लोनार झील: Difference between revisions
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लगभग वर्ष [[2006]] के आस पास लोनर झील में अजीब-सी चीज़ देखने को मिली, झील का पानी अचानक वाष्पीकृत होकर समाप्त हो गया। गांव वालों ने पानी की जगह झील में [[नमक]] और अन्य खनिजों के छोटे-बड़े चमकते हुए क्रिस्टल देखे। ऐसी परिस्थिति में कोई भी जीवन की कल्पना नहीं कर सकता, लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से झील में तमाम तरह के सूक्ष्म जीव पाए गए हैं। झील के बाहरी किनारे के पानी की प्रकृति उदासीन है, तो अन्दर जाने पर बेहद क्षारीय [[जल]] मिलता है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ख़ास तौर से कर्नल मैकेंजी, डॉ आईबी लायन आदि का कहना था कि झील में पानी की ऊपरी सतह पर जमी नमक की परत बेहद अनूठी है, झील के पानी के लगातार वाष्पीकरण के बावजूद नमक की मात्रा का कम न होना अजीबोगरीब है। ये भी आश्चर्यजनक है कि सिर्फ लोनार झील का पानी ही खारा है, जबकि आस-पास के जल स्त्रोतों से निकलने वाला पानी मीठा है। भूमि के जिस स्त्रोत से झील में जल आ रहा है, झील के बाहर किसी भी दूसरे जल स्त्रोत से नहीं जुड़ा है। अगर ऐसा होता तो आस पास के इलाकों की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गयी होती जबकि इसके उलट आस-पास के इलाकों की खेती काफ़ी उन्नत है। यहाँ झील के पानी में नमक की अलग-अलग किस्में पायी जाती है जिनके नाम डाला, खुप्पल, पपरी, भुसकी आदि है। निजाम के शासन-काल में 1843 से [[1903]] तक लोनार झील के नमक का व्यावसायिक उपयोग किया जाता रहा। ये भी कहा जाता है कि [[अकबर]] के शासनकाल में यहाँ पर नमक की एक फैक्टरी भी थी। | लगभग वर्ष [[2006]] के आस पास लोनर झील में अजीब-सी चीज़ देखने को मिली, झील का पानी अचानक वाष्पीकृत होकर समाप्त हो गया। गांव वालों ने पानी की जगह झील में [[नमक]] और अन्य खनिजों के छोटे-बड़े चमकते हुए क्रिस्टल देखे। ऐसी परिस्थिति में कोई भी जीवन की कल्पना नहीं कर सकता, लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से झील में तमाम तरह के सूक्ष्म जीव पाए गए हैं। झील के बाहरी किनारे के पानी की प्रकृति उदासीन है, तो अन्दर जाने पर बेहद क्षारीय [[जल]] मिलता है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ख़ास तौर से कर्नल मैकेंजी, डॉ आईबी लायन आदि का कहना था कि झील में पानी की ऊपरी सतह पर जमी नमक की परत बेहद अनूठी है, झील के पानी के लगातार वाष्पीकरण के बावजूद नमक की मात्रा का कम न होना अजीबोगरीब है। ये भी आश्चर्यजनक है कि सिर्फ लोनार झील का पानी ही खारा है, जबकि आस-पास के जल स्त्रोतों से निकलने वाला पानी मीठा है। भूमि के जिस स्त्रोत से झील में जल आ रहा है, झील के बाहर किसी भी दूसरे जल स्त्रोत से नहीं जुड़ा है। अगर ऐसा होता तो आस पास के इलाकों की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गयी होती जबकि इसके उलट आस-पास के इलाकों की खेती काफ़ी उन्नत है। यहाँ झील के पानी में नमक की अलग-अलग किस्में पायी जाती है जिनके नाम डाला, खुप्पल, पपरी, भुसकी आदि है। निजाम के शासन-काल में 1843 से [[1903]] तक लोनार झील के नमक का व्यावसायिक उपयोग किया जाता रहा। ये भी कहा जाता है कि [[अकबर]] के शासनकाल में यहाँ पर नमक की एक फैक्टरी भी थी। | ||
