Difference between revisions of "इतिहास सामान्य ज्ञान 7"

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{वह प्रथम गुप्त शासक कौन था, जिसने 'परम भागवत' की उपाधि धारण की थी?
 
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-[[चन्द्रगुप्त प्रथम]]
 
-[[समुद्रगुप्त]]
 
+[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
 
-[[श्रीगुप्त]]
 
||[[चित्र:Chandragupta-Coins.JPG|right|140px|चन्द्रगुप्त द्वितीय की मुद्राएँ]]'चन्द्रगुप्त द्वितीय' अथवा [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य]] (शासन: 380-412 ईसवी) [[गुप्त राजवंश]] का राजा था। 'चन्द्रगुप्त द्वितीय' जो कि [[समुद्रगुप्त]] का पुत्र था, समस्त गुप्त राजाओं में सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से सम्पन्न था। शकों पर विजय प्राप्त करके उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की। वह 'शकारि' भी कहलाता था। इसके अतिरिक्त उसने देव, देवगुप्त, देवराज, देवश्री, श्रीविक्रम, विक्रमादित्य, परम भागवत, नरेन्द्रचन्द्र, सिंहविक्रम और अजीत विक्रम आदि की उपाधियाँ भी धारण की थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
 
 
{'गीत गोविन्द' ग्रंथ के रचयिता कौन थे?
 
|type="()"}
 
-धोयी
 
-गोवर्द्धनाचार्य
 
+[[जयदेव]]
 
-[[लक्ष्मण सेन]]
 
||'जयदेव' [[संस्कृत]] के महाकवि थे। ये [[लक्ष्मण सेन]] शासक के दरबारी कवि थे। [[वैष्णव]] [[भक्त]] और [[संत]] के रूप में [[जयदेव]] सम्मानित थे। जयदेव 'गीत गोविन्द' और 'रतिमंजरी' के रचयिता थे। श्रीमद्भागवत के बाद [[राधा]]-[[कृष्ण]] की लीला की अद्‌भुत साहित्यिक रचना उनकी कृति 'गीत गोविन्द' को माना गया है। जयदेव संस्कृत कवियों में अंतिम कवि थे। इनकी सर्वोत्तम गीत रचना 'गीत गोविन्द' के नाम से संस्कृत भाषा में उपलब्ध हुई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जयदेव]]
 
 
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा शासक '[[पृथ्वीराज चौहान]]' के नाम से प्रसिद्ध है?
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा शासक '[[पृथ्वीराज चौहान]]' के नाम से प्रसिद्ध है?
 
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+[[पृथ्वीराज तृतीय]]
 
+[[पृथ्वीराज तृतीय]]
 
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
 
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
||[[चित्र:Prithvi-Raj-Chauhan-Statue-Ajmer.jpg|right|100px|पृथ्वीराज चौहान]]'[[पृथ्वीराज चौहान]]' अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' (जन्म- 1149 - मृत्यु- 1192 ई.) को 'राय पिथौरा' भी कहा जाता है। वह [[चौहान वंश]] का सबसे वीर तथा प्रसिद्ध राजा था। वह [[तोमर|तोमर वंश]] के राजा [[अनंग पाल]] का दौहित्र (बेटी का बेटा) था और उसके बाद [[दिल्ली]] का राजा हुआ था। उसके अधिकार में दिल्ली से लेकर [[अजमेर]] तक का विस्तृत भू-भाग था। पृथ्वीराज ने अपनी राजधानी दिल्ली का नव-निर्माण किया। उससे पहले तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज ने विशाल रूप देकर पूरा किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पृथ्वीराज चौहान]]
+
||[[चित्र:Prithvi-Raj-Chauhan-Statue-Ajmer.jpg|right|100px|पृथ्वीराज चौहान]]'[[पृथ्वीराज चौहान]]' अथवा 'पृथ्वीराज तृतीय' को 'राय पिथौरा' भी कहा जाता है। वह [[चौहान वंश]] का सबसे वीर तथा प्रसिद्ध राजा था। [[पृथ्वीराज चौहान]] [[तोमर|तोमर वंश]] के राजा [[अनंग पाल]] का दौहित्र (बेटी का बेटा) था। वह अनंग पाल के बाद [[दिल्ली]] का राजा हुआ था। पृथ्वीराज के अधिकार में दिल्ली से लेकर [[अजमेर]] तक का विस्तृत भू-भाग था। राजा बनने के बाद उसने अपनी राजधानी दिल्ली का नव-निर्माण किया। उससे पहले तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज चौहान ने विशाल रूप देकर पूरा किया। [[किंवदंती|किंवदंतियों]] के अनुसार [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था, जिसमें से 17 बार ग़ोरी ने पराजय का स्वाद चखा था। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पृथ्वीराज चौहान]], [[चौहान वंश]]
  
