Difference between revisions of "जालौर"
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जालौर में सोनगरा चौहानों ने परमारों से जालौर को छीनकर अपनी राजधानी बनाया था। चौदहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहाँ का शासक कान्हड़देव था, जो एक शाक्तिशाली चौहान शासक था। | जालौर में सोनगरा चौहानों ने परमारों से जालौर को छीनकर अपनी राजधानी बनाया था। चौदहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहाँ का शासक कान्हड़देव था, जो एक शाक्तिशाली चौहान शासक था। | ||
− | ==== | + | ====जालौर पर ख़िलजी का अधिकार==== |
सन 1305 ई. में कान्हड़देव ने तुर्की आक्रमण को विफल बनाया था। ऐसी मान्यता है कि तुर्कों (ख़िलजी) से कान्हड़देव का कई वर्षों तक संघर्ष चलता रहा और अंत में इसी संघर्ष में कान्हड़देव मारा गया। इस प्रकार जालौर पर [[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]] का अधिकार हो गया। ठीक इसी के साथ ख़िलजी की [[राजपूताना]] की विजय यात्रा पूरी हुई। कान्हड़देव की वीरता की गाथाएँ आज भी [[मारवाड़]] के लोक जीवन में प्रतिध्वनित होती हैं। | सन 1305 ई. में कान्हड़देव ने तुर्की आक्रमण को विफल बनाया था। ऐसी मान्यता है कि तुर्कों (ख़िलजी) से कान्हड़देव का कई वर्षों तक संघर्ष चलता रहा और अंत में इसी संघर्ष में कान्हड़देव मारा गया। इस प्रकार जालौर पर [[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]] का अधिकार हो गया। ठीक इसी के साथ ख़िलजी की [[राजपूताना]] की विजय यात्रा पूरी हुई। कान्हड़देव की वीरता की गाथाएँ आज भी [[मारवाड़]] के लोक जीवन में प्रतिध्वनित होती हैं। | ||
==हिन्दू पद्धति== | ==हिन्दू पद्धति== | ||
− | जालौर का क़िला मारवाड़ के महत्त्वपूर्ण सुदृढ़ क़िलों में से एक है। आरम्भ में यह क़िला परमार शासकों के अधीन रहा। बाद में चौहानों और राठौड़ों का इस पर अधिकार रहा फिर यह मुसलमान शासकों के अधिकार में आ गया। यह क़िला हिन्दू पद्धति से बना है। क़िले में प्राचीन महल, कान्हड़देव की बावड़ी, वीरमदेव की चौकी, [[जैन]] मन्दिर और मल्लिकशाह की दरगाह आदि वास्तु शिल्प के मुख्य नमूने हैं। खगोल शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान ब्रह्मगुप्त इस क्षेत्र से सम्बद्ध रहे हैं। | + | जालौर का क़िला मारवाड़ के महत्त्वपूर्ण सुदृढ़ क़िलों में से एक है। आरम्भ में यह क़िला परमार शासकों के अधीन रहा। बाद में चौहानों और राठौड़ों का इस पर अधिकार रहा फिर यह मुसलमान शासकों के अधिकार में आ गया। यह क़िला [[हिन्दू]] पद्धति से बना है। क़िले में प्राचीन महल, कान्हड़देव की बावड़ी, वीरमदेव की चौकी, [[जैन]] मन्दिर और मल्लिकशाह की दरगाह आदि वास्तु शिल्प के मुख्य नमूने हैं। [[खगोल विज्ञान|खगोल शास्त्र]] के प्रकाण्ड विद्वान ब्रह्मगुप्त इस क्षेत्र से सम्बद्ध रहे हैं। |
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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Revision as of 09:25, 18 March 2012
rajasthan ke dakshin-pashchim mean sthit jalaur poorv madhyakal ka ek mahattvapoorn sthal raha hai. maharshi jabali ki tapobhoomi jalaur ko pahale jabalipur kahate the.
itihas
jalaur mean sonagara chauhanoan ne paramaroan se jalaur ko chhinakar apani rajadhani banaya tha. chaudahavian shatabdi ke prarambh mean yahaan ka shasak kanh dadev tha, jo ek shaktishali chauhan shasak tha.
jalaur par khilaji ka adhikar
san 1305 ee. mean kanh dadev ne turki akraman ko viphal banaya tha. aisi manyata hai ki turkoan (khilaji) se kanh dadev ka kee varshoan tak sangharsh chalata raha aur aant mean isi sangharsh mean kanh dadev mara gaya. is prakar jalaur par khilaji ka adhikar ho gaya. thik isi ke sath khilaji ki rajapootana ki vijay yatra poori huee. kanh dadev ki virata ki gathaean aj bhi marava d ke lok jivan mean pratidhvanit hoti haian.
hindoo paddhati
jalaur ka qila marava d ke mahattvapoorn sudridh qiloan mean se ek hai. arambh mean yah qila paramar shasakoan ke adhin raha. bad mean chauhanoan aur rathau doan ka is par adhikar raha phir yah musalaman shasakoan ke adhikar mean a gaya. yah qila hindoo paddhati se bana hai. qile mean prachin mahal, kanh dadev ki bav di, viramadev ki chauki, jain mandir aur mallikashah ki daragah adi vastu shilp ke mukhy namoone haian. khagol shastr ke prakand vidvan brahmagupt is kshetr se sambaddh rahe haian.
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