सुनना बेमतलब है। पाठकों से निवेदन का विशेष अभिप्राय है। मेरी रचना के पाठक संख्या में ज्यादा नहीं, जो हैं वे कुछ तो पाठ्य-पुस्तक में मेरा निबन्ध पढ़कर-पढ़ाकर कृपालु हो गये हैं कुछ हैं, कुछ हैं जो निखालिस पाठक हैं, उनसे विशेष रूप से कुछ कहना है। -[[विद्यानिवास मिश्र]]
==पुस्तक के कुछ अंश==
==पुस्तक के कुछ अंश==
;हरसिंगार  
;हरसिंगार  

Latest revision as of 10:47, 2 January 2018

व्यक्ति व्यंजना -विद्यानिवास मिश्र
लेखक विद्यानिवास मिश्र
मूल शीर्षक व्यक्ति व्यंजना
प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2003
ISBN 81-263-0960-1
देश भारत
पृष्ठ: 328
भाषा हिंदी
विधा निबंध संग्रह
विशेष विद्यानिवास मिश्र जी के अभूतपूर्व योगदान के लिए ही भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था।

व्यक्ति व्यंजना प्रख्यात निबन्धकार और मनीषी विचारक पं. विद्यानिवास मिश्र के 53 वर्षों की अवधि में लिखे व्यक्ति-वयंजक निबन्धों में से, स्वयं उन्हीं के द्वारा चुने हुए 53 श्रेष्ठतम निबन्धों का संचालन है। दूसरे शब्दों में, यह सग्रंह हिन्दी निबन्ध-साहित्य की एक बड़ी और अद्धितीय उपलब्धियों का प्रस्तुतीकरण है।

सारांश

विद्यानिवास जी के ही अनुसार, व्यक्ति-व्यंजक निबन्ध व्यक्ति का व्यंजक नहीं होता, वह व्यक्ति के माध्यम से व्यंजक होता है। यानि जो कुछ भी (लेखक) के अनुभव के दायरे में आता है, उसे वह लोगों तक पहुँच पाने वाली भाषा की कड़ाही में झोंक देता है। तब जो पककर निकलता है, वह व्यक्ति-व्यंजक निबन्ध बनता है। कहना न होगा कि इस संग्रह के निबन्ध, निस्संदेह, इसी रचना-प्रकिया के साक्षी हैं। ‘व्यक्ति-व्यंजना’ के निबन्धों में लालित्यानुभूति के साथ ही कुछ ऐसा भी है जो असुन्दर और अनसँवरा है। इनमें जहां लोक के अनुभव और लोक की भाषा का ताप है, वहीं समाज से बृहत्तर और व्यापक इकाई-लोक की महिमा और गरिमा की जीवन्त अभिव्यक्ति भी है।
लेखक की ओर से नहीं लेखक तो लिखकर कहीं गुम हो जाता है, व्यक्ति की ओर से यह निवेदित है पाठकों से, आलोचकों से नहीं। आलोचकों से तो कोई संवाद सम्भव नहीं, वे बस एकालाप ही अधिकतर करते हैं, या अधिक-से-अधिक ‘जनान्तिके (कानाफूसी वह भी अपने गोल के लोगों से) ही भाषण करते हैं। रचना से विशेष रूप से वे कतराते हैं, हाँ व्यक्ति को ज़रूर गाहे बगाहे ललकारते है। सो उनसे कुछ कहना-सुनना बेमतलब है। पाठकों से निवेदन का विशेष अभिप्राय है। मेरी रचना के पाठक संख्या में ज्यादा नहीं, जो हैं वे कुछ तो पाठ्य-पुस्तक में मेरा निबन्ध पढ़कर-पढ़ाकर कृपालु हो गये हैं कुछ हैं, कुछ हैं जो निखालिस पाठक हैं, उनसे विशेष रूप से कुछ कहना है। -विद्यानिवास मिश्र

पुस्तक के कुछ अंश

हरसिंगार

सखि स विजितो वीणावाद्यैः कयाप्यपरस्त्रिया
पणितमभवत्ताभ्यां तत्र क्षमाललितं ध्रुवम्।
कथमितरथा शेफालीषु स्खलत्कुसुमास्वपि
प्रसरति नभोमध्येऽपीन्दौ प्रियेण विलम्ब्यते।।

किसी प्रेयसी ने प्रिय की स्वागत की तैयारी की है, समय बीत गया है, उत्कण्ठा जगती जा रही है, मन में दुश्चिन्ताएँ होती हैं कहीं ऐसा तो नहीं हुआ, अन्त में सखी से अपना अन्तिम अनुमान कह सुनाती है....सखि, पर प्रिय रुकते नहीं, पर बात ऐसी आ पड़ी है कि वे मेरी चिन्ता में वीणा में एकाग्रता न ला सके होंगे, इसलिए बीन की होड़ में उस नागरी से हार गये होंगे और शायद हारने पर शर्त रही होगी रात-भर वहीं संगीत जमाने की, इसी से वह विमल गये। नहीं तो सोचो भला चाँद बीच आकाश में आ गया, और हरसिंगार के फूल ढुरने लगे, इतनी देर वे कभी लगाते ?

सो हरसिंगार के फूल की ढुरन ही धैर्य की अन्तिम सीमा है, मान की पहली उकसान है और प्रणय-वेदना की सबसे भीतरी पर्त। हरसिंहार बरसात के उत्तरार्ध का फूल है जब बादलों को अपना बचा-खुचा सर्वस्व लुटा देने की चिन्ता हो जाती है, जब मघा और पूर्वा में झड़ी लगाने की होड़ लग जाती है और जब धनिया का रंग इस झड़ी से धुल जाने के लिए व्यग्र-सा हो जाता है। हरसिंगार के फूलों की झड़ी भी निशीथ के गजर के साथ ही शुरू होती है और शुरू होकर तभी थमती है जब पेड़ में एक भी वृत्त नहीं रह जाता। सबेरा होते-होते हरसिंगार शान्त और स्थिर हो जाता है, उसके नीचे की ज़मीन फूलों से फूलकर बहुत ही झीनी गन्ध से उच्छ्वासित हो उठती है।[1]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. व्यक्ति व्यंजना (हिंदी) pustak.org। अभिगमन तिथि: 8 अगस्त, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख