व्यास: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
Line 5: | Line 5: | ||
[[यमुना नदी|यमुना]] के द्वीप में जन्म होने के कारण व्यास जी को कृष्णद्वैपायन तथा बदरीवन में तपस्या करने के कारण बदरायण व्यास भी कहा जाता है। इन्हें अंगों सहित सम्पूर्ण [[वेद]], [[पुराण]], इतिहास और परमात्मतत्त्व का ज्ञान स्वत: प्राप्त हो गया था। मनुष्यों की आयु क्षीण होते हुए देखकर इन्होंने वेदों का विस्तार किया। इसीलिये ये वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। वेदान्त-दर्शन की शक्ति के साथ अनादि पुराण को लुप्त होते देखकर भगवान कृष्णद्वैपायन ने अठारह पुराणों का प्रणयन किया। इनके द्वारा प्रणीत [[महाभारत]] को पंचम वेद कहा जाता है। श्रीमद्भागवत के रूप में भक्ति का सार-सर्वस्व इन्होंने मानव मात्र को सुलभ कराया और ब्रह्मसूत्र के रूप में तत्त्वज्ञान का अनुपम ग्रन्थ-रत्न प्रदान किया। | [[यमुना नदी|यमुना]] के द्वीप में जन्म होने के कारण व्यास जी को कृष्णद्वैपायन तथा बदरीवन में तपस्या करने के कारण बदरायण व्यास भी कहा जाता है। इन्हें अंगों सहित सम्पूर्ण [[वेद]], [[पुराण]], इतिहास और परमात्मतत्त्व का ज्ञान स्वत: प्राप्त हो गया था। मनुष्यों की आयु क्षीण होते हुए देखकर इन्होंने वेदों का विस्तार किया। इसीलिये ये वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। वेदान्त-दर्शन की शक्ति के साथ अनादि पुराण को लुप्त होते देखकर भगवान कृष्णद्वैपायन ने अठारह पुराणों का प्रणयन किया। इनके द्वारा प्रणीत [[महाभारत]] को पंचम वेद कहा जाता है। श्रीमद्भागवत के रूप में भक्ति का सार-सर्वस्व इन्होंने मानव मात्र को सुलभ कराया और ब्रह्मसूत्र के रूप में तत्त्वज्ञान का अनुपम ग्रन्थ-रत्न प्रदान किया। | ||
==सह्रदय व्यास== | ==सह्रदय व्यास== | ||
शुद्धात्मा व्यास जी विपत्ति ग्रस्त [[पाण्डव|पाण्डवों]] की समय-समय पर पूरी सहायता करते रहे। इन्होंने [[संजय]] को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे संजय ने महाभारत का युद्ध प्रत्यक्ष देखने के साथ-साथ श्री[[कृष्ण]] के मुखारविन्द से नि:सृत [[गीता|श्रीमद्भगवद् गीता]] का भी श्रवण किया। महर्षि व्यास की शक्ति अलौकिक थी। एक बार जब ये वन में [[धृतराष्ट्र]] और [[गान्धारी]] से मिलने गये, तब सपरिवार [[युधिष्ठिर|युधिष्टिर]] भी वहाँ उपस्थित थे। धृतराष्ट्र पुत्र शोक से अत्यन्त व्याकुल थे। उन्होंने श्रीव्यास जी से अपने मरे हुए कुटुम्बियों और स्वजनों को देखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि व्यास के आदेशानुसार धृतराष्ट्र आदि [[गंगा]]तट पर पहुँचे। व्यास जी ने गंगा जल में प्रवेश किया और दिवंगत योद्धाओं को पुकारा। जल में युद्धकाल-जैसा कोलाहल सुनायी देने लगा। देखते-ही-देखते [[भीष्म]] और [[द्रोणाचार्य|द्रोण]] के साथ दोनों पक्षों के योद्धा निकल आये। सबकी वेष-भूषा और वाहनादि पूर्ववत थे। सभी ईर्ष्या-द्वेष से शून्य और दिव्य देहधारी थे। वे सभी लोग रात्रि में अपने पूर्व सम्बन्धियों से मिले और सूर्योंदय से पूर्व भागीरथी गंगा में प्रवेश करके अपने दिव्य लोकों को चले गये। भगवान व्यास के इस चमत्कारिक प्रभाव को देखकर धृतराष्ट्र आदि आश्चर्यचकित रह गये। | शुद्धात्मा व्यास जी विपत्ति ग्रस्त [[पाण्डव|पाण्डवों]] की समय-समय पर पूरी सहायता करते रहे। इन्होंने [[संजय]] को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे संजय ने महाभारत का युद्ध प्रत्यक्ष देखने के साथ-साथ श्री[[कृष्ण]] के मुखारविन्द से नि:सृत [[गीता|श्रीमद्भगवद् गीता]] का भी श्रवण किया। महर्षि व्यास की शक्ति अलौकिक थी। एक बार जब ये वन में [[धृतराष्ट्र]] और [[गान्धारी]] से मिलने गये, तब सपरिवार [[युधिष्ठिर|युधिष्टिर]] भी वहाँ उपस्थित थे। धृतराष्ट्र पुत्र शोक से अत्यन्त व्याकुल थे। उन्होंने श्रीव्यास जी से अपने मरे हुए कुटुम्बियों और स्वजनों को देखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि व्यास के आदेशानुसार धृतराष्ट्र आदि [[गंगा नदी|गंगा]]तट पर पहुँचे। व्यास जी ने गंगा जल में प्रवेश किया और दिवंगत योद्धाओं को पुकारा। जल में युद्धकाल-जैसा कोलाहल सुनायी देने लगा। देखते-ही-देखते [[भीष्म]] और [[द्रोणाचार्य|द्रोण]] के साथ दोनों पक्षों के योद्धा निकल आये। सबकी वेष-भूषा और वाहनादि पूर्ववत थे। सभी ईर्ष्या-द्वेष से शून्य और दिव्य देहधारी थे। वे सभी लोग रात्रि में अपने पूर्व सम्बन्धियों से मिले और सूर्योंदय से पूर्व भागीरथी गंगा में प्रवेश करके अपने दिव्य लोकों को चले गये। भगवान व्यास के इस चमत्कारिक प्रभाव को देखकर धृतराष्ट्र आदि आश्चर्यचकित रह गये। | ||
