ककोलत जलप्रपात

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ककोलत जलप्रपात बिहार के नवादा ज़िला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पूर्व प्रखण्ड में स्थित है। यह जलप्रपात प्राचीन काल से प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। आज़ादी से पूर्व घने जंगल और दुर्गम रास्तों के बावजूद यह जलप्रपात अंग्रेज़ों के लिए गर्मी में प्रमुख पर्यटक केंद्र हुआ करता था। सात पर्वत श्रृंखलाओं से प्रवाहित होने वाला ककोलत जलप्रपात और इसकी प्राकृतिक छटा बहुत सारे कोतुहलों को जन्म देती है। यह एक ऐसा जलप्रपात है, जो सुंदरता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से देश के किसी भी जलप्रपात से कम नहीं है।

ऐतिहासिक तथ्य

अंग्रेज़ों के शासन काल में फ़्राँसिस बुकानन ने 1811 ई. में इस जलप्रपात को देखा और कहा कि "जलप्रपात के नीचे का तालाब काफ़ी गहरा है। इसकी गहराई को भरने के उद्देश्य से एक अंग्रेज़ अधिकारी के आदेश पर इसमें स्नान करने वालों को स्नान करने से पहले तालाब में एक पत्थर फेंकने का नियम बनाया गया। इस तालाब में सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं। वर्ष 1994 में इस जलप्रपात के नीचे के तालाब को भर दिया गया, जिससे लोग इसमें आराम से स्नान कर सकें। तब से इसका आकर्षण और बढ़ गया।[1]

धार्मिक मान्यता

ककोलत जलप्रपात से सम्बंधित कई धार्मिक मान्यताएँ हैं, जैसे-

  • पाषाण काल में 'दुर्गा सप्तशती' के रचयिता ऋषि मार्कण्डेय का ककोलत में निवास था।
  • मान्यता यह भी है कि ककोलत जलप्रपात में वैशाखी के अवसर पर स्नान करने मात्र से सांप योनि में जन्म लेने से प्राणी मुक्त हो जाता है।
  • कहा जाता है कि राजा नृप किसी ऋषि के श्राप के कारण अजगर के रूप में इस जलप्रपात में निवास कर रहे थे। तब ऋषि मार्कण्डेय के प्रसन्न होने पर उन्हें इस योनि से मुक्ति मिली।
  • 'महाभारत' में वर्णित कांयक वन आज का ककोलत ही है।
  • अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अपना कुछ समय यहीं पर व्यतीत किया था तथा इसी स्थान पर श्रीकृष्ण ने उन्हे दर्शन दिया था।
  • इस क्षेत्र में कोल जाति के लोग निवास करते थे। इसलिए इसका नाम 'ककोलत' पड़ा।
  • एक मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल में 'मदालसा' नाम की एक पतिव्रता नारी ककोलत के आसपास निवास करती थी और जलप्रपात में अपने रोगी पति को कंधे पर बिठाकर स्नान कराने के लिए प्रतिदिन में ले जाती थी। कुछ समय बाद उसका पति निरोग हो गया।

आकर्षण का केंद्र

यह जलप्रपात प्राचीन काल से प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। देश की आज़ादी से पूर्व घने जंगल और दुर्गम रास्तों के बावजूद यह जलप्रपात अंग्रेज़ों के लिए गर्मी में प्रमुख पर्यटक केंद्र हुआ करता था। प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को यहां पांच दिवसीय 'सतुआनी मेला' पर लोगों का जमावड़ा लगता है। झारखंड से अलग होने के बाद शेष बिहार में ककोलत अकेला ऐसा जलप्रपात है, जिसका पौराणिक और पुरातात्विक महत्व है।[1]

डाक टिकट पर अंकन

बिहार सरकार इस ऐतिहासिक जलप्रपात की महत्ता को समझे या नहीं, लेकिन 'भारत सरकार' के डाक एवं तार विभाग ने इस जलप्रपात की ऐतिहासिक महत्ता को देखते हुए ककोलत जलप्रपात पर पांच रुपये मूल्य का डाक टिकट भी जारी किया। इसका लोकार्पण भी डाक तार विभाग ने 2003 में 'ककोलत विकास परिषद' के अध्यक्ष मसीहउद्दीन से पटना में कराया था।

उपेक्षा का शिकार

आज ककोलत जलप्रपात को जानने वाले लोगों का कहना है कि यदि सरकार बिहार के इस कश्मीर को विकसित कर दे, तो राज्य सरकार को विदेशी मुद्रा की आय होगी और साथ ही अद्भुत पर्यटन स्थल को देखने के लिए देश और दुनिया से बड़ी संख्या में लोग आ सकेंगे। फिलहाल ज़िले के फ़तेहपुर मोड़ से ककोलत जाने के लिए सड़क की स्थिति अच्छी नहीं है। सरकारी महकमा इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाने के बजाय उसके अस्तित्व को मिटाने के लिए तत्पर है। "बिहार का कश्मीर" के नाम से प्रसिद्ध नवादा ज़िले के गोविंदपुर प्रखंड के अंतर्गत पड़ने वाले प्राकृतिक पर्यटन स्थल ककोलत जलप्रपात पर अस्तित्व मिटने का खतरा मंडराने लगा है, जबकि विकास के इस दौर में इसे सबसे ऊपर होना चाहिए था, लेकिन आलम यह है कि विकास कार्यों में इसका स्थान कहीं नहीं है। पिछले एक दशक से इस प्रसिद्ध जलप्रपात की सरकारी उपेक्षा ने स्थानीय लोगों को निराश किया है। यदि ककोलत जलप्रपात को सरकारी प्रयास से विकसित कर दिया जाए तो यहां विदेशी सैलानियों की भीड़ लगी रहेगी, जिससे सरकार के साथ-साथ यहां के लोगों को भी फायदा होगा।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 ककोलत जलप्रपात अस्तित्व पर खतरा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 मई, 2014।

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