कुशीनगर का इतिहास

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कुशीनगर प्राचीन भारत के तत्कालीन महाजनपदों में से एक एवं मल्ल राज्य की राजधानी था।[1] यह नगर 26°45’ उत्तरी अक्षांश और 83°55’ पूर्वी देशांतर के बीच स्थित था। वर्तमान समय में यह गोरखपुर से 32 मील (लगभग 51.2 कि.मी.) पूर्व, देवरिया से 21 मील (लगभग 33.6 कि.मी.) उत्तर और पडरौना से 13 मील (लगभग 20.8 कि.मी.) दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।

विद्वान विचार

कनिंघम ने कुशीनगर को वर्तमान देवरिया ज़िले में स्थित 'कसिया' से समीकृत किया है।[2] अपने समीकरण की पुष्टि में उन्होंने 'परिनिर्वाण मंदिर' के पीछे स्थित स्तूप में मिले ताम्रपत्र का उल्लेख किया है। जिस पर 'परिनिर्वाणचैत्य ताम्रपत्र इति' उल्लिखित है।[3] कनिंघम के इस समीकरण से विंसेंट स्मिथ[4] और पार्जिटर प्रभृति विद्वान् सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार कसिया के अवशेषों एवं चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में पर्याप्त भिन्नता है। इस भिन्नता को ध्यान में रखते हुए स्मिथ ने कुशीनगर को नेपाल में पहाड़ियों की पहली श्रृंखला के पार स्थित होने के मत को उचित माना है।[5] रीज डेविड्स के अनुसार यदि हम चीनी यात्रियों के यात्रा विवरणों पर विश्वास करें तो कुशीनगर के मल्लों का प्रदेश, शाक्य प्रदेश के पूर्व में पहाड़ी ढाल पर स्थित होना चाहिए। कुछ अन्य विद्वान उनका प्रदेश शाक्यों के दक्षिण में एवं वज्जिगण के पूर्व में स्थित बतलाते हैं।[6] लेकिन बाद के (1906-1907) पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों के आधार पर कनिंघम की समीक्षा को उचित मानते हुए 'कसिया' और 'कुशीनगर' को एक ही मानना उचित होगा।

कनिंघम को इन भग्नावशेषों से ‘महापरिनिर्वाण विहार’ नामांकित अनेक मृण्मुद्राएँ और स्तूप के भीतर से कुछ ताम्रपत्र भी मिले हैं। इनके अतिरिक्त इन खंडहरों से महात्मा बुद्ध की वैसी ही विशाल मूर्ति प्राप्त हुई है, जैसी कि ह्वेनसांग ने कुशीनगर में देखी थी। 'तथागत' की निर्वाण मूर्ति बौद्ध शिल्पियों का प्रिय विषय रही है, परंतु कसिया जैसी पत्थर की विशाल प्रतिमा अन्यत्र नहीं मिलती। ये विभिन्न तथ्य भी कनिंघम के समीकरण के औचित्य की पुष्टि करते हैं।

वैदिक साहित्य में उल्लेख

वैदिक साहित्य में मल्लों अथवा उनकी राजधानी का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, परंतु परवर्ती साहित्य में उनका वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है। महाभारत के भीष्मपर्व[7] में यह मल्ल राष्ट्र के रूप में वर्णित है, जो अंग, वंग और कलिंग के समान ही पूर्वी भारत में एक प्रमुख राज्य था। बुद्ध-पूर्व युग में वहाँ महासम्मत वंश का राज्य था। इस कुल में इक्ष्वांकु (ओवकाक), कुश तथा महासुदस्सन प्रमुख शासक हुए थे।[8] उनके समय में यह नगर 'कुशावती' नाम से विख्यात था। इसका विस्तार 144 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में था। बुद्ध मेतय के शासन काल में इसे 'केतुमती' नाम से जाना जाता था।[9]

गौतम बुद्ध के पूर्व मल्ल राजतंत्रात्मक राज्य था। वह कब और कैसे गणराज्यों में परिवर्तित हो गया यह कहना कठिन है? किंतु बुद्ध के काल में उसकी स्थिति निश्चित रूप से एक स्वतंत्र गणराज्य की थी। मल्लों के संस्थागार का उल्लेख अनेक स्थलों पर हुआ है जहाँ एकत्र होकर वे विचार-विमर्श करते थे। बुद्ध काल में मल्लों की राजधानी कुशीनगर एक महत्त्वपूर्ण नगर के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी थी।

बौद्ध साहित्य में वर्णन

बौद्ध साहित्य में कुशीनगर का विशद वर्णन मिलता है। इसमें कुशीनगर के साथ 'कुशीनारा'[10], कुशीनगरी[11] और कुशीग्राम[12] प्रभृति अन्य नामों का भी उल्लेख है। बुद्ध-पूर्व युग में यह कुशावती के नाम से विख्यात थी। बुद्ध ने कुशीनगर को प्राचीन कुशावती से अभिहित किया था। विस्तार और समृद्धि की दृष्टि से उनका कहना था कि यह राजधानी पूर्व से पश्चिम 12 योजन लंबी एवं उत्तर से दक्षिण 7 योजन चौड़ी थी।[13] इसमें सात प्राकार, चार तोरण और खजूर वृक्षों के सात निकुंज थे।[14] यह नगर हिरण्यवती नदी के पश्चिमी तट के समीप एक प्रमुख स्थलमार्ग पर स्थित था।[15] इसी स्थल-मार्ग से बावरी ऋषि के शिष्यों के जाने का उल्लेख है।[16] बुद्ध की मृत्यु के समय महाकश्यप भी राजगृह से कुशीनगर इसी मार्ग से गए थे।[17]

