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यह मध्यकालीन नगर, पश्चिमी [[मध्य प्रदेश]] राज्य के [[मालवा]] क्षेत्र में स्थित है। पहाड़ियों और अनेक झीलों से घिरा यह नगर विंध्याचल की उत्तरी ढलानों पर स्थित है। धार [[नर्मदा नदी]] घाटी के निकट के दर्रे में स्थित है।
 
यह मध्यकालीन नगर, पश्चिमी [[मध्य प्रदेश]] राज्य के [[मालवा]] क्षेत्र में स्थित है। पहाड़ियों और अनेक झीलों से घिरा यह नगर विंध्याचल की उत्तरी ढलानों पर स्थित है। धार [[नर्मदा नदी]] घाटी के निकट के दर्रे में स्थित है।
 
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==इतिहास==
 
==इतिहास==
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प्राचीन काल में धार शहर की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से धार मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है। बेरन पहाड़ियों से घिरे इस शहर को झीलों और हरे-भरे वृक्षों ने आच्छादित कर रखा है। इस शहर में अनेक हिन्दू और मुस्लिम स्मारकों के अवशेष देखे जा सकते हैं। एक जमाने में मालवा की राजधानी रहा यह शहर धार क़िला और भोजशाला मस्जिद की वजह से पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रहता है।<ref name="यात्रा सलाह">{{cite web |url=http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=400 |title=धार |accessmonthday=[[28 अक्टूबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=यात्रा सलाह |language=हिन्दी}}</ref>
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यह एक प्राचीन नगर है, जिसकी उत्पत्ति राजा मुंज वाक्पति से जुड़ी है। दसवीं और तेरहवीं सदी के भारतीय इतिहास में धार का महत्त्वपूर्ण स्थान था। नौवीं से चौदहवीं सदी में यह परमार राजपूतों के अधीन मालवा की राजधानी था। प्रसिद्ध राजा [[भोज]] ( लगभग 1010-55 ) के शासनकाल में यह अध्ययन का विशिष्ट केंद्र था। उन्होंने इसे अत्यधिक प्रसिद्धि दिलाई। 14वीं सदी में इसे मुग़लों ने जीत लिया और 1730 में यह मराठों के क़ब्ज़े में चला गया, इसके बाद 1742 में यह मराठा सामंत आनंदराव पवार द्वारा स्थापित धार रियासत की राजधानी बना। धार की लाट मस्जिद या [[मीनार मस्जिद]] (1405) जैन मंदिरों के खंडहर पर निर्मित है। इसके नाम की उत्पत्ति एक विध्वंसित लौह स्तंभ (13बीं सदी ) के आधार पर हुई। इस स्तंभ पर एक अभिलेख है जिसमें यहाँ 1598 में शाहजहाँ [[अकबर]] के आगमन का वर्णन है। धार में कमाल मौलाना की भव्य समाधि और 14वीं या 15वीं शताब्दी में निर्मित एक मस्जिद भी है जो भोजनशाला के नाम से विख्यात है। इसके नाम की उत्पत्ति यहाँ लगे हुए संस्कृत व्याकरण के नियम संबंधी उत्कीर्णित पत्थरों से हुई। इसके ठीक उत्तर में एक 14वीं सदी का क़िला है। कहा जाता है कि इसे [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] ने बनवाया था। इसमें राजा का महल भी था। 'मालवा की रानी' के रूप में वर्णित धार के महलों, मंदिरों , महाविद्यालयों, रंगशालाओं और बगीचों के लिये प्रसिद्ध है। शहर में एक पुस्तकालय, अस्पताल, संगीत अकादमी और विक्रम विश्वविद्यालय ( वर्तमान देवी अहिल्या विश्वविद्यालय) से संबंध एक शासकीय महाविद्यालय भी है।
 
