कला और बूढ़ा चाँद -सुमित्रानन्दन पंत

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 11:40, 13 September 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''कला और बूढ़ा चाँद''' छायावादी युग के प्रसिद्ध कवि ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

कला और बूढ़ा चाँद छायावादी युग के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का प्रसिद्ध कविता संग्रह है। पंत जी की कविताओं में प्रकृति और कला के सौंदर्य को प्रमुखता से जगह मिली है। इस कृति के लिए पंत जी को वर्ष 1960 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' द्वारा सम्मानित किया गया था।

बीसवीं शताब्दी के भारतीय अंतस और मानस को समझने के लिए महाकवि पंत के वृहद रचनाकाश को जानना बहुत आवश्यक है। 'वीणा', 'ग्रंथि', 'पल्लव', 'गुंजन', 'ज्योत्स्ना', 'ग्राम्या', 'युगांत', 'उत्तरा', 'अतिमा', 'चिदंबरा' ('भारतीय ज्ञानपीठ' से सम्मानित)</ref> 'कला और बूढ़ा चाँद' [1] तथा 'लोकायतन' जैसे प्रबंध-काव्य के रचयिता सुमित्रानन्दन पंत प्रगीत प्रतिभा के पुरोगामी सर्जक तथा कला-विदग्ध कवि के रूप में व्यापक पाठक वर्ग में समादृत रहे हैं, यद्यपि उन्होंने नाटक, एकांकी, रेडियो-रूपक, उपन्यास, कहानी आदि विधाओं में भी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। पंत जी की समस्त रचनाएँ भारतीय जीवन की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना से गहन साक्षात्कार कराती हैं। उन्होंने खड़ी बोली की प्रकृति और उसके पुरुषार्थ, शक्ति और सामर्थ्य की पहचान का अभिमान ही नहीं चलाया, उसे अभिनंदित भी किया। उनके प्रकृति वर्णन में हृदयस्पर्शी तन्मयता, उर्मिल लयात्मकता और प्रकृत प्रसन्नता का विपुल भाव है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ('साहित्य अकादमी' द्वारा पुरस्कृत)

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः