कर्नाटक का भूगोल

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भौतिक रूप से कर्नाटक को चार भिन्न क्षेत्रों में बांटा गया है- समुद्रतटीय मैदान, पर्वत श्रेणियाँ (पश्चिम घाट), पूर्व में स्थित कर्नाटक का पठार और पश्चिमोत्तर में कपास उत्पाक काली मिट्टी का क्षेत्र। समुद्रतटीय मैदान मालाबार तट का विस्तार हैं और यहाँ जून से सितंबर तक दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से भारी वर्षा होती है। तट पर स्थित रेत के टीले भूमि की ओर बढ़ते हुए छोटे जलोढ़ मैदानों में बदल जाते हैं, जिनमें नारियल के वृक्षों से घिरे अनूप(लैगून) हैं। समुद्र के अलावा अन्य किसी भी मार्ग से तट पर पहुँचना मुश्किल है। पूर्व में पश्चिमी घाट की ढलानों के रूप भूमि तेज़ी से उठती है, जहाँ समुद्र तल से औसत ऊँचाई 760- 915 मीटर है। घाट की वनाच्छादित उच्चभूमि को मलनाड कहा जाता है; यह क्षेत्र एक जल- विभाजक भी है और इसके शीर्ष से मैदानों की ओर कई द्रुतगामी धाराएँ बहती हैं, जिनमें 253 मीटर ऊंचे जोग (जरस्पा) जलप्रपात वाली शरावती नदी भी शामिल है। अन्य नदियाँ लहरदार कर्नाटक के पठार से होकर बहती हैं, जिसकी हल्की ढलान पूर्व की ओर है। पठारी क्षेत्र की समुद्रतल से औसत ऊँचाई लगभग 457 मीटर है; सामान्यत: इसकी मिट्टी सरंध्र और अनुपजाऊ है। यहाँ बहने वाली नदियों के बेसिन की, जिसमें दक्षिण में कावेरी और उत्तर में कृष्णा की सहायक तुंगभद्रा शामिल हैं, मिट्टी चिकनी तथा कुछ हद तक उपजाऊ है। पुराने ज़माने से ही इस क्षेत्र में सिंचाई के जलाशयों के निर्माण के लिए छोटी धाराओं पर बाधं बनाया जाता रहा है और हाल के वर्षों में इनसे अधिकांश पनबिजली का विकास हुआ है। राज्य के पश्चिमोत्तर हिस्से में ज्वालामुखीय चट्टान के क्षेत्र रेगर में समृद्ध कपास की खेती वाली भारतीय काली मिट्टी पाई जाती है।


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