{[[चित्तौड़]] के 'कीर्ति स्तम्भ' का निर्माण किसने करवाया था?
+
{[[चित्तौड़]] के '[[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]' का निर्माण किसने करवाया था?
 
|type="()"}
 
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-[[राणा सांगा]]
 
-[[राणा सांगा]]
 
+[[राणा कुम्भा]]
 
+[[राणा कुम्भा]]
 
-[[राणा प्रताप]]
 
-[[राणा प्रताप]]
-राणा उदय सिंह
+
-[[राणा उदय सिंह]]
||'राणा कुम्भा' [[मेवाड़]] के एक महान योद्धा व सफल शासक थे। 1418 ई. में लक्खासिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मोकल मेवाड़ का राजा हुआ, किन्तु 1431 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी 'राणा कुम्भा' हुआ। राणा कुम्भा स्थापत्य का बहुत अधिक शौकीन था। मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िलों का निर्माण उसने करवाया था। [[राणा कुम्भा]] ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी [[मालवा]] के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में [[चित्तौड़]] में एक '[[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]' की स्थापना की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राणा कुम्भा]]
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||[[चित्र:Kirti-Stambh-Chittorgarh-1.jpg|right|80px|कीर्ति स्तम्भ]]'राणा कुम्भा' [[मेवाड़]] के एक महान् योद्धा व सफल शासक थे। 1418 ई. में लक्खासिंह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र मोकल मेवाड़ का राजा हुआ, किन्तु 1431 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी [[राणा कुम्भा]] हुआ। राणा कुम्भा स्थापत्य का बहुत अधिक शौकीन था। मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िलों का निर्माण उसने करवाया था। राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी [[मालवा]] के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में [[चित्तौड़]] में एक '[[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]' की स्थापना करवाई। उसने [[कुम्भलगढ़]] के नवीन नगर एवं क़िलों में अनेक शानदार इमारतें बनवायी थीं। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राणा कुम्भा]], [[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]
  
 
{निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा सही सुमेलित नहीं है?
 
{निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा सही सुमेलित नहीं है?
 
|type="()"}
 
|type="()"}
-[[बाबर]] - [[खानवा]] का युद्ध
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-[[बाबर]] - [[खानवा का युद्ध]]
-[[हुमायूँ]] - चौसा-खानवा का युद्ध
+
-[[हुमायूँ]] - [[चौसा का युद्ध|चौसा]]-[[खानवा का युद्ध]]
 
-[[अकबर]]- [[हल्दीघाटी का युद्ध]]
 
-[[अकबर]]- [[हल्दीघाटी का युद्ध]]
 
+[[जहाँगीर]]- बल्ख का युद्ध
 
+[[जहाँगीर]]- बल्ख का युद्ध
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||[[चित्र:Jahangir-Khusrau-Parviz.jpg|right|120px|अपने पुत्रों के साथ जहाँगीर]]'नूरुद्दीन सलीम जहाँगीर' का जन्म [[फ़तेहपुर सीकरी]] में स्थित [[सलीम चिश्ती|शेख़ सलीम चिश्ती]] की कुटिया में [[भारमल|राजा भारमल]] की बेटी 'मरियम ज़मानी' के गर्भ से [[30 अगस्त]], 1569 ई. को हुआ था। अपने आरंभिक जीवन में [[जहाँगीर]] शराबी और आवारा शाहज़ादे के रूप में बदनाम था। उसके [[पिता]] [[अकबर]] ने उसकी बुरी आदतें छुड़ाने की बड़ी चेष्टा की, किंतु उसे सफलता नहीं मिली। अपने शासनकाल में जहाँगीर ने न्याय व्यवस्था ठीक रखने की ओर विशेष ध्यान दिया। न्यायाधीशों के अतिरिक्त वह स्वयं भी जनता के दु:ख-दर्द को सुनता था। उसके लिए उसने अपने निवास−स्थान से लेकर नदी के किनारे तक एक जंजीर बंधवाई थी। यदि किसी को कुछ फरियाद करनी हो, तो वह उस जंजीर को पकड़ कर खींच सकता था, ताकि उसमें बंधी हुई घंटियों की आवाज़ सुनकर बादशाह उस फरियादी को अपने पास बुला सके। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जहाँगीर]], [[मुग़ल वंश]]
  
