Difference between revisions of "रैक्व"

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*जनश्रुति का प्रपौत्र जानश्रुति अपनी दानशीलता के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। एक रात राजा जानश्रुति ने दो उड़ते हुए हंसों को परस्पर बात करते सुनां एक हंस ने कहा - 'ओ मल्लाक्ष, देख, राजा जानश्रुति (जनश्रुति के प्रपौत्र) का तेज़ द्युलोक का स्पर्श कर रहा है। तुझे भस्म न कर डाले, जरा संभलकर उड़ना।'
*[[जनश्रुति]] का प्रपौत्र जानश्रुति अपनी दानशीलता के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। एक रात राजा जानश्रुति ने दो उड़ते हुए हंसों को परस्पर बात करते सुनां एक हंस ने कहा - 'ओ मल्लाक्ष, देख, राजा जानश्रुति (जनश्रुति के प्रपौत्र) का तेज द्युलोक का स्पर्श कर रहा है। तुझे भस्म न कर डाले, जरा संभलकर उड़ना।'
 
 
*मल्लाक्ष ने कहा - 'क्या तू राजा जानश्रुति को गाड़ी वाले रैक्वा के समान समझता है? रैक्व तो अत्यंत ज्ञानी है। जिस प्रकार द्यूतक्रीड़ा में कृत नामक पासा जीतने के उपरांत अपने से निम्न श्रेणी के समस्त अंक उस खिलाड़ी को मिल जाते हैं, वैसे ही कृतस्थानीय रैक्व को त्रेतादि स्थानीय समस्त सुकृतों का फल प्राप्त हो जाता है।'
 
*मल्लाक्ष ने कहा - 'क्या तू राजा जानश्रुति को गाड़ी वाले रैक्वा के समान समझता है? रैक्व तो अत्यंत ज्ञानी है। जिस प्रकार द्यूतक्रीड़ा में कृत नामक पासा जीतने के उपरांत अपने से निम्न श्रेणी के समस्त अंक उस खिलाड़ी को मिल जाते हैं, वैसे ही कृतस्थानीय रैक्व को त्रेतादि स्थानीय समस्त सुकृतों का फल प्राप्त हो जाता है।'
*यह सुनकर राजा ने अनेक प्रयत्नों से रैक्व को खोज निकाला। जब राजा का अनुचर उसके पास पहुंचा तो वह अपने छकड़े के नीचे पड़ा खुजला रहा था। राजा ने उसे अनेक गाय, धन, धान्य, गांव तथा अपनी कन्या सौंपकर उससे ज्ञान प्राप्त किया। जिस ग्राम में रैक्व रहता था, वह रैक्वपार्ण नाम से प्रसिद्ध हुआ। <ref>[[छान्दोग्य उपनिषद]], अध्याय 4, खंड 1,2 (संपूर्ण)</ref>
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*यह सुनकर राजा ने अनेक प्रयत्नों से रैक्व को खोज निकाला। जब राजा का अनुचर उसके पास पहुंचा तो वह अपने छकड़े के नीचे पड़ा खुजला रहा था। राजा ने उसे अनेक गाय, धन, धान्य, गांव तथा अपनी कन्या सौंपकर उससे ज्ञान प्राप्त किया। जिस ग्राम में रैक्व रहता था, वह रैक्वपार्ण नाम से प्रसिद्ध हुआ। <ref>[[छान्दोग्य उपनिषद]], अध्याय 4, खंड 1,2 (संपूर्ण</ref>
  
  
  
  
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Latest revision as of 11:16, 14 October 2011

  • janashruti ka prapautr janashruti apani danashilata ke lie door-door tak vikhyat tha. ek rat raja janashruti ne do u date hue hansoan ko paraspar bat karate sunaan ek hans ne kaha - 'o mallaksh, dekh, raja janashruti (janashruti ke prapautr) ka tez dyulok ka sparsh kar raha hai. tujhe bhasm n kar dale, jara sanbhalakar u dana.'
  • mallaksh ne kaha - 'kya too raja janashruti ko ga di vale raikva ke saman samajhata hai? raikv to atyant jnani hai. jis prakar dyootakri da mean krit namak pasa jitane ke uparaant apane se nimn shreni ke samast aank us khila di ko mil jate haian, vaise hi kritasthaniy raikv ko tretadi sthaniy samast sukritoan ka phal prapt ho jata hai.'
  • yah sunakar raja ne anek prayatnoan se raikv ko khoj nikala. jab raja ka anuchar usake pas pahuancha to vah apane chhak de ke niche p da khujala raha tha. raja ne use anek gay, dhan, dhany, gaanv tatha apani kanya sauanpakar usase jnan prapt kiya. jis gram mean raikv rahata tha, vah raikvaparn nam se prasiddh hua. [1]



tika tippani aur sandarbh

  1. chhandogy upanishad, adhyay 4, khand 1,2 (sanpoorn


sanbandhit lekh