यह एक प्राचीन नगर है, जिसकी उत्पत्ति राजा मुंज वाक्पति से जुड़ी है। दसवीं और तेरहवीं सदी के भारतीय इतिहास में धार का महत्त्वपूर्ण स्थान था। नौवीं से चौदहवीं सदी में यह परमार राजपूतों के अधीन मालवा की राजधानी था। प्रसिद्ध राजा [[भोज]] ( लगभग 1010-55 ) के शासनकाल में यह अध्ययन का विशिष्ट केंद्र था। उन्होंने इसे अत्यधिक प्रसिद्धि दिलाई। 14वीं सदी में इसे मुग़लों ने जीत लिया और 1730 में यह मराठों के क़ब्ज़े में चला गया, इसके बाद 1742 में यह मराठा सामंत आनंदराव पवार द्वारा स्थापित धार रियासत की राजधानी बना। धार की लाट मस्जिद या [[मीनार मस्जिद]] (1405) जैन मंदिरों के खंडहर पर निर्मित है। इसके नाम की उत्पत्ति एक विध्वंसित लौह स्तंभ (13बीं सदी ) के आधार पर हुई। इस स्तंभ पर एक अभिलेख है जिसमें यहाँ 1598 में शाहजहाँ [[अकबर]] के आगमन का वर्णन है। धार में कमाल मौलाना की भव्य समाधि और 14वीं या 15वीं शताब्दी में निर्मित एक मस्जिद भी है जो भोजनशाला के नाम से विख्यात है। इसके नाम की उत्पत्ति यहाँ लगे हुए संस्कृत व्याकरण के नियम संबंधी उत्कीर्णित पत्थरों से हुई। इसके ठीक उत्तर में एक 14वीं सदी का क़िला है। कहा जाता है कि इसे [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] ने बनवाया था। इसमें राजा का महल भी था। 'मालवा की रानी' के रूप में वर्णित धार के महलों, मंदिरों , महाविद्यालयों, रंगशालाओं और बगीचों के लिये प्रसिद्ध है। शहर में एक पुस्तकालय, अस्पताल, संगीत अकादमी और विक्रम विश्वविद्यालय ( वर्तमान देवी अहिल्या विश्वविद्यालय) से संबंध एक शासकीय महाविद्यालय भी है।
==कृषि==
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==कृषि और खनिज==
यह एक प्रमुख कृषि केंद्र है, यहाँ के प्रमुख उद्योगों में कपास ओटाई व धुनाई, हस्तकौशल और हस्तकरघा उद्यम शामिल हैं। ज्वार-बाजरा, मक्का, दालें और कपास यहाँ की प्रमुख फ़सलें है। [[माही नदी|माही]], [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] व [[चंबल नदी|चंबल]] नदी प्रणाली से सिचाई की जाती है। यह सड़क और रेलमार्ग से [[इंदौर]] मउ , [[खंडवा]] और क्षेत्र के अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों से जुड़ा एक प्रमुख कृषि केंद्र है।
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यह एक प्रमुख कृषि केंद्र है। ज्वार-बाजरा, मक्का, दालें और कपास यहाँ की प्रमुख फ़सलें है। [[माही नदी|माही]], [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] व [[चंबल नदी|चंबल]] नदी प्रणाली से सिचाई की जाती है।  
 
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==व्यापार और उद्योग==
==स्मारक==
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यहाँ के प्रमुख उद्योगों में कपास ओटाई व धुनाई, हस्तकौशल और हस्तकरघा उद्यम शामिल हैं।
इसकी कुछ प्राचीन स्मारकों का वर्णन इस प्रकार है:-
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==यातायात और परिवहन==
====भोजनशाला====
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यह सड़क और रेलमार्ग से [[इंदौर]] मउ , [[खंडवा]] और क्षेत्र के अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों से जुड़ा हुआ है।
राजा भोज ने जो विद्वानों का प्रख्यात संरक्षक था, इस नाम की एक विशाल पाठशाला बनवायी थी। इसको तोड़कर मुसलमानों ने कमाल-मौला नामक मस्जिद बनवाई। इसके फ़र्श में भोज की पाठशाला के अनेक स्लेटी पत्थर जुड़े हैं, जिन पर संस्कृत तथा महाराष्ट्री प्राकृत के अनेक अभिलेख अंकित थे। पाठशाला के खंडहरों के अनेक ऐसे पत्थर मिले हैं, जिन पर पारिजात-मंजरी और कर्मस्तोत्र नामक सम्पूर्ण काव्य उत्कीर्ण थे।
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'''<u>वायु मार्ग</u>'''
====लाट मस्जिद====
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धार का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में है। यह हवाई अड्डा [[दिल्ली]], मुम्बई, भोपाल और [[ग्वालियर]] आदि शहरों से नियमित विमानों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
यह मस्जिद भी धारा के परमाकालीन मन्दिरों को तोड़कर उनकी सामग्री से बनी थी। इसका निर्माता दिलावर ख़ाँ था। इनकी मृत्यु 1405 में हुई थी।
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'''<u>रेल मार्ग</u>'''
====क़िला====
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[[रतलाम]] और इंदौर यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन है। देश के प्रमुख शहरों से यह रेलवे स्टेशन अनेक रेलगाड़ियों के माध्यम से नियमित रूप से जुड़ा हुआ है।
महमूद तुग़लक ने इस क़िले को 1344 ई. में बनवाया था। 1731 ई. में इस पर पवाँर राजपूतों का अधिकार हो गया था।
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'''<u>सड़क मार्ग</u>'''
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धार मध्य प्रदेश के अनेक शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इंदौर, [[मांडू]], [[मऊ]], रतलाम, उज्‍जैन और भोपाल से मध्य प्रदेश परिवहन निगम की नियमित बसें धार के लिए चलती हैं।
 