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लोनार झील के सन्दर्भ में [[स्कन्द पुराण]] में बहुत रोचक कहानी है। बताते हैं कि इस इलाके में लोनासुर नामक एक दानव रहा करता था। उसने आस-पास के देशों को तो अपने कब्जे में ले ही लिया था, [[देवता|देवताओं]] को भी युद्ध की खुली चुनौती दे दी थी। उसके आतंक से त्रस्त होकर मनुष्य तो मनुष्य, देवताओं ने भी [[विष्णु]] से लोनासुर से रक्षा करने की अपील की। भगवान विष्णु ने आनन-फानन में एक ख़ूबसूरत युवक को तैयार किया, जिसका नाम दैत्यसुदन रखा गया। दैत्यसुदन ने पहले लोनासुर की दोनों बहनों को अपने मोहपाश में बांधा फिर एक दिन उनकी मदद से उस एक मांद का मुख्यद्वार खोल दिया, जिसमें लोनासुर छिपा बैठा था। महीनों तक दैत्यसुदन और लोनासुर में युद्ध चलता रहा और अंत में लोनासुर मारा गया। मौजूदा लोनार झील लोनासुर की मांद है और लोनार से लगभग 36 किमी दूर स्थित दातेफाल की पहाड़ी में उस मांद का ढक्कन मौजूद है। [[पुराण]] में झील के पानी को लोनासुर का रक्त और उसमें मौजूद नमक को लोनासुर का मांस बताया गया है। | लोनार झील के सन्दर्भ में [[स्कन्द पुराण]] में बहुत रोचक कहानी है। बताते हैं कि इस इलाके में लोनासुर नामक एक दानव रहा करता था। उसने आस-पास के देशों को तो अपने कब्जे में ले ही लिया था, [[देवता|देवताओं]] को भी युद्ध की खुली चुनौती दे दी थी। उसके आतंक से त्रस्त होकर मनुष्य तो मनुष्य, देवताओं ने भी [[विष्णु]] से लोनासुर से रक्षा करने की अपील की। भगवान विष्णु ने आनन-फानन में एक ख़ूबसूरत युवक को तैयार किया, जिसका नाम दैत्यसुदन रखा गया। दैत्यसुदन ने पहले लोनासुर की दोनों बहनों को अपने मोहपाश में बांधा फिर एक दिन उनकी मदद से उस एक मांद का मुख्यद्वार खोल दिया, जिसमें लोनासुर छिपा बैठा था। महीनों तक दैत्यसुदन और लोनासुर में युद्ध चलता रहा और अंत में लोनासुर मारा गया। मौजूदा लोनार झील लोनासुर की मांद है और लोनार से लगभग 36 किमी दूर स्थित दातेफाल की पहाड़ी में उस मांद का ढक्कन मौजूद है। [[पुराण]] में झील के पानी को लोनासुर का रक्त और उसमें मौजूद नमक को लोनासुर का मांस बताया गया है। | ||
====शिव बेसिन क्रेटर==== | ====शिव बेसिन क्रेटर==== | ||
माना जाता है कि साढे छह करोड़ [[साल]] पहले अंतरिक्ष से 40 कि.मी. से अधिक चौड़ाई वाला एक विशालकाय उल्कापिंड 58 हज़ार मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी पर गिरा था और उसने डायनासोर प्रजाति को विलुप्त कर दिया था। कहा जाता है ये घटना भी हिंदुस्तान में ही घटी थी। भारतीय मूल के 'टेक्सास टेक. यूनिवर्सिटी' के प्रोफेसर शंकर चटर्जी ने अपने ताज़ा अध्ययन में दावा किया गया है कि यह घटना [[भारत]] के पश्चिमी तट पर हुई थी। ओरेगन में 'जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ अमरीका' के सम्मेलन में शोध-पत्र पेश करते हुए चटर्जी ने कहा कि भारत के पश्चिम में स्थित जलमग्न शिव बेसिन हमारे पृथ्वी पर स्थित सबसे बडा क्रेटर है। शिव बेसिन में ही बॉम्बे हाई स्थित है, जो खनिज तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के उत्खनन का बड़ा केन्द्र है। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित 40 कि.मी. व्यास वाला शिव बेसिन क्रेटर इतने ही चौड़े उल्कापिंड के क़रीब 58 हज़ार मील प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी के साथ टकराने से बना है। ग्रेनाइट की मोटी परत को फोड़कर बने इस क्रेटर का बाहरी दायरा 500 कि.मी. चौड़ाई में फैला है।<ref>{{cite web |url=http://www.dailynewsnetwork.in/news/07022010/Humlog-Article/3890.html |title=गुत्थी में उलझा एक गांव |accessmonthday=28 जुलाई |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=डेली न्यूज़ |language=हिंदी }}</ref> | |||
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Latest revision as of 14:02, 28 July 2013
