नोह

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  • यह स्थल राजस्थान के भरतपुर ज़िले से 6 किलोमीटर दूर भरतपुर-आगरा मार्ग पर स्थित है।
  • आर.सी. अग्रवाल के निर्देशन में नोह में राज्य सरकार के पुरातत्त्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा उत्खनन करवाया गया।
  • यहाँ से चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
  • यहाँ से प्राप्त सामग्री में अलिखित ताँबे ढले सिक्के, मिट्टी की मूर्तियाँ, पत्थर व मिट्टी के मनके, ताँबे की चूड़ियाँ व वलय तथा चक्की व चूल्हे भी मिले हैं।
  • यहाँ के मृद्भाण्ड काफ़ी चमकीले हैं तथा धातु की तरह खनकते हैं।
  • इस संस्कृति के लोगों को लोहे का ज्ञान था।
  • ताँबे की विभिन्न वस्तुएँ भी यहाँ से प्राप्त हुई हैं।
  • यहाँ से मौर्यकालीन मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
  • इस काल में यहाँ के निवासी पक्की ईंटों के बने मकानों में रहते थे।
  • नोह से मौर्य युगीन भवनों एवं नगर व्यवस्था का पर्याप्त ज्ञान होता है।
  • सफाई व्यवस्था के लिए मौर्यकालीन नगरों के सदृश चक्रकूपों के प्रमाण मिले हैं।
  • यहाँ से लोहे के कृषि सम्बन्धी उपकरण भी प्राप्त हुए हैं।
  • नोह का पंचम काल शुंग-कुषाण युग की कला का प्रतिनिधित्व करता है।
  • इस काल की मृण्मूर्तियों में ख़ाली जगह नहीं रहने दी गयी है बल्कि फल-फूल उकेरकर भर दी गयी है।
  • यहाँ से प्राप्त मूर्तियों से यहाँ के निवासियों के पहनावे का ज्ञान होता है।
  • वे सामने दो गाँठों वाली पगड़ी एवं धोती पहनते थे और उनके पैरों के बीच धोती का तिकोना छोर ज़मीन को छूता था।
  • यहाँ से शुंग युग की अनेक यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
  • यहाँ से कुषाण नरेश हुविष्क एवं वासुदेव के सिक्के मिले हैं।


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