मालवा चित्रकला

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मालवा चित्रकला 17वीं सदी में पुस्तक चित्रण की राजस्थानी शैली है जिसका केंद्र मुख्यतः मालवा और बुंदेलखंड[1] थे। भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से इसे कई बार 'मध्य भारतीय चित्रकला' भी कहते हैं।

  • यह मूलतः एक पारंपरिक शैली थी और इसमें 1636 की शृंखला रसिकप्रिया[2] और अमरुशतक[3], जैसे प्रारंभिक उदाहरणों के बाद ज़्यादा विकसित होते नहीं देखा गया।
  • 18वीं सदी में इस चित्रकला शैली के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है।
  • मालवा चित्रकला में बिल्कुल समतल कृतियों, काली और कत्थई भूरी पृष्ठभूमि, ठोस रंग खंडों पर उभरी आकृतियों और शोख़ रंगों में चित्रित वास्तुकला के प्रति विशेष आग्रह दिखाई देता है।
  • इस शैली के सबसे आकर्षक गुण हैं। इनका आदिम लुभावनापना और सहज बालसुलभ दृष्टि है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य
  2. प्रेम की भावना की व्याख्या करती एक कविता
  3. 17वीं सती के उत्तरार्ध की संस्कृत कविता, अब पश्चिम भारत में मुंबई के प्रिंस ऑफ़ वेल्स म्यूज़ियम में

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