पंचवटी -गुप्त

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:44, 24 October 2011 by कात्या सिंह (talk | contribs) (पंचवटी गुप्त का नाम बदलकर पंचवटी -गुप्त कर दिया गया है)
Jump to navigation Jump to search

मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध खण्डकाव्य 'पंचवटी', जिसका प्रकाशन 1982 वि. में हुआ था, का कथानक राम-साहित्य का चिर-परिचित आख्यान-शूर्पणखा प्रंसग है। पंचवटी के रमणीय वातावरण में राम और सीता पर्णकुटी में विश्राम कर रहें हैं तथा मदनशोभी वीर लक्ष्मण प्रहरी के रूप में कुटिया के बाहर स्वच्छ शिला पर विराजमान हैं। रात्रि के अंतिम प्रहर में शूर्पणखा उपस्थित होती है। ढलती रात में अकेली अबला को उस वन में देखकर लक्ष्मण आश्चर्यचकित रह जाते हैं। लक्ष्मण को विस्मित देख वह 'स्वयं' वार्तालाप आरम्भ करती है और अंतत: विवाह का प्रस्ताव करती है। लक्ष्मण को उसका प्रस्ताव स्वीकार नहीं होता।

वार्तालाप में ही प्रात: काल हो जाता है। पर्णकुटी का द्वार खुलता है। अब शूर्पणखा राम पर मोहित हो जाती है और उन्हीं का वरण करना चाहती है। दोनों ओर से असफल होने पर वह विकराल रूप धारण कर लेती है और अन्तत: लक्ष्मण उसके नाक कान काट लेते हैं। इस पूर्व-परिचित प्रसंग में कवि की कतिपय नूतन उद्भावनाएँ हैं परंतु मूलसूत्र प्राचीन ही है।

मधुर हास्य विनोद

मधुर तरल हास्य-विनोद ने इसे सजीवता प्रदान की है। दृश्यों का नाटकीय परिवर्तन पाठक को बरबस आकृष्ट कर लेता है।

पात्रों का चित्रण

चरित्र-चित्रण में प्राय:परम्परा का ही अनुसरण किया गया है, परंतु फिर भी कवि के दृष्टिकोण पर आधुनिकता की छाप है। पात्रों के इतिहास-प्रतिष्ठित रूप को स्वीकार करने पर भी गुप्तजी ने उन्हें यथासम्भव मानवीय रूप में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।

भाषा शैली

'पंचवटी' की भाषा निखरी हुई खड़ीबोली है। यद्यपि वह प्रौढ़ नहीं है तथापि प्रांजल एवं कांतिमयी है। गुप्त-काव्य के विकास-पथ में 'पंचवटी' एक मार्ग-स्तम्भ है। इसकी रचना से कवि के कृतित्व के प्रारम्भिक काल की समाप्ति एवं मध्यकाल का प्रारम्भ होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 311-312।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः