Difference between revisions of "श्राद्ध की महत्ता"

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सूत्रकाल (लगभग ई. पू. 600) से लेकर मध्यकाल के धर्मशास्त्रकारों तक सभी लोगों ने श्राद्ध की महत्ता एवं उससे उत्पन्न कल्याण की प्रशंसा के पुल बाँध दिये हैं। [[आपस्तम्ब धर्मसूत्र]]<ref>आपस्तम्ब धर्मसूत्र (2|7|16|1-3</ref> ने अधोलिखित सूचना दी है- 'पुराने काल में मनुष्य एवं देव इसी लोक में रहते थे। देव लोग यज्ञों के कारण (पुरस्कारस्वरूप) स्वर्ग चले गये, किन्तु मनुष्य यहीं पर रह गये। जो मनुष्य देवों के समान यज्ञ करते हैं वे परलोक (स्वर्ग) में देवों एवं [[ब्रह्मा]] के साथ निवास करते हैं। तब (मनुष्यों को पीछे रहते देखकर) मनु ने उस कृत्य को आरम्भ किया जिसे श्राद्ध की संज्ञा मिली है, जो मानव जाति को श्रेय (मुक्ति या आनन्द) की ओर ले जाता है। इस कृत्य में पितर लोग देवता (अधिष्ठाता) हैं, किन्तु ब्राह्मण लोग (जिन्हें भोजन दिया जाता है) आहवानीय अग्नि (जिसमें [[यज्ञ|यज्ञों]] के समय आहुतियाँ दी जाती हैं) के स्थान पर माने जाते हैं।" इस अन्तिम सूत्र के कारण हरदत्त (आपस्तम्ब धर्मसूत्र के टीकाकार) एवं अन्य लोगों का कथन है कि [[श्राद्ध]] में [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को खिलाना प्रमुख कृत्य है।  
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[[चित्र:Pitra-Puja-shradh.jpg|thumb|250px|पितृ पूजा ([[श्राद्ध]]) संस्कार करते श्रद्धालु]]
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सूत्रकाल (लगभग ई. पू. 600) से लेकर मध्यकाल के धर्मशास्त्रकारों तक सभी लोगों ने [[श्राद्ध]] की महत्ता एवं उससे उत्पन्न कल्याण की प्रशंसा के पुल बाँध दिये हैं। [[आपस्तम्ब धर्मसूत्र]]<ref>[[आपस्तम्ब धर्मसूत्र]] 2|7|16|1-3</ref> ने अधोलिखित सूचना दी है- 'पुराने काल में मनुष्य एवं देव इसी लोक में रहते थे। देव लोग [[यज्ञ|यज्ञों]] के कारण (पुरस्कारस्वरूप) स्वर्ग चले गये, किन्तु मनुष्य यहीं पर रह गये। जो मनुष्य देवों के समान यज्ञ करते हैं वे परलोक (स्वर्ग) में देवों एवं [[ब्रह्मा]] के साथ निवास करते हैं। तब (मनुष्यों को पीछे रहते देखकर) मनु ने उस कृत्य को आरम्भ किया जिसे श्राद्ध की संज्ञा मिली है, जो मानव जाति को श्रेय (मुक्ति या आनन्द) की ओर ले जाता है। इस कृत्य में पितर लोग देवता (अधिष्ठाता) हैं, किन्तु ब्राह्मण लोग (जिन्हें भोजन दिया जाता है) आहवानीय अग्नि (जिसमें [[यज्ञ|यज्ञों]] के समय आहुतियाँ दी जाती हैं) के स्थान पर माने जाते हैं।" इस अन्तिम सूत्र के कारण हरदत्त<ref>[[आपस्तम्ब धर्मसूत्र]] के टीकाका</ref>) एवं अन्य लोगों का कथन है कि [[श्राद्ध]] में [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को खिलाना प्रमुख कृत्य है।  
  
ब्रह्माण्डपुराण<ref>ब्रह्माण्डपुराण (उपोदघातपाद 9|15 एवं 10|99</ref> ने मनु को श्राद्ध के कृत्यों का प्रवर्तक एवं विष्णुपुराण<ref>[[विष्णु पुराण]] (3|1|30</ref>, [[वायु पुराण]]<ref>वायु पुराण (44|38</ref> एवं [[भागवत पुराण]]<ref>[[भागवत पुराण]] (3|1|22</ref> ने श्राद्धदेव कहा है। इसी प्रकार [[शान्ति पर्व महाभारत|शान्तिपर्व]]<ref>शान्तिपर्व (345|14-21</ref> एवं विष्णुधर्मोत्तर॰<ref>विष्णुधर्मोत्तर॰ (1|139|14-16</ref> में आया है कि श्राद्धप्रथा का संस्थापन [[विष्णु]] के वराह अवतार के समय हुआ और विष्णु को पिता, पितामह और प्रपितामह को दिये गये तीन पिण्डों में अवस्थित मानना चाहिए। इससे और आपस्तम्ब धर्मसूत्र के वचन से ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि ईसा की कई शताब्दियों पूर्व श्राद्धप्रथा का प्रतिष्ठापन हो चुका था और यह मानवजाति के पिता मनु के समान ही प्राचीन है।<ref>ऋग्वेद 8|63|1 एवं 8|30|3</ref> किन्तु यह ज्ञातव्य है कि 'श्राद्ध' शब्द किसी भी प्राचीन वैदिक वचन में नहीं पाया जाता, यद्यपि पिण्डपितृयज्ञ (जो अहिताग्नि द्वारा प्रत्येक मास की अमावस्या को सम्पादित होता था)<ref>'पिण्डपितृयज्ञ' श्राद्ध ही है, जैसा कि गोभिलगृह्यसूत्र (4|4|1-2) में आया है–'अन्वष्टक्यस्थालीपाकेन पिण्डपितृयज्ञ व्याख्यात:। अमावास्यां तच्छाद्धमितरदन्वहार्यम्।' और देखिए श्रा. प्र. (पृ. 4)। पिण्डपितृयज्ञ एवं महापितृयज्ञ के लिए देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड 2, अध्याय 30 एवं 31।</ref>,  
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[[ब्रह्माण्ड पुराण]]<ref>[[ब्रह्माण्ड पुराण]] उपोदघातपाद 9|15 एवं 10|99</ref> ने मनु को श्राद्ध के कृत्यों का प्रवर्तक एवं [[विष्णु पुराण]]<ref>[[विष्णु पुराण]] 3|1|30</ref>, [[वायु पुराण]]<ref>[[वायु पुराण]] 44|38</ref> एवं [[भागवत पुराण]]<ref>[[भागवत पुराण]] 3|1|22</ref> ने श्राद्धदेव कहा है। इसी प्रकार [[शान्ति पर्व महाभारत|शान्तिपर्व]]<ref>[[शान्ति पर्व महाभारत|शान्तिपर्व]] 345|14-21</ref> एवं विष्णुधर्मोत्तर॰<ref>विष्णुधर्मोत्तर॰ 1|139|14-16</ref> में आया है कि श्राद्धप्रथा का संस्थापन [[विष्णु]] के [[वराह अवतार]] के समय हुआ और [[विष्णु]] को पिता, पितामह और प्रपितामह को दिये गये तीन पिण्डों में अवस्थित मानना चाहिए। इससे और आपस्तम्ब धर्मसूत्र के वचन से ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि ईसा की कई शताब्दियों पूर्व श्राद्धप्रथा का प्रतिष्ठापन हो चुका था और यह मानवजाति के पिता मनु के समान ही प्राचीन है।<ref>[[ऋग्वेद]] 8|63|1 एवं 8|30|3</ref> किन्तु यह ज्ञातव्य है कि 'श्राद्ध' शब्द किसी भी प्राचीन वैदिक वचन में नहीं पाया जाता, यद्यपि पिण्डपितृयज्ञ (जो अहिताग्नि द्वारा प्रत्येक मास की अमावस्या को सम्पादित होता था)<ref>'पिण्डपितृयज्ञ' श्राद्ध ही है, जैसा कि गोभिलगृह्यसूत्र 4|4|1-2 में आया है–'अन्वष्टक्यस्थालीपाकेन पिण्डपितृयज्ञ व्याख्यात:। अमावास्यां तच्छाद्धमितरदन्वहार्यम्।' और देखिए श्रा. प्र. (पृ. 4)। पिण्डपितृयज्ञ एवं महापितृयज्ञ के लिए देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड 2, अध्याय 30 एवं 31।</ref>,  
  
महापितृयज्ञ (चातुर्मास्य या साकमेघ में सम्पादित) उपं अष्टका आरम्भिक वैदिक साहित्य में ज्ञात थे। [[कठोपनिषद]]<ref>कठोपनिषद् (1|3|17</ref> में 'श्राद्ध' शब्द आया है; जो भी कोई इस अत्यन्त विशिष्ट सिद्धान्त को ब्राह्मणों की सभा में या श्राद्ध के समय उदघोषित करता है, वह अमरता प्राप्त करता है।' 'श्राद्ध' शब्द के अन्य आरम्भिक प्रयोग सूत्र साहित्य में प्राप्त होते हैं। अत्यन्त तर्कशील एवं सम्भव अनुमान यही निकाला जा सकता है कि पितरों से सम्बन्धित बहुत ही कम कृत्य उन दिनों किये जाते थे, अत: किसी विशिष्ट नाम की आवश्यकता प्राचीन काल में नहीं समझी गयी। किन्तु पितरों के सम्मान में किये गये कृत्यों की संख्या में जब अधिकता हुई तो श्राद्ध शब्द की उत्पत्ति हुई।  
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महापितृयज्ञ (चातुर्मास्य या साकमेघ में सम्पादित) उपं अष्टका आरम्भिक [[वैदिक साहित्य]] में ज्ञात थे। [[कठोपनिषद]]<ref>[[कठोपनिषद]] 1|3|17</ref> में 'श्राद्ध' शब्द आया है; जो भी कोई इस अत्यन्त विशिष्ट सिद्धान्त को ब्राह्मणों की सभा में या श्राद्ध के समय उदघोषित करता है, वह अमरता प्राप्त करता है।' 'श्राद्ध' शब्द के अन्य आरम्भिक प्रयोग सूत्र साहित्य में प्राप्त होते हैं। अत्यन्त तर्कशील एवं सम्भव अनुमान यही निकाला जा सकता है कि पितरों से सम्बन्धित बहुत ही कम कृत्य उन दिनों किये जाते थे, अत: किसी विशिष्ट नाम की आवश्यकता प्राचीन काल में नहीं समझी गयी। किन्तु पितरों के सम्मान में किये गये कृत्यों की संख्या में जब अधिकता हुई तो श्राद्ध शब्द की उत्पत्ति हुई।  
  