लोनार झील
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नाम | लोनार झील |
देश | भारत |
राज्य | महाराष्ट्र |
नगर/ज़िला | औरंगाबाद |
निर्देशांक | उत्तर- 19°58′36″ पूर्व- 76°30′30″ |
अधिकतम गहराई | 150 मीटर |
गूगल मानचित्र | गूगल मानचित्र |
अन्य जानकारी | लोनार झील 5 से 8 मीटर तक खारे पानी से भरी हुई है। |
अद्यतन | 16:50, 10 फ़रवरी 2012 (IST)
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लोनार झील (अंग्रेजी: Lonar Crater Lake) महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा ज़िले में स्थित एक खारे पानी की झील है। इसका निर्माण एक उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने के कारण हुआ था। महाराष्ट्र के लोनार शहर में समुद्र तल से 1,200 मीटर ऊँची सतह पर लगभग 100 मीटर के वृत्त में फैली हुई है। वैसे इस झील का व्यास दस लाख वर्ग मीटर है। इस झील का मुहाना गोलाई लिए एकदम गहरा है, जो बहाव में 100 मीटर की गहराई तक है। मौसम से प्रभावित 50 मीटर की गहराई गर्द से भरी है। लोनार झील 5 से 8 मीटर तक खारे पानी से भरी हुई है। इस झील का उद्गम संभवतः लावा के ऊबड़-खाबड़ बहने और उसके रुकने से हुआ है। यह भी संभव है कि बुझे हुए (मृत) ज्वालामुखी के गर्त से इस झील की उत्पत्ति हुई है।
अद्भुत झील 'लोनार'
आकाशीय उल्का पिंड की टक्कर से निर्मित खारे पानी की दुनिया की पहली झील है लोनार। इसका खारा पानी इस बात का प्रतीक है कि कभी यहाँ समुद्र था। इसके बनते वक्त क़रीब दस लाख टन के उल्का पिंड की टकराहट हुई। क़रीब 1.8 किलोमीटर व्यास की इस उल्कीय झील की गहराई लगभग पांच सौ मीटर है। आज भी वैज्ञानिकों में इस विषय पर गहन शोध जारी है कि लोनार में जो टक्कर हुई, वो उल्का पिंड और पृथ्वी के बीच हुई या फिर कोई ग्रह पृथ्वी से टकराया था। उस वक्त वो तीन हिस्सों में टूट चुका था और उसने लोनार के अलावा अन्य दो जगहों पर भी झील बना दी, हालांकि पूरी तरह सूख चुकी अम्बर और गणेश नामक इन झीलों का कोई विशेष महत्व नहीं रहा है। thumb|left|लोनार झील
निर्माण
स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ वाशिंगटन, जियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया और यूनाईटेड स्टेट जिओलोजिकल सर्वे ने लगभग 20 वर्ष पहले किए गए एक साझा अध्ययन में इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण मिले थे कि लोनर कैटर का निर्माण पृथ्वी पर उल्का पिंड के टकराने से ही हुआ था। मंगल ग्रह सरीखे दृश्य दिखाने वाली यह झील अन्तरिक्ष विज्ञान की उन्नत प्रयोगशाला भी है, जिस पर समूचे विश्व की निगाह है। अमरीकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा का मानना है कि बेसाल्टिक चट्टानों से बनी यह झील बिलकुल वैसी ही है, जैसी झील मंगल की सतह पर पायी जाती है, यहाँ तक कि इसके जल के रासायनिक गुण भी मंगल पर पायी गयी झीलों के रासायनिक गुणों से मिलते जुलते हैं। ऊँची पहाड़ियों के बीच लोनार के शांत पानी को देखने पर यहाँ घटी किसी बड़ी प्राकृतिक घटना का एहसास होने लगता है।
कुछ अज़ीब वाक्या
लगभग वर्ष 2006 के आस पास लोनर झील में अजीब-सी चीज़ देखने को मिली, झील का पानी अचानक वाष्पीकृत होकर समाप्त हो गया। गांव वालों ने पानी की जगह झील में नमक और अन्य खनिजों के छोटे-बड़े चमकते हुए क्रिस्टल देखे। ऐसी परिस्थिति में कोई भी जीवन की कल्पना नहीं कर सकता, लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से झील में तमाम तरह के सूक्ष्म जीव पाए गए हैं। झील के बाहरी किनारे के पानी की प्रकृति उदासीन है, तो अन्दर जाने पर बेहद क्षारीय जल मिलता है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ख़ास तौर से कर्नल मैकेंजी, डॉ आईबी लायन आदि का कहना था कि झील में पानी की ऊपरी सतह पर जमी नमक की परत बेहद अनूठी है, झील के पानी के लगातार वाष्पीकरण के बावजूद नमक की मात्रा का कम न होना अजीबोगरीब है। ये भी आश्चर्यजनक है कि सिर्फ लोनार झील का पानी ही खारा है, जबकि आस-पास के जल स्त्रोतों से निकलने वाला पानी मीठा है। भूमि के जिस स्त्रोत से झील में जल आ रहा है, झील के बाहर किसी भी दूसरे जल स्त्रोत से नहीं जुड़ा है। अगर ऐसा होता तो आस पास के इलाकों की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गयी होती जबकि इसके उलट आस-पास के इलाकों की खेती काफ़ी उन्नत है। यहाँ झील के पानी में नमक की अलग-अलग किस्में पायी जाती है जिनके नाम डाला, खुप्पल, पपरी, भुसकी आदि है। निजाम के शासन-काल में 1843 से 1903 तक लोनार झील के नमक का व्यावसायिक उपयोग किया जाता रहा। ये भी कहा जाता है कि अकबर के शासनकाल में यहाँ पर नमक की एक फैक्टरी भी थी। thumb|250px|लोनार झील
पौराणिक संदर्भ
लोनार झील के सन्दर्भ में स्कन्द पुराण में बहुत रोचक कहानी है। बताते हैं कि इस इलाके में लोनासुर नामक एक दानव रहा करता था। उसने आस-पास के देशों को तो अपने कब्जे में ले ही लिया था, देवताओं को भी युद्ध की खुली चुनौती दे दी थी। उसके आतंक से त्रस्त होकर मनुष्य तो मनुष्य, देवताओं ने भी विष्णु से लोनासुर से रक्षा करने की अपील की। भगवान विष्णु ने आनन-फानन में एक ख़ूबसूरत युवक को तैयार किया, जिसका नाम दैत्यसुदन रखा गया। दैत्यसुदन ने पहले लोनासुर की दोनों बहनों को अपने मोहपाश में बांधा फिर एक दिन उनकी मदद से उस एक मांद का मुख्यद्वार खोल दिया, जिसमें लोनासुर छिपा बैठा था। महीनों तक दैत्यसुदन और लोनासुर में युद्ध चलता रहा और अंत में लोनासुर मारा गया। मौजूदा लोनार झील लोनासुर की मांद है और लोनार से लगभग 36 किमी दूर स्थित दातेफाल की पहाड़ी में उस मांद का ढक्कन मौजूद है। पुराण में झील के पानी को लोनासुर का रक्त और उसमें मौजूद नमक को लोनासुर का मांस बताया गया है।
शिव बेसिन क्रेटर
माना जाता है कि साढे छह करोड़ साल पहले अंतरिक्ष से 40 कि.मी. से अधिक चौड़ाई वाला एक विशालकाय उल्कापिंड 58 हज़ार मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी पर गिरा था और उसने डायनासोर प्रजाति को विलुप्त कर दिया था। कहा जाता है ये घटना भी हिंदुस्तान में ही घटी थी। भारतीय मूल के 'टेक्सास टेक. यूनिवर्सिटी' के प्रोफेसर शंकर चटर्जी ने अपने ताज़ा अध्ययन में दावा किया गया है कि यह घटना भारत के पश्चिमी तट पर हुई थी। ओरेगन में 'जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ अमरीका' के सम्मेलन में शोध-पत्र पेश करते हुए चटर्जी ने कहा कि भारत के पश्चिम में स्थित जलमग्न शिव बेसिन हमारे पृथ्वी पर स्थित सबसे बडा क्रेटर है। शिव बेसिन में ही बॉम्बे हाई स्थित है, जो खनिज तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के उत्खनन का बड़ा केन्द्र है। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित 40 कि.मी. व्यास वाला शिव बेसिन क्रेटर इतने ही चौड़े उल्कापिंड के क़रीब 58 हज़ार मील प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी के साथ टकराने से बना है। ग्रेनाइट की मोटी परत को फोड़कर बने इस क्रेटर का बाहरी दायरा 500 कि.मी. चौड़ाई में फैला है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गुत्थी में उलझा एक गांव (हिंदी) डेली न्यूज़। अभिगमन तिथि: 28 जुलाई, ।
बाहरी कड़ियाँ
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