नगर की स्थिति

इस नगर की स्थिति, रक्षा एवं व्यापार की दृष्टि से सर्वथा अनुकूल थी। नगर के समीप ही उपवत्तन नामक शालवन था, जिसके एक भाग को मल्लों ने प्रमोद उद्यान में परिणत कर दिया था। यह हिरण्यवती के दूसरे किनारे पर स्थित था।[18] इस उपवत्तन शालवन में ही भगवान ने अंतिम निवास किया था। और यहीं युगल साल वृक्षों के नीचे उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। उपवत्तन शालवन को कनिंघम ने वर्तमान कसिया के ‘माथा कुँवर कोट’ से समीकृत किया है।[19]

बौद्ध ग्रंथों में कुशीनगर एवं अन्य प्रमुख नगरों के बीच की दूरी उल्लिखित है, जो इस नगर की स्थिति निश्चित करने में सहायक है। कुशीनगर से पावा कि दूरी तीन गव्यूत[20] बुद्ध ने अपनी अंतिम यात्रा में इसी रास्ते से ककुक्षा नदी को पार किया था।[21] राजगृह से इस नगर की दूरी 25 योजन[22] एवं 'सागल' (स्यालकोट) से 100 योजन थी।[23] ह्वेनसांग कुशीनगर से 700 मील चलकर वाराणसी पहुँचा था।[24]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंगुत्तरनिकाय, भाग 1, पृ. 213 तत्रैव, भाग 4 पृ. 252 महावस्तु, भाग 1 पृ. 34
  2. ए. कनिंघम, दि ऐंश्येंट ज्योग्राफी आफ् इंडिया, पृ. 363
  3. आर्कियोलाजिकल् सर्वे आफ् इंडिया, वार्षिक रिपोर्ट, 1911-12, पृ. 17
  4. विस्तृत, जर्नल् आफ़ दि रायल एशियाटिक सोसायटी (1902), पृ. 139 और आगे स्मिथ अर्ली हिस्ट्री आफ़ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ. 167, पादटिप्पणी-5 (स्मिथ का यह मत सर्वमान्य नहीं है, क्योंकि ह्वेनसांग के विवरणों के आधार पर कुछ निश्चित करना संभव नहीं है। ह्वेनसांग के आगमन के पश्चात् भी इस स्थान पर निरंतर परिवर्तन होते रहे। रोचक है, सारनाथ में भी, जिसकी स्थिति संदिग्ध नहीं है, ऐसी ही विषमता पाई जाती है।
  5. जर्नल आफ़ दि रायल एशियाटिक सोसायटी, 1913, पृ. 152 तु., विमल चरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, पृ. 171
  6. रीज डेविड्स बुद्धिस्ट इंडिया, वाराणसी, इंडोलाजिकल बुक हाउस (1979) पुनर्मुद्रित, पृ. 26
  7. महाभारत, भीष्मपर्व, 10/45
  8. महावंश, भाग दो, पृ. 1-6 जातक (फाउसबाल संस्करण), भाग दो, पृ. 65 दीर्घनिकाय, भाग 2, (हिंदी अनुवाद राहुल सांकृत्यायन एवं जगदीश काश्यप, महाबोधि सभा, सारनाथ 1935), पृ. 152
  9. जी.पी. मललसेकर, डिक्शनरी आफ पालि प्रापर नेम्स, भाग 1, (लंदन, पालि टेक्ट्स सोसाइटी 1974, पुनर्मुद्रित), पृ. 563
  10. दीघनिकाय, भाग दो, पृ. 109; दीपवंस, भाग 3, पृ. 32
  11. दिव्यावदान, पृ. 152, 153, 194
  12. तत्रैव, पृ. 108
  13. द्रष्टव्य, दीघनिकाय, (हिंदी अनुवाद, राहुल सांस्कृत्यायन एवं जगदीश काश्यप, महाबोधि सभा, सारनाथ (वाराणसी, 1935 ई.) भाग दो, पृ. 146-152 :अयं कुशीनारा, कुशावती नाम राजधानी अहोसि...)
  14. दीघनिकाय, भाग दो, पृ. 170-171
  15. इस नदी को अधिकांश विद्वानों ने छोटी गंडक से समीकृत किया है; (देखें, कनिंघम, ऐंश्येंट ज्योग्राफी आफ़ इंडिया, पृ. 364) भिक्षु धर्मरक्षित के मतानुसार कसिया के समीप बहने वाली 'कुसमीनारा' तथा हिरवा की नारी उसी के अवशेष हैं। द्रष्टव्य भिक्षु धर्मरक्षित, कुशीनगर का इतिहास, पृ. 32
  16. सुत्तनिपात, 5, 10, 12
  17. विनयपिटक, भाग दो, पृ. 284
  18. सारत्थप्पकासिनी, जिल्द पहली, पृ. 222; तुलनीय, भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल (प्रथम संस्करण), पृ. 320
  19. आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया, वार्षिक रिपोर्ट, 1861-62, पृ. 77-38; तुल., ऐंश्येंट ज्योग्राफी आफ इंडिया पृ. 364
  20. लगभग ¾ योजन, आधुनिक 6 मील थी।, सुमंगल विलासिनी, भाग दो, पृ. 573 (पावानगरतो तोणि गावुतानि कुसीनारा नगर)
  21. भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, (प्रथम संस्करण), पृ. 318
  22. ‘कुसीनारातों याव राजगहं पंचसीवति योजनानि’ -सुमंगल विलासिनी, भाग दो, पृ. 609
  23. ‘एकाहेनेव योजनासतिकं मग्गं खेपेत्व...सावलनगरं पाविसि’ जातक, खंड 5, पृ. 290 (फाउसबाल संस्करण)
  24. थामस् वाटर्स, आन् युवान् च्वांग्स ट्रेवेल्स् इन इंडिया, भाग दो, पृ. 46

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