 
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Revision as of 11:07, 19 September 2011

[[chitr:Pitra-Puja-shradh.jpg|thumb|250px|pitri pooja (shraddh) sanskar karate shraddhalu]] sootrakal (lagabhag ee. poo. 600) se lekar madhyakal ke dharmashastrakaroan tak sabhi logoan ne shraddh ki mahatta evan usase utpann kalyan ki prashansa ke pul baandh diye haian. apastamb dharmasootr[1] ne adholikhit soochana di hai- 'purane kal mean manushy evan dev isi lok mean rahate the. dev log yajnoan ke karan (puraskarasvaroop) svarg chale gaye, kintu manushy yahian par rah gaye. jo manushy devoan ke saman yajn karate haian ve paralok (svarg) mean devoan evan brahma ke sath nivas karate haian. tab (manushyoan ko pichhe rahate dekhakar) manu ne us krity ko arambh kiya jise shraddh ki sanjna mili hai, jo manav jati ko shrey (mukti ya anand) ki or le jata hai. is krity mean pitar log devata (adhishthata) haian, kintu brahman log (jinhean bhojan diya jata hai) ahavaniy agni (jisamean yajnoan ke samay ahutiyaan di jati haian) ke sthan par mane jate haian." is antim sootr ke karan haradatt[2]) evan any logoan ka kathan hai ki shraddh mean brahmanoan ko khilana pramukh krity hai.

brahmand puran[3] ne manu ko shraddh ke krityoan ka pravartak evan vishnu puran[4], vayu puran[5] evan bhagavat puran[6] ne shraddhadev kaha hai. isi prakar shantiparv[7] evan vishnudharmottar॰[8] mean aya hai ki shraddhapratha ka sansthapan vishnu ke varah avatar ke samay hua aur vishnu ko pita, pitamah aur prapitamah ko diye gaye tin pindoan mean avasthit manana chahie. isase aur apastamb dharmasootr ke vachan se aisa anuman lagaya ja sakata hai ki eesa ki kee shatabdiyoan poorv shraddhapratha ka pratishthapan ho chuka tha aur yah manavajati ke pita manu ke saman hi prachin hai.[9] kintu yah jnatavy hai ki 'shraddh' shabd kisi bhi prachin vaidik vachan mean nahian paya jata, yadyapi pindapitriyajn (jo ahitagni dvara pratyek mas ki amavasya ko sampadit hota tha)[10],

mahapitriyajn (chaturmasy ya sakamegh mean sampadit) upan ashtaka arambhik vaidik sahity mean jnat the. kathopanishad[11] mean 'shraddh' shabd aya hai; jo bhi koee is atyant vishisht siddhant ko brahmanoan ki sabha mean ya shraddh ke samay udaghoshit karata hai, vah amarata prapt karata hai.' 'shraddh' shabd ke any arambhik prayog sootr sahity mean prapt hote haian. atyant tarkashil evan sambhav anuman yahi nikala ja sakata hai ki pitaroan se sambandhit bahut hi kam krity un dinoan kiye jate the, at: kisi vishisht nam ki avashyakata prachin kal mean nahian samajhi gayi. kintu pitaroan ke samman mean kiye gaye krityoan ki sankhya mean jab adhikata huee to shraddh shabd ki utpatti huee.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh


tika tippani aur sandarbh

  1. apastamb dharmasootr 2|7|16|1-3
  2. apastamb dharmasootr ke tikaka
  3. brahmand puran upodaghatapad 9|15 evan 10|99
  4. vishnu puran 3|1|30
  5. vayu puran 44|38
  6. bhagavat puran 3|1|22
  7. shantiparv 345|14-21
  8. vishnudharmottar॰ 1|139|14-16
  9. rrigved 8|63|1 evan 8|30|3
  10. 'pindapitriyajn' shraddh hi hai, jaisa ki gobhilagrihyasootr 4|4|1-2 mean aya hai–'anvashtakyasthalipaken pindapitriyajn vyakhyat:. amavasyaan tachchhaddhamitaradanvaharyamh.' aur dekhie shra. pr. (pri. 4). pindapitriyajn evan mahapitriyajn ke lie dekhie is granth ka khand 2, adhyay 30 evan 31.
  11. kathopanishad 1|3|17

bahari k diyaan

sanbandhit lekh