==जनसंख्या==
 
==जनसंख्या==
 
धार नगर की जनसंख्या ( 2001) 75,472 है और कुल ज़िला की जनसंख्या 17,40,577 है।
 
धार नगर की जनसंख्या ( 2001) 75,472 है और कुल ज़िला की जनसंख्या 17,40,577 है।
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==पर्यटन स्थल==
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====धार क़िला====
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यह क़िला नगर के उत्तर में स्थित एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है। यह विशाल क़िला लाल बलुआ पत्थर से बना है, और समृद्ध इतिहास के आइने का झरोखा है, जो अनेक उतार-चढ़ावों को देख चुका है। महमूद तुग़लक ने इस क़िले को 1344 ई. में बनवाया था। 1731 ई. में इस पर पवाँर राजपूतों का अधिकार हो गया था। इस क़िले का महत्व [[1857]] के विद्रोह दौरान बढ़ गया था। क्रांतिकारियों ने विद्रोह के दौरान इस क़िले पर अधिकार कर लिया था। बाद में ब्रिटिश सेना ने क़िले पर पुन: अधिकार कर लिया और यहाँ के लोगों पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए। हिन्दु, मुस्लिम और अफ़गान शैली में बना यह क़िला पर्यटकों को लुभाने में सफल होता है।<ref name="यात्रा सलाह"/>
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====भोजशाला मस्जिद====
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भोजशाला मस्जिद मूल रूप से एक मंदिर के तौर पर स्थापित था, जिसे राजा भोज ने बनवाया था। लेकिन जब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना तो यह क्षेत्र उसके साम्राज्य में मिल गया। उसने इस मंदिर को मस्जिद में तब्दील करवा दिया। इसके फ़र्श में भोज की पाठशाला के अनेक स्लेटी पत्थर जुड़े हैं, जिन पर संस्कृत तथा महाराष्ट्री प्राकृत के अनेक अभिलेख अंकित थे, जो इसके इसके मंदिर होने की पुष्टि करते हैं। पाठशाला के खंडहरों के अनेक ऐसे पत्थर मिले हैं, जिन पर पारिजात-मंजरी और कर्मस्तोत्र नामक सम्पूर्ण काव्य उत्कीर्ण थे।<ref name="यात्रा सलाह"/>
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====फाडके स्टूडियो====
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[[1933]] में मुम्बई से प्रसिद्ध मूर्तिकार रघुनाथ कृष्ण फाडके धार आए थे। उन्हें धार के महाराजा ने  मूर्तियाँ बनाने के लिए बुलवाया था। फाडके ने खांडेराव टेकरी में अपना स्टूडिया स्थापित किया जिसे बाद में फाडके स्टूडियो के नाम से जाना गया। फाडके को उनकी मूर्ति तत्व चिंतन के लिए [[1961]] में [[पद्मश्री]] पुरस्‍कार से नवाजा गया। [[1971]] में उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि भी प्रदान की गई। उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियों को धार, [[इंदौर]], [[देवस]], [[उज्‍जैन]] और [[मुम्बई]] में स्थापित किया गया है। फाडके और उनके अनुयायियों द्वारा बनाई गई अनेक मूर्तियों को फाडके स्टूडियो में रखा गया है।<ref name="यात्रा सलाह"/>
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====मोहनखेडा====
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मोहनखेडा एक पवित्र जैन तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है जो धार से लगभग 47 किलोमीटर की दूरी पर है। इंदौर-[[अहमदाबाद]] हाइवे पर स्थित इस तीर्थस्थल की स्थापना पूज्य गुरूदेव श्री राजेन्द्र सुरीशस्वामी महाराज साहब ने [[1940]] के आसपास की थी। आचार्य देव श्री विद्याचन्द्र सुरीशश्‍वरजी महाराज ने इसे नया और कलात्मक रूप प्रदान किया। भगवान आदिनाथ की 16 फीट ऊँची प्रतिमा यहाँ के शोध शिखरी जिनालय में स्थापित है। यहाँ बना समाधि मंदिर भी लोकप्रिय है। यह मंदिर राजेन्द्र सुरीशश्‍वरजी, यतीन्द्र सुरीशश्‍वरजी और श्री विद्याचन्द्र सुरीशश्‍वरजी को समर्पित है।<ref name="यात्रा सलाह"/>
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====अमझेरा====
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धार से लगभग 40 किलोमीटर दूर सरदारपुर तहसील में अमझेरा गाँव स्थित है। इस गाँव में [[शैव संप्रदाय|शैव]] और वैष्णव संप्रदाय के अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। यहाँ के अधिकांश शैव मंदिर [[महादेव]], [[चामुंडा]], [[अंबिका]] को समर्पित हैं। लक्ष्मीनारायण और चतुभरुजंता मंदिर [[वैष्णव संप्रदाय]] के लोकप्रिय मंदिर हैं। गाँव के निकट ही ब्रह्म कुंड और सूर्य कुंड नामक दो टैंक हैं। राजपूत सरदारों को समर्पित तीन स्मारक गाँव के पास ही बने हुए हैं। 18-19वीं शताब्दी के बीच [[जोधपुर]] के राजा राम सिंह राठौर ने यहाँ एक क़िला भी बनवाया था। इस काल के तीन शानदार महल भी क़िले में बने हुए हैं। क़िले के रंगमहल में बनें भिति‍चित्रों से दरबारी जीवन की झलक देखने को मिलती है।<ref name="यात्रा सलाह"/>
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====बाघ गुफ़ाएं====
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{{main|बाघ की गुफ़ाएं}}
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इन गुफाओं का संबंध बौद्ध मत से है। यहाँ अनेक बौद्ध मठ और मंदिर देखे जा सकते हैं। अजंता और एलोरा गुफाओं की तर्ज पर ही बाघ गुफाएं बनी हुई हैं। इन गुफाओं में बनी प्राचीन चित्रकारी मनुष्य को हैरत में डाल देती है। इन गुफाओं की खोज़ 1818 में की गई थी। बाघ गुफा के कारण ही यहां बसे गांव को बाघ गांव और यहां से बहने वाली नदी को बाघ नदी के नाम से जाना जाता है।<ref name="यात्रा सलाह"/>
  
 
 