---- | ---- | ||
भगवान व्यास आज भी अमर हैं। समय-समय पर प्रकट होकर ये अधिकारी पुरुषों को अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया करते हैं। भगवान आद्य [[शंकराचार्य]] और मण्डन मिश्र को उनके दर्शन हुए थे। मनुष्य जाति पर भगवान वेदव्यास के अनन्त उपकार हैं। सम्पूर्ण संसार उनका आभारी है। | भगवान व्यास आज भी अमर हैं। समय-समय पर प्रकट होकर ये अधिकारी पुरुषों को अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया करते हैं। भगवान आद्य [[शंकराचार्य]] और मण्डन मिश्र को उनके दर्शन हुए थे। मनुष्य जाति पर भगवान वेदव्यास के अनन्त उपकार हैं। सम्पूर्ण संसार उनका आभारी है। |
Revision as of 07:06, 1 April 2010
व्यास / Vyas
भगवान व्यास भगवान नारायण के ही कलावतार थे। व्यास जी के पिता का नाम पराशर ऋषि तथा माता का नाम सत्यवती था। जन्म लेते ही इन्होंने अपने पिता-माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी।
विभिन्न नाम
यमुना के द्वीप में जन्म होने के कारण व्यास जी को कृष्णद्वैपायन तथा बदरीवन में तपस्या करने के कारण बदरायण व्यास भी कहा जाता है। इन्हें अंगों सहित सम्पूर्ण वेद, पुराण, इतिहास और परमात्मतत्त्व का ज्ञान स्वत: प्राप्त हो गया था। मनुष्यों की आयु क्षीण होते हुए देखकर इन्होंने वेदों का विस्तार किया। इसीलिये ये वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। वेदान्त-दर्शन की शक्ति के साथ अनादि पुराण को लुप्त होते देखकर भगवान कृष्णद्वैपायन ने अठारह पुराणों का प्रणयन किया। इनके द्वारा प्रणीत महाभारत को पंचम वेद कहा जाता है। श्रीमद्भागवत के रूप में भक्ति का सार-सर्वस्व इन्होंने मानव मात्र को सुलभ कराया और ब्रह्मसूत्र के रूप में तत्त्वज्ञान का अनुपम ग्रन्थ-रत्न प्रदान किया।
सह्रदय व्यास
शुद्धात्मा व्यास जी विपत्ति ग्रस्त पाण्डवों की समय-समय पर पूरी सहायता करते रहे। इन्होंने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे संजय ने महाभारत का युद्ध प्रत्यक्ष देखने के साथ-साथ श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से नि:सृत श्रीमद्भगवद् गीता का भी श्रवण किया। महर्षि व्यास की शक्ति अलौकिक थी। एक बार जब ये वन में धृतराष्ट्र और गान्धारी से मिलने गये, तब सपरिवार युधिष्टिर भी वहाँ उपस्थित थे। धृतराष्ट्र पुत्र शोक से अत्यन्त व्याकुल थे। उन्होंने श्रीव्यास जी से अपने मरे हुए कुटुम्बियों और स्वजनों को देखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि व्यास के आदेशानुसार धृतराष्ट्र आदि गंगातट पर पहुँचे। व्यास जी ने गंगा जल में प्रवेश किया और दिवंगत योद्धाओं को पुकारा। जल में युद्धकाल-जैसा कोलाहल सुनायी देने लगा। देखते-ही-देखते भीष्म और द्रोण के साथ दोनों पक्षों के योद्धा निकल आये। सबकी वेष-भूषा और वाहनादि पूर्ववत थे। सभी ईर्ष्या-द्वेष से शून्य और दिव्य देहधारी थे। वे सभी लोग रात्रि में अपने पूर्व सम्बन्धियों से मिले और सूर्योंदय से पूर्व भागीरथी गंगा में प्रवेश करके अपने दिव्य लोकों को चले गये। भगवान व्यास के इस चमत्कारिक प्रभाव को देखकर धृतराष्ट्र आदि आश्चर्यचकित रह गये।
भगवान व्यास आज भी अमर हैं। समय-समय पर प्रकट होकर ये अधिकारी पुरुषों को अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया करते हैं। भगवान आद्य शंकराचार्य और मण्डन मिश्र को उनके दर्शन हुए थे। मनुष्य जाति पर भगवान वेदव्यास के अनन्त उपकार हैं। सम्पूर्ण संसार उनका आभारी है।