{निम्नलिखित संगठनों में से किसने शुद्धि आन्दोलन का समर्थन किया?
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{निम्नलिखित संगठनों में से किसने 'शुद्धि आन्दोलन' का समर्थन किया?
 
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+[[आर्य समाज]]
 
+[[आर्य समाज]]
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-[[ब्रह्म समाज]]
 
-[[ब्रह्म समाज]]
 
-[[प्रार्थना समाज]]
 
-[[प्रार्थना समाज]]
||[[1875]] ई. में [[स्वामी दयानंद सरस्वती]] ने [[बम्बई]] में [[आर्य समाज]] की स्थापना की। दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। आर्य समाज द्वारा 'शुद्धि आन्दोलन' चलाया गया, जिसके अंतर्गत [[हिन्दू धर्म]] का परित्याग कर अन्य [[धर्म]] अपनाने वाले लोगों के लिए पुन: धर्म में वापसी के द्वार खोल दिए गए थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आर्य समाज]]
+
||[[चित्र:Dayanand-Saraswati.jpg|right|90px|दयानंद सरस्वती]][[स्वामी दयानंद सरस्वती]] ने संभवत: [[7 अप्रैल]] या [[10 अप्रैल]] सन [[1875]] ई. को [[बम्बई]] में '[[आर्य समाज]]' की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य [[वैदिक धर्म]] को पुनः शुद्ध रूप से स्थापित करने का प्रयास, [[भारत]] को धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक रूप से एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न और पाश्यात्य प्रभाव को समाप्त करना आदि था। [[दयानंद सरस्वती]] द्वारा चलाये गये 'शुद्धि आन्दोलन' के अन्तर्गत उन लोगों को पुनः [[हिन्दू धर्म]] में आने का मौका मिला, जिन्होंने किसी कारणवश [[इस्लाम धर्म]] स्वीकार कर लिया था। [[एनी बेसेंट]] ने कहा था कि- "स्वामी दयानन्द ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कहा कि 'भारत भारतीयों के लिए है'।" - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आर्य समाज]], [[स्वामी दयानंद सरस्वती]]
 
 
{[[मंगल पांडे]] कहाँ के विद्रोह से जुड़े हुए थे?
 
|type="()"}
 
+[[बैरकपुर]]
 
-[[मेरठ]]
 
-[[दिल्ली]]
 
-उपर्युक्त में से कोई नहीं
 
||[[चित्र:Mangal Panday.jpg|right|100px|मंगल पांडे]]'मंगल पांडे' [[बैरकपुर]] छावनी में 34वीं रेजीमेण्ट में तैनात एक सिपाही थे। क्रांतिकारी [[मंगल पांडे]] का जन्म [[19 जुलाई]], 1827 ई. को [[उत्तर प्रदेश]] के [[फैज़ाबाद]] ज़िले में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम 'दिवाकर पांडे' तथा [[माता]] का नाम श्रीमति 'अभय रानी' था। वे [[कोलकाता]] के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में '34वीं बंगाल नेटिव इन्फ़ैंट्री' की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही थे। [[भारत]] की आज़ादी की पहली लड़ाई अर्थात [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 ई. के विद्रोह]] की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई। [[29 मार्च]], [[1857]] ई. को कुछ सैनिकों ने मंगल पांडे के नेतृत्व में विद्रोह की शुरुआत की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मंगल पांडे]]  
 
 
 
{निम्नलिखित में से किस इमारत का निर्माण [[ग़यासुद्दीन ख़िलजी]] ने करवाया था?
 
|type="()"}
 
+जहाज़ महल
 
-[[अटाला मस्जिद]]
 
-कुश्क महल
 
-[[झंझीरी मस्जिद जौनपुर|झंझीरी मस्जिद]]
 
  
 
{'इण्डिया डिवाइडेड' नाम की पुस्तक के लेखक कौन थे?
 