प्राचीन काल में धार शहर की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से धार मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है।  बेरन पहाड़ियों से घिर इस शहर को झीलों और हरे-भरे वृक्षों ने आच्छादित कर रखा है। धार के प्राचीन शहर में अनेक हिन्दू और मुस्लिम स्मारकों के अवशेष देखे जा सकते हैं। एक जमाने में मालवा की राजधानी रहा यह शहर धार किला और भोजशाला मस्जिद की वजह से पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रहता है। साथ ही इसके आसपास अनेक ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जो पर्यटकों को रिझाने में कामयाब होते हैं।
 
 
क्या देखें
 
धार किला- नगर के उत्तर में स्थित यह किला एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है। लाल बलुआ पत्थर से बना यह विशाल किला समृद्ध इतिहास के आइने का झरोखा है, जो अनेक उतार-चढ़ावों को देख चुका है। 14वीं शताब्दी के आसपास सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने यह किला बनवाया था। 1857 के विद्रोह दौरान इस किले का महत्व बढ़ गया था। क्रांतिकारियों ने विद्रोह के दौरान इस किले पर अधिकार कर लिया था। बाद में ब्रिटिश सेना ने किले पर पुन: अधिकार कर लिया और यहां के लोगों पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए। हिन्दु, मुस्लिम और अफगान शैली में बना यह किला पर्यटकों को लुभाने में सफल होता है।
 
 
भोजशाला मस्जिद- भोजशाला मस्जिद मूल रूप से एक मंदिर के तौर पर स्थापित था, जिसे राजा भोज ने बनवाया था। लेकिन जब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना तो यह क्षेत्र उसके साम्राज्य में मिल गया। उसने इस मंदिर को मस्जिद में तब्दील करवा दिया। भोजशाला मस्जिद में संस्कृत में अनेक अभिलेख खुदे हुए हैं जो इसके इसके मंदिर होने की पुष्टि करते हैं।
 
 
फाडके स्टूडियो- प्रसिद्ध मूर्तिकार रघुनाथ कृष्ण फाडके 1933 में मुम्बई से धार आए थे। धार के महाराजा ने उन्हें मूर्तियां बनाने के लिए बुलवाया था। फाडके ने खांडेराव टेकरी में अपना स्टूडिया स्थापित किया जिसे बाद में फाडके स्टूडियो के नाम से जाना गया। फाडके को उनकी मूर्ति तत्व चिंतन के लिए 1961 में पद्मश्री पुरस्‍कार से नवाजा गया। 1971 में उन्हें डॉक्टरट की उपाधि भी प्रदान की गई। उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियों को धार, इंदौर, देवस, उज्‍जैन और मुम्बई में स्थापित किया गया है। फाडके और उनके अनुयायियों द्वारा बनाई गई अनेक मूर्तियों को फाडके स्टूडियो में रखा गया है।
 
 
मोहनखेडा- मोहनखेडा एक पवित्र जैन तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है जो धार से लगभग 47 किमी. की दूरी पर है। इंदौर-अहमदाबाद हाइवे पर स्थित इस तीर्थस्थल की स्थापना पूज्य गुरूदेव श्री राजेन्द्र सुरीशस्वामी महाराज साहब ने 1940 के आसपास की थी। आचार्य देव श्री विद्याचन्द्र सुरीशश्‍वरजी महाराज साहब ने इसे नया और कलात्मक रूप प्रदान किया। यहां के शोध शिखरी जिनालय में भगवान आदिनाथ की 16 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। साथ ही यहां बना समाधि मंदिर भी खासा लोकप्रिय है। यह मंदिर राजेन्द्र सुरीशश्‍वरजी, यतीन्द्र सुरीशश्‍वरजी और श्री विद्याचन्द्र सुरीशश्‍वरजी को समर्पित है।
 
 
अमझेरा- धार से लगभग 40 किमी. दूर सरदारपुर तहसील में अमझेरा गांव स्थित है। इस गांव में शैव और वैष्णव संप्रदाय के अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। यहां के अधिकांश शैव मंदिर महादेव, चामुंडा, अंबिका को समर्पित हैं। लक्ष्मीनारायण और चतुभरुजंता मंदिर वैष्णव संप्रदाय के लोकप्रिय मंदिर हैं। गांव के निकट ही ब्रह्म कुंड और सूर्य कुंड नामक दो टैंक हैं। गांव के पास ही राजपूत सरदारों को समर्पित तीन स्मारक बने हुए हैं। जोधपुर के राजा राम सिंह राठौर ने 18-19वीं शताब्दी के बीच यहां एक किला भी बनवाया था। किले में इस काल के तीन शानदार महल भी बने हुए हैं। किले के रंगमहल में बनें भिति‍चित्रों से दरबारी जीवन की झलक देखने को मिलती है।
 
 
बाघ गुफाएं- इन गुफाओं का संबंध बौद्ध मत से है। यहां अनेक बौद्ध मठ और मंदिर देखे जा सकते हैं। अजंता और एलोरा गुफाओं की तर्ज पर ही बाघ गुफाएं बनी हुई हैं। इन गुफाओं में बनी प्राचीन चित्रकारी मनुष्य को हैरत में डाल देती है। इन गुफाओं की खोज 1818 में की गई थी। माना जाता है कि दसवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के पतन के बाद इन गुफाओं को मनुष्य ने भुला दिया था और यहां बाघ निवास करने लगे। इसीलिए इन्हें बाघ गुफाओं के नाम से जाना जाता है। बाघ गुफा के कारण ही यहां बसे गांव को बाघ गांव और यहां से बहने वाली नदी को बाघ नदी के नाम से जाना जाता है।
 
 
कैसे जाएं
 
वायु मार्ग- धार का निकटतम एयरपोर्ट इंदौर में है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुम्बई, भोपाल और ग्वालियर आदि शहरों से नियमित फ्लाइटों के माध्यम से जुड़ा है।
 
रेल मार्ग- रतलाम और इंदौर यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन है। देश के प्रमुख शहरों से यह रेलवे स्टेशन अनेक रेलगाड़ियों के माध्यम से नियमित रूप से जुड़ा हुआ है।
 
सड़क मार्ग- धार मध्य प्रदेश के अनेक शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इंदौर, मांडू, मऊ, रतलाम, उज्‍जैन और भोपाल से मध्य प्रदेश परिवहन निगम की नियमित बसें धार के लिए चलती हैं।
 
 
[[Category:मध्य प्रदेश]]
 
[[Category:मध्य प्रदेश]]
 
[[Category:मध्य प्रदेश के नगर]]
 
[[Category:मध्य प्रदेश के नगर]]
 
[[Category:मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल]]  [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थल]] [[Category:पर्यटन कोश]]
 
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Revision as of 10:01, 28 October 2010

yah madhyakalin nagar, pashchimi madhy pradesh rajy ke malava kshetr mean sthit hai. paha diyoan aur anek jhiloan se ghira yah nagar viandhyachal ki uttari dhalanoan par sthit hai. dhar narmada nadi ghati ke nikat ke darre mean sthit hai.

itihas

prachin kal mean dhar shahar ki sthapana paramar raja bhoj ne ki thi. aitihasik aur saanskritik drishti se dhar madhy pradesh ka ek mahatvapoorn shahar hai. beran paha diyoan se ghire is shahar ko jhiloan aur hare-bhare vrikshoan ne achchhadit kar rakha hai. is shahar mean anek hindoo aur muslim smarakoan ke avashesh dekhe ja sakate haian. ek jamane mean malava ki rajadhani raha yah shahar dhar qila aur bhojashala masjid ki vajah se paryapt sankhya mean paryatakoan ko akarshit karane mean saphal rahata hai.[1]

yah ek prachin nagar hai, jisaki utpatti raja muanj vakpati se ju di hai. dasavian aur terahavian sadi ke bharatiy itihas mean dhar ka mahattvapoorn sthan tha. nauvian se chaudahavian sadi mean yah paramar rajapootoan ke adhin malava ki rajadhani tha. prasiddh raja bhoj ( lagabhag 1010-55 ) ke shasanakal mean yah adhyayan ka vishisht keandr tha. unhoanne ise atyadhik prasiddhi dilaee. 14vian sadi mean ise mugaloan ne jit liya aur 1730 mean yah marathoan ke qabze mean chala gaya, isake bad 1742 mean yah maratha samant anandarav pavar dvara sthapit dhar riyasat ki rajadhani bana. dhar ki lat masjid ya minar masjid (1405) jain mandiroan ke khandahar par nirmit hai. isake nam ki utpatti ek vidhvansit lauh stanbh (13bian sadi ) ke adhar par huee. is stanbh par ek abhilekh hai jisamean yahaan 1598 mean shahajahaan akabar ke agaman ka varnan hai. dhar mean kamal maulana ki bhavy samadhi aur 14vian ya 15vian shatabdi mean nirmit ek masjid bhi hai jo bhojanashala ke nam se vikhyat hai. isake nam ki utpatti yahaan lage hue sanskrit vyakaran ke niyam sanbandhi utkirnit pattharoan se huee. isake thik uttar mean ek 14vian sadi ka qila hai. kaha jata hai ki ise muhammad bin tugalaq ne banavaya tha. isamean raja ka mahal bhi tha. 'malava ki rani' ke roop mean varnit dhar ke mahaloan, mandiroan , mahavidyalayoan, rangashalaoan aur bagichoan ke liye prasiddh hai. shahar mean ek pustakalay, aspatal, sangit akadami aur vikram vishvavidyalay ( vartaman devi ahilya vishvavidyalay) se sanbandh ek shasakiy mahavidyalay bhi hai.

krishi aur khanij

yah ek pramukh krishi keandr hai. jvar-bajara, makka, dalean aur kapas yahaan ki pramukh fasalean hai. mahi, narmada v chanbal nadi pranali se sichaee ki jati hai.

vyapar aur udyog

yahaan ke pramukh udyogoan mean kapas otaee v dhunaee, hastakaushal aur hastakaragha udyam shamil haian.

yatayat aur parivahan

yah s dak aur relamarg se iandaur mu , khandava aur kshetr ke any mahattvapoorn nagaroan se ju da hua hai. vayu marg dhar ka nikatatam havaee adda iandaur mean hai. yah havaee adda dilli, mumbee, bhopal aur gvaliyar adi shaharoan se niyamit vimanoan ke madhyam se ju da hua hai. rel marg ratalam aur iandaur yahaan ka nazadiki relave steshan hai. desh ke pramukh shaharoan se yah relave steshan anek relaga diyoan ke madhyam se niyamit roop se ju da hua hai. s dak marg dhar madhy pradesh ke anek shaharoan se s dak marg se ju da hua hai. iandaur, maandoo, moo, ratalam, ujh‍jain aur bhopal se madhy pradesh parivahan nigam ki niyamit basean dhar ke lie chalati haian.

janasankhya

dhar nagar ki janasankhya ( 2001) 75,472 hai aur kul zila ki janasankhya 17,40,577 hai.

paryatan sthal

dhar qila

yah qila nagar ke uttar mean sthit ek chhoti paha di par bana hua hai. yah vishal qila lal balua patthar se bana hai, aur samriddh itihas ke aine ka jharokha hai, jo anek utar-chadhavoan ko dekh chuka hai. mahamood tugalak ne is qile ko 1344 ee. mean banavaya tha. 1731 ee. mean is par pavaanr rajapootoan ka adhikar ho gaya tha. is qile ka mahatv 1857 ke vidroh dauran badh gaya tha. kraantikariyoan ne vidroh ke dauran is qile par adhikar kar liya tha. bad mean british sena ne qile par pun: adhikar kar liya aur yahaan ke logoan par anek prakar ke atyachar kie. hindu, muslim aur afagan shaili mean bana yah qila paryatakoan ko lubhane mean saphal hota hai.[1]

bhojashala masjid

bhojashala masjid mool roop se ek mandir ke taur par sthapit tha, jise raja bhoj ne banavaya tha. lekin jab alauddin khilaji dilli ka sultan bana to yah kshetr usake samrajy mean mil gaya. usane is mandir ko masjid mean tabdil karava diya. isake farsh mean bhoj ki pathashala ke anek sleti patthar ju de haian, jin par sanskrit tatha maharashtri prakrit ke anek abhilekh aankit the, jo isake isake mandir hone ki pushti karate haian. pathashala ke khandaharoan ke anek aise patthar mile haian, jin par parijat-manjari aur karmastotr namak sampoorn kavy utkirn the.[1]

phadake stoodiyo

1933 mean mumbee se prasiddh moortikar raghunath krishna phadake dhar ae the. unhean dhar ke maharaja ne moortiyaan banane ke lie bulavaya tha. phadake ne khaanderav tekari mean apana stoodiya sthapit kiya jise bad mean phadake stoodiyo ke nam se jana gaya. phadake ko unaki moorti tatv chiantan ke lie 1961 mean padmashri purash‍kar se navaja gaya. 1971 mean unhean d aauktaret ki upadhi bhi pradan ki gee. unake dvara banaee gee moortiyoan ko dhar, iandaur, devas, ujh‍jain aur mumbee mean sthapit kiya gaya hai. phadake aur unake anuyayiyoan dvara banaee gee anek moortiyoan ko phadake stoodiyo mean rakha gaya hai.[1]

mohanakheda

mohanakheda ek pavitr jain tirth sthal ke roop mean vikhyat hai jo dhar se lagabhag 47 kilomitar ki doori par hai. iandaur-ahamadabad haive par sthit is tirthasthal ki sthapana poojy guroodev shri rajendr surishasvami maharaj sahab ne 1940 ke asapas ki thi. achary dev shri vidyachandr surishashh‍varaji maharaj ne ise naya aur kalatmak roop pradan kiya. bhagavan adinath ki 16 phit ooanchi pratima yahaan ke shodh shikhari jinalay mean sthapit hai. yahaan bana samadhi mandir bhi lokapriy hai. yah mandir rajendr surishashh‍varaji, yatindr surishashh‍varaji aur shri vidyachandr surishashh‍varaji ko samarpit hai.[1]

amajhera

dhar se lagabhag 40 kilomitar door saradarapur tahasil mean amajhera gaanv sthit hai. is gaanv mean shaiv aur vaishnav sanpraday ke anek prachin mandir bane hue haian. yahaan ke adhikaansh shaiv mandir mahadev, chamuanda, aanbika ko samarpit haian. lakshminarayan aur chatubharujanta mandir vaishnav sanpraday ke lokapriy mandir haian. gaanv ke nikat hi brahm kuand aur soory kuand namak do taiank haian. rajapoot saradaroan ko samarpit tin smarak gaanv ke pas hi bane hue haian. 18-19vian shatabdi ke bich jodhapur ke raja ram sianh rathaur ne yahaan ek qila bhi banavaya tha. is kal ke tin shanadar mahal bhi qile mean bane hue haian. qile ke rangamahal mean banean bhiti‍chitroan se darabari jivan ki jhalak dekhane ko milati hai.[1]

bagh gufaean

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

in guphaoan ka sanbandh bauddh mat se hai. yahaan anek bauddh math aur mandir dekhe ja sakate haian. ajanta aur elora guphaoan ki tarj par hi bagh guphaean bani huee haian. in guphaoan mean bani prachin chitrakari manushy ko hairat mean dal deti hai. in guphaoan ki khoz 1818 mean ki gee thi. bagh gupha ke karan hi yahaan base gaanv ko bagh gaanv aur yahaan se bahane vali nadi ko bagh nadi ke nam se jana jata hai.[1]

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 1.5 1.6 dhar (hindi) yatra salah. abhigaman tithi: 28 aktoobar, 2010.