सोनपुर: Difference between revisions
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'''सोनपुर''' बिहार राज्य में पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है। स्टेशन से थोड़ी दूरी पर [[गण्डकी|गण्डकी नदी]] [[गंगा नदी|गंगा]] में मिलती है। यहीं सोनपुर कस्बा है। यह [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का प्राचीन तीर्थस्थल है। | '''सोनपुर''' [[बिहार|बिहार राज्य]] में पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है। स्टेशन से थोड़ी दूरी पर [[गण्डकी|गण्डकी नदी]] [[गंगा नदी|गंगा]] में मिलती है। यहीं सोनपुर कस्बा है। यह [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का प्राचीन तीर्थस्थल है। | ||
*यहाँ प्रसिद्ध ऐतिहासिक हरिहरनाथ जी का मन्दिर है। यह हरिहर क्षेत्र माना जाता है। | *यहाँ प्रसिद्ध ऐतिहासिक हरिहरनाथ जी का मन्दिर है। यह हरिहर क्षेत्र माना जाता है। | ||
*यहाँ [[तेल नदी]] के तट पर सुवर्ण मेरू महादेव का मंदिर है। | *यहाँ [[तेल नदी]] के तट पर सुवर्ण मेरू महादेव का मंदिर है। | ||
*गंडकी-गंगा संगम ही वस्तुतः यहाँ का पुण्य [[तीर्थ]] है। वहाँ स्नान की महिमा है। | *गंडकी-गंगा संगम ही वस्तुतः यहाँ का पुण्य [[तीर्थ]] है। वहाँ स्नान की महिमा है। | ||
*[[श्रीमद्भागवत]] में इसे शालग्राम क्षेत्र कहा है। जड़भरत ने पूर्वजन्म में यहीं तप किया था। | *[[श्रीमद्भागवत]] में इसे शालग्राम क्षेत्र कहा है। [[जड़भरत]] ने पूर्वजन्म में यहीं तप किया था। | ||
*[[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] के साथ [[जनकपुर]] जाते हुए [[श्रीराम]]-[[लक्ष्मण]] यहाँ पधारे थे। | *[[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] के साथ [[जनकपुर]] जाते हुए [[श्रीराम]]-[[लक्ष्मण]] यहाँ पधारे थे। | ||
*यह स्थान [[ऋषि |ऋषियों]], तपस्वियों का सदा प्रिय रहा है। | *यह स्थान [[ऋषि |ऋषियों]], तपस्वियों का सदा प्रिय रहा है। |
Latest revision as of 08:25, 11 December 2016
सोनपुर बिहार राज्य में पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है। स्टेशन से थोड़ी दूरी पर गण्डकी नदी गंगा में मिलती है। यहीं सोनपुर कस्बा है। यह हिन्दुओं का प्राचीन तीर्थस्थल है।
- यहाँ प्रसिद्ध ऐतिहासिक हरिहरनाथ जी का मन्दिर है। यह हरिहर क्षेत्र माना जाता है।
- यहाँ तेल नदी के तट पर सुवर्ण मेरू महादेव का मंदिर है।
- गंडकी-गंगा संगम ही वस्तुतः यहाँ का पुण्य तीर्थ है। वहाँ स्नान की महिमा है।
- श्रीमद्भागवत में इसे शालग्राम क्षेत्र कहा है। जड़भरत ने पूर्वजन्म में यहीं तप किया था।
- महर्षि विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाते हुए श्रीराम-लक्ष्मण यहाँ पधारे थे।
- यह स्थान ऋषियों, तपस्वियों का सदा प्रिय रहा है।
- कार्तिक पूर्णिमा पर दो सप्ताह तक एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। उसमें पशु-विक्रय होता है।
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