{'इण्डिया डिवाइडेड' नाम की पुस्तक के लेखक कौन थे?
 
|type="()"}
 
|type="()"}
-[[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद]]
+
-[[अबुलकलाम आज़ाद|मौलाना अबुल कलाम आज़ाद]]
+[[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]
+
+[[राजेंद्र प्रसाद|डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]
-नरेन्द्र देव
+
-[[नरेन्द्र देव]]
-अरुणा आसिफ़ अली
+
-[[अरुणा आसफ़ अली]]
||[[चित्र:Dr.Rajendra-Prasad.jpg|100px|right|डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]'डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद' [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] थे। [[बिहार]] प्रान्त के एक छोटे-से गाँव 'जीरादेयू' में [[3 दिसम्बर]], [[1884]] ई. में [[राजेन्द्र प्रसाद]] का जन्म हुआ था।। राजेन्द्र प्रसाद प्रतिभाशाली और विद्वान व्यक्तियों में से एक थे। ज्ञान के प्रति लगाव होने के कारण ही राजेन्द्र प्रसाद धनी और दरिद्र दोनों के घरों में प्रकाश लाना चाहते थे। उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की, जिनमें 'चम्पारन में सत्याग्रह' (1922 ई.), 'इंडिया डिवाइडेड' (1946 ई.), 'महात्मा गांधी एंड बिहार', 'सम रेमिनिसन्सेज' (1949 ई.) आदि मुख्य थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]
+
||[[चित्र:Dr.Rajendra-Prasad.jpg|100px|right|डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]'डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद' [[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] थे। [[बिहार]] प्रान्त के एक छोटे-से गाँव [[जीरादेयू]] में [[3 दिसम्बर]], [[1884]] ई. में [[राजेन्द्र प्रसाद]] का जन्म हुआ था। राजेन्द्र प्रसाद प्रतिभाशाली और विद्वान् व्यक्तियों में से एक थे। ज्ञान के प्रति लगाव होने के कारण ही राजेन्द्र प्रसाद धनी और दरिद्र दोनों के घरों में प्रकाश लाना चाहते थे। उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की थी, जिनमें 'चम्पारन में सत्याग्रह' ([[1922]] ई.), 'इंडिया डिवाइडेड' ([[1946]] ई.), 'महात्मा गांधी एंड बिहार', 'सम रेमिनिसन्सेज' ([[1949]] ई.) आदि मुख्य थीं। सन [[1962]] में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें '[[भारत रत्‍न]]' की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया था। - अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]
 
 
{'भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन' का सरकारी इतिहासकार कौन था?
 
|type="()"}
 
-आर.सी. मजूमदार
 
-[[वी. डी. सावरकर]]
 
-ताराचन्द्र
 
+एस. एन. सेन
 
 
 
{निम्नलिखित में से कौन [[भक्ति आन्दोलन]] का प्रस्तावक नहीं था?
 
|type="()"}
 
+[[नागार्जुन]]
 
-[[तुकाराम]]
 
-त्यागराज
 
-[[वल्लभाचार्य]]
 
||'नागार्जुन' [[कनिष्क]] के समय का विख्यात विद्वान तथा उच्च कोटि का दार्शनिक था। उसे कनिष्क के दरबार बहुत मान-सम्मान तथा उच्च स्थान प्राप्त था। वह पहला विद्वान था, जिसने [[महायान|महायान धर्म]] के बारे में लिखा। शून्यवाद का प्रतिपादन भी इसी विद्वान ने किया। [[नागार्जुन]] द्वारा लिखी गई रचनाओं में 'माध्यमिक सूत्र' तथा 'परजनापारमित्र' सूत्र रचनाएँ विशेष उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नागार्जुन]]{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नागार्जुन]]
 
 
 
 
 
{'[[बोध गया]]' में 'बोधि वृक्ष' अपने वंश की किस पीढ़ी का है?
 
|type="()"}
 
-तृतीय
 
-चतुर्थ
 
-पंचम
 
+षष्ठम
 
 
 
