माठर वृत्ति

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:51, 4 February 2021 by आदित्य चौधरी (talk | contribs) (Text replacement - "डा." to "डॉ.")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
  • सांख्यकारिका की एक अन्य टीका है जिसके टीकाकार कोई माठरचार्य हैं।
  • माठर वृत्ति की, गौडपाद भाष्य तथा सुवर्णसप्तति शास्त्र (परमार्थकृत चीनी अनुवाद) से काफ़ी समानता है।
  • इस समानता के कारण आचार्य उदयवीर शास्त्री ने इसे ही चीनी अनुवाद का आधार माना है।
  • संभवत: इसीलिए उन्होंने सुवर्णसप्तति शास्त्र में सूक्ष्म शरीर विषयक तत्त्वात्मक वर्णन को अठारह तत्त्वों के संघात की मान्यता के रूप में दर्शाने का प्रयास किया।
  • यद्यपि सुवर्णसप्ततिकार के मत का माठर से मतभेद अत्यन्त स्पष्ट है।
  • माठर वृत्ति में पुराणादि के उद्धरण तथा मोक्ष के संदर्भ में अद्वैत वेदान्तीय धारणा के कारण डॉ. आद्या प्रसाद मिश्र भी डॉ. उमेश मिश्र, डॉ. जानसन, एन. अय्यास्वामी शास्त्री की भांति माठरवृत्ति को 1000 ई. के बाद की रचना मानते हैं।
  • ई.ए. सोलोमन द्वारा सम्पादित सांख्य सप्ततिवृत्ति के प्रकाशन से दोनों की समानता एक अन्य संभावना की ओर अस्पष्टत: संकेत करती है कि वर्तमान माठर वृत्ति सांख्यसप्तति वृत्ति का ही विस्तार है।
  • इस संभावना को स्वीकार करने का एक संभावित कारण सूक्ष्म शरीर विषयक मान्यता भी मानी जा सकती है।
  • 40वीं कारिका की टीका में माठर सूक्ष्म शरीर में त्रयोदशकरण तथा पंचतन्त्र मात्र स्वीकार करते हैं।
  • यही परम्परा अन्य व्याख्याओं में स्वीकार की गई है। जबकि सुवर्णसप्तति में सात तत्त्वों का उल्लेख है। जो हो, अभी तो यह शोध का विषय है कि माठर वृत्ति तथा सुवर्णसप्तति का आधार सप्ततिवृत्ति को माना जाय या इन तीनों के मूल किसी अन्य ग्रन्थ की खोज की जाय।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः