Difference between revisions of "कौड़ी"

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कौड़ी एक पानी में पाये जाने वाले जीव का खोल (अस्थिकोश) मात्र है। उपवर्ग प्रोसोब्रैंकिया (वर्ग गैस्ट्रोपोडा) के कई समुद्री घोंघों में से एक है, जो वंश साइप्रिया और कुल साइप्रियाडी बनाते हैं। इनका कूबड़नुमा मोटा खोल, रंगीन (अक्सर चित्तीदार) और चमकदार होता है। इनके सुराख़दार ओंठ, जो खोल के पहले चक्कर में खुलते हैं, अन्दर की तरफ़ मुड़े होते हैं और इनमें महीन दांत हो सकते हैं।
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'''कौड़ी''' [[जल]] में पाये जाने वाले जीव का खोल (अस्थि कोश) मात्र है। यह उपवर्ग 'प्रोसोब्रैंकिया' (वर्ग 'गैस्ट्रोपोडा') के कई समुद्री घोंघों में से एक है, जो वंश 'साइप्रिया' और कुल 'साइप्रियाडी' बनाते हैं। इनका कूबड़नुमा मोटा खोल, रंगीन<ref>अक्सर चित्तीदार</ref> और चमकदार होता है। इनके सुराख़दार ओंठ, जो खोल के पहले चक्कर में खुलते हैं, अन्दर की तरफ़ मुड़े होते हैं और इनमें महीन [[दांत]] हो सकते हैं।
;प्राप्ति स्थान  
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==प्राप्ति स्थान==
कौड़ियाँ मुख्यत: [[हिन्द महासागर|हिन्द]] और [[प्रशान्त महासागर]] के तटीय जल में मिलती हैं। 10 सेमी. की स्वर्णिम कौड़ी (सी ऑरेंटियम) परम्परागत रूप से प्रशान्त द्वीपों में राजाओं द्वारा पहनी जाती थी और 2.5 सेमी. पीली रंग की प्रजाति की कौड़ी (सी मॉनेटा) अफ़्रीका और अन्य क्षेत्रों में मुद्रा का काम करती थी। कौड़ी का प्रयोग [[भारत]] में छोटी मुद्रा के रूप में भी हुआ।
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कौड़ियाँ मुख्यत: [[हिन्द महासागर|हिन्द]] और [[प्रशान्त महासागर]] के तटीय जल में मिलती हैं। 10 से.मी. की स्वर्णिम कौड़ी (सी ऑरेंटियम) परम्परागत रूप से प्रशान्त द्वीपों में राजाओं द्वारा पहनी जाती थी और 2.5 से.मी. [[पीला रंग|पीले रंग]] की प्रजाति की कौड़ी (सी मॉनेटा) [[अफ़्रीका]] और अन्य क्षेत्रों में मुद्रा का काम करती थी। कौड़ी का प्रयोग [[भारत]] में छोटी मुद्रा के रूप में भी हुआ।
 
;खेल के रूप में
 
;खेल के रूप में
चौपड़ और चौपड़ जैसे मिलते-जुलते खेलों में पासों के स्थान पर कौड़ियों का प्रयोग होता रहा। जिसका कारण था पासों का मँहगा और दुर्लभ होना।
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चौपड़ और चौपड़ जैसे मिलते-जुलते खेलों में पासों के स्थान पर कौड़ियों का प्रयोग होता रहा है, जिसका कारण था पासों का मँहगा और दुर्लभ होना।
 
;शृंगार के रूप में
 
;शृंगार के रूप में
कौड़ी भारत के लगभग सभी राज्यों में स्त्रियों में शृंगार का साधन भी रही जैसे - गले में कौड़ियों की माला आदि। घरों में सजावट के लिए कौड़ी आज भी इस्तेमाल की जाती है।
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कौड़ी भारत के लगभग सभी राज्यों में स्त्रियों में शृंगार का साधन भी रही, जैसे- गले में कौड़ियों की माला आदि। घरों में सजावट के लिए कौड़ी आज भी इस्तेमाल की जाती है।
 
;संख्या के लिए उपयोग
 
;संख्या के लिए उपयोग
कौड़ी संख्या के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। एक कौड़ी में बीस वस्तुऐं मानी जाती है। आमतौर पर बाँस दर्ज़न के बजाय एक कौड़ी के हिसाब से मिलते है।
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कौड़ी संख्या के लिए भी उपयोग में लाई जाती है। एक कौड़ी में बीस वस्तुऐं मानी जाती हैं। आमतौर पर [[बाँस]] दर्ज़न के बजाय एक कौड़ी के हिसाब से मिलते हैं।
 
;कहावत
 
;कहावत
*दो कौड़ी की हैसियत हो जाना (बरबाद हो जाना)
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*'दो कौड़ी की हैसियत हो जाना' (बरबाद हो जाना)
*कौड़ियों के भाव (बहुत सस्ता )
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*'कौड़ियों के भाव' (बहुत सस्ता )
*दूर की कौड़ी लाना (कोई अच्छा सुझाव देना)
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*'दूर की कौड़ी लाना' (कोई अच्छा सुझाव देना)
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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==संबंधित लेख==
 
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Revision as of 12:05, 14 December 2013

thumb|kau diyaan|250px kau di jal mean paye jane vale jiv ka khol (asthi kosh) matr hai. yah upavarg 'prosobraiankiya' (varg 'gaistropoda') ke kee samudri ghoanghoan mean se ek hai, jo vansh 'saipriya' aur kul 'saipriyadi' banate haian. inaka koob danuma mota khol, rangin[1] aur chamakadar hota hai. inake surakhadar oanth, jo khol ke pahale chakkar mean khulate haian, andar ki taraf mu de hote haian aur inamean mahin daant ho sakate haian.

prapti sthan

kau diyaan mukhyat: hind aur prashant mahasagar ke tatiy jal mean milati haian. 10 se.mi. ki svarnim kau di (si aaureantiyam) paramparagat roop se prashant dvipoan mean rajaoan dvara pahani jati thi aur 2.5 se.mi. pile rang ki prajati ki kau di (si m aauneta) afrika aur any kshetroan mean mudra ka kam karati thi. kau di ka prayog bharat mean chhoti mudra ke roop mean bhi hua.

khel ke roop mean

chaup d aur chaup d jaise milate-julate kheloan mean pasoan ke sthan par kau diyoan ka prayog hota raha hai, jisaka karan tha pasoan ka manhaga aur durlabh hona.

shriangar ke roop mean

kau di bharat ke lagabhag sabhi rajyoan mean striyoan mean shriangar ka sadhan bhi rahi, jaise- gale mean kau diyoan ki mala adi. gharoan mean sajavat ke lie kau di aj bhi istemal ki jati hai.

sankhya ke lie upayog

kau di sankhya ke lie bhi upayog mean laee jati hai. ek kau di mean bis vastuaian mani jati haian. amataur par baans darzan ke bajay ek kau di ke hisab se milate haian.

kahavat
  • 'do kau di ki haisiyat ho jana' (barabad ho jana)
  • 'kau diyoan ke bhav' (bahut sasta )
  • 'door ki kau di lana' (koee achchha sujhav dena)


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. aksar chittidar

bahari k diyaan

sanbandhit lekh