बग़दादी

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उन अरबी भाषी इराक़ी या बग़दादी यहूदियों से संबंधित, जो 18वीं और 19वीं शताब्दी में लंदन से जापान तक फैले एक आप्रवासी व्यापार समूह के साथ भारत आए। कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में समुदाय की शुरुआत अलेप्पो के शलोम ओवद्या हाकोहन (1762-1836) द्वारा मानी जाती है, जो कई वर्षों तक सूरत में रहने के बाद 1798 में कलकत्ता आए। कलकत्ता में प्रथम चिह्नित यहूदी क़ब्र 1813 की है और नगर का प्रथम सिनेगॉग (प्रार्थना भवन) 1826 में शुरू हुआ। मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के पहले प्रमुख बग़दादी आप्रवासी मुल्ला अब्राहम नाथन थे, जो मध्य एशिया में ब्रिटिश प्रतिनिधि थे किंतु जल्दी ही डेविड सैसून (1792-1864) उनसे अधिक प्रसिध्द हो गए। जो नगर में 1830 के दशक में आकर बसे और बहुत जल्दी एक व्यावसायिक प्रतिष्टान की स्थापना की, जो मुंबई और साथ ही समूचे एशिया के सबसे बड़े प्रतिष्ठानों में से एक था। पृथक् बग़दादी क़ब्रिस्तान 1850 के दशक का है और उनका पहला सिनेगॉग 1861 का है।

सैसूनों ने मुंबई के बग़दादी समुदाय पर प्रभुत्व बनाए रखा, जिनके लिए उन्होंने दो बड़े सिनेनॉग बनाए और तीसरा पुणे में है, जहाँ स्वयं डेविड सैसून दफ़न हैं। उन्होंने यहूदी विद्यालयों व धर्मार्थ संस्थानों के लिए दान दिया और मुंबई में सामान्य परोपकारी गतिविधियों में भी योगदान किया। सैसून जे॰ डेविड (मृ-1926) मुंबई के बग़दादी थे। उन्होंने मुंबई में सेंट्र्ल बैंक ऑफ़ इंडिया समेत एक बड़ा व्यापारिक संयोजन बनाया और वाइसरॉय की परिषद के सदस्य बने। उनके पुत्र पर्सिवल डेविड (मृ-1964) लंदन में चीनी कला के प्रसिध्द संग्राहक थे। अन्य बग़दादियों के कलकत्ता व बंबई में प्रमुख व्यापारिक प्रातिष्ठान थे या वे, विशेषकर कलकत्ता में, बड़े शहरी ज़मीदार थे।

बग़दादी समुदाय संभवत: लगभग 7,000 के अपने संख्यात्मक शीर्ष पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहुंचा, अब उसकी संख्या म्यांमार (भूतपूर्व बर्मा) के शरणार्थियों के कारण बढ़ गई। भारत की स्वतंत्रता के बाद लगभग सभी बग़दादियों ने भारत छोड़ दिया। उनके कुछ परोपकारी संस्थान व सिनेगॉग अब भी कार्यरत हैं। यद्यपि कई बग़दादी इज़राइल चले गए। इस समुदाय का संभ्रांत वर्ग मुख्यत: यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, और संयुक्त राज्य अमरीका में बस गया।  

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