{विश्व का सबसे ऊँचा कहा जाने वाला 'विश्वशांति स्तूप' [[बिहार]] में कहाँ है?
 
|type="()"}
 
-[[वैशाली]]
 
-[[नालन्दा]]
 
+[[राजगीर]]
 
-[[पटना]]
 
||'राजगीर' [[बिहार]] प्रांत में [[नालंदा ज़िला|नालंदा ज़िले]] में स्थित एक शहर एवं अधिसूचित क्षेत्र है। यह कभी [[मगध साम्राज्य]] की राजधानी हुआ करती थी, जिससे बाद में [[मौर्य साम्राज्य]] का उदय हुआ। [[राजगीर]] जिस समय [[मगध]] की राजधानी थी, उस समय इसे 'राजगृह' के नाम से जाना जाता था। [[मथुरा]] से लेकर [[राजगृह]] तक [[महाजनपद]] का सुन्दर वर्णन [[बौद्ध धर्म]] के ग्रंथों में प्राप्त होता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजगीर]]
 
 
 
{'नव नालन्दा महाविहार' किसके लिये विख्यात है?
 
|type="()"}
 
+[[ह्वेन त्सांग]] का स्मारक
 
-[[महावीर]] का जन्म-स्थान
 
-पालि अनुसंधान संस्थान
 
-संग्रहालय
 
||चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग]] ने [[हर्षवर्धन]] के शासन काल में [[भारत]] की यात्र की थी। उसने अपनी यात्रा 29 वर्ष की अवस्था में 629 ई. में प्रारम्भ की थी। यात्रा के दौरान ताशकन्द, [[समरकन्द]] होता हुआ ह्वेन त्सांग 630 ई. में 'चन्द्र की भूमि' (भारत) के [[गांधार]] प्रदेश पहुँचा। गांधार पहुंचने के बाद ह्वेन त्सांग ने [[कश्मीर]], [[पंजाब]], [[कपिलवस्तु]], [[बनारस]], [[गया]] एवं [[कुशीनगर]] की भी यात्रा की। [[कन्नौज]] के राजा हर्षवर्धन के निमंत्रण पर वह उसके राज्य में लगभग आठ वर्ष (635-643 ई.) तक रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ह्वेन त्सांग]]
 
 
 
{[[अशोक]] के [[ब्राह्मी]] [[अभिलेख|अभिलेखों]] को सर्वप्रथम किसने पढ़ा था?
 
|type="()"}
 
-एस.आर. गोयल
 
+प्रिंसेप
 
-एच.डी. साँकलिया
 
-वी.एन. मिश्रा
 
 
</quiz>
 
</quiz>
 
|}
 
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{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
 
{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
 
{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}}
 
{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}}
{{प्रचार}}
 
 
[[Category:सामान्य ज्ञान]]
 
[[Category:सामान्य ज्ञान]]
 
[[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]]
 
[[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]]
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__INDEX__
 
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__NOTOC__
 
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{{Review-G}}

Latest revision as of 13:28, 15 February 2023

samany jnan prashnottari
rajyoan ke samany jnan


  1. REDIRECTsaancha:nilais vishay se sanbandhit lekh padhean:-
  2. REDIRECTsaancha:nila band itihas praangan, itihas kosh, aitihasik sthan kosh

panne par jaean
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1 nimnalikhit mean se kaun-sa shasak 'prithviraj chauhan' ke nam se prasiddh hai?

prithviraj pratham
prithviraj dvitiy
prithviraj tritiy
uparyukt mean se koee nahian

3 nimnalikhit yugmoan mean se kaun-sa sahi sumelit nahian hai?

babar - khanava ka yuddh
humayooan - chausa-khanava ka yuddh
akabar- haldighati ka yuddh
jahaangir- balkh ka yuddh

4 nimnalikhit sangathanoan mean se kisane 'shuddhi andolan' ka samarthan kiya?

ary samaj
dev samaj
brahm samaj
prarthana samaj

5 'indiya divaided' nam ki pustak ke lekhak kaun the?

maulana abul kalam azad
d aau. rajeandr prasad
narendr dev
aruna asaf ali

panne par jaean
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samany jnan prashnottari
rajyoan ke samany jnan