बैरम ख़ाँ

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बैरम ख़ाँ, हुमायूँ का सहयोगी तथा उसके नाबालिग पुत्र अकबर का वली अथवा संरक्षक था। वह बादशाह हुमायूँ का परम मित्र तथा सहयोगी था। 1561 ई. में उसकी हत्या कर दी कर दी गई थी।

अकबर का संरक्षक

1556 ई. में हुमायूँ की मृत्यु होने पर बैरम ख़ाँ ने अकबर को उसका उत्तराधिकारी तथा बादशाह घोषित कर दिया, लेकिन शीघ्र ही दिल्ली उसके हाथ से निकल गई। बैरम ख़ाँ के सेनापतित्व में ही 1556 ई. में पानीपत की दूसरी लड़ाई में अकबर की विजय हुई और दिल्ली के तख़्त पर उसका अधिकार हो गया। इसके बाद चार वर्ष बाद तक बैरम ख़ाँ अकबर का संरक्षक रहा और इस अवधि में मुग़ल सेनाओं ने ग्वालियर, अजमेर और जौनपुर राज्यों को जीतकर मुग़ल साम्राज्य में शामिल कर लिया।

बर्ख़ास्तगी

बैरम ख़ाँ ने मालवा को जीतने की तैयारियाँ भी शुरू कर दीं। परन्तु इस बीच बहुत से दरबारी और स्वयं अकबर उसके विरुद्ध हो चुका था। अकबर 18 वर्ष का हो चुका था और उसके हाथ की कठपुतली बनकर नहीं रहना चाहता था। अत: 1560 ई. में उसने बैरम ख़ाँ को बर्ख़ास्त कर दिया।

बग़ावत

बैरम ख़ाँ ने पहले तो उसकी आज्ञा चुपचाप मान ली और मक्का जाने की तैयारियाँ शुरू कर दीं, परन्तु इसके बाद ही उसने बग़ावत का झण्डा बुलन्द कर दिया। अकबर ने उसे परास्त कर दिया और उसके साथ में दया का बरताव किया। उसने बैरम ख़ाँ को मक्का जाने की इजाज़त दे दी।

हत्या

1561 ई. में मक्का जाते समय मार्ग में पाटन (गुजरात) में एक पठान ने उसकी हत्या कर दी। बाद में उसका पुत्र अब्दुर्रहमान अकबर का प्रमुख दरबारी बना।


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