मयूरेश्वर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:04, 30 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''मयूरेश्वर''' या 'मोरेश्वर' भगवान गणेश के '[[अष्टविना...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

मयूरेश्वर या 'मोरेश्वर' भगवान गणेश के 'अष्टविनायक' मंदिरों में से एक है। यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के मोरगाँव में करहा नदी के किनारे अवस्थित है। मोरगाँव, पुणे में बारामती तालुका में स्थित है। यह क्षेत्र भूस्वानंद के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है- "सुख समृद्ध भूमि"। इस क्षेत्र का 'मोर' नाम इसीलिए पड़ा, क्योंकि यह मोर के समान आकार लिए हुए है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में बीते काल में बडी संख्या में मोर पाए जाते थे। इस कारण भी इस क्षेत्र का नाम मोरगाँव प्रसिद्ध हुआ।

मान्यता

मोरगाँव स्थित 'मयूरेश्वर' अष्टविनायक के आठ प्रमुख मंदिरों में से एक है। मयूरेश्वर की मूर्ति यद्यपि आरम्भ में आकार में छोटी थी, परंतु दशक दर दशक इस पर सिन्दूर लगाये जाते रहने के कारण यह आजकल बड़ी दिखती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इस मूर्ति को दो बार पवित्र किया है, जिससे यह अविनाशी हो गई है। एक किंवदंती यह भी है कि ब्रह्मा ने सभी युगों में भगवान गणपति के अवतार की भविष्यवाणी की थी, मयूरेश्वर त्रेतायुग में उनका अवतार थे। गणपति के इन सभी अवतारों ने उन्हें उस विशेष युग के राक्षसों को मारते हुए देखा। कहा जाता है कि गणपति को मयूरेश्वर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने 'मोरेश्वर' में रहने का निश्चय किया और मोर की सवारी की।

अन्य प्रसंग

एक अन्य कथानुसार देवताओं को दैत्यराज सिंधु के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने हेतु गणेश ने मयूरेश्वर का अवतार लिया था। गणपति ने माता पार्वती से कहा कि "माता मैं विनायक दैत्यराज सिंधु का वध करूँगा। तब भोलेनाथ ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कार्य निर्विघ्न पूरा होगा। तब मोर पर बैठकर गणपति ने दैत्य सिंधु की नाभि पर वार किया तथा उसका अंत कर देवताओं को विजय दिलवाई। इसलिए उन्हें 'मयूरेश्वर' की पदवी प्राप्त हुई। मयूरेश्वर को 'मोरेश्वर' भी कहते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः