चैतन्य महाप्रभु का प्रभाव: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-2.jpg|thumb|300px|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर, [[गोवर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(3 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-2.jpg|thumb|300px|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]]]  
{{चैतन्य महाप्रभु विषय सूची}}
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
|चित्र=Chaitanya-Mahaprabhu-5.jpg
|चित्र का नाम=चैतन्य महाप्रभु
|पूरा नाम=चैतन्य महाप्रभु
|अन्य नाम=विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, निमाई, गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर
|जन्म= [[18 फ़रवरी]] सन् 1486 ([[फाल्गुन]] [[शुक्लपक्ष|शुक्ल]] [[पूर्णिमा]])
|जन्म भूमि=[[नवद्वीप]] ([[नादिया ज़िला|नादिया]]), [[पश्चिम बंगाल]]
|मृत्यु=सन् 1534
|मृत्यु स्थान=[[पुरी]], [[ओड़िशा|उड़ीसा]]
|अभिभावक=जगन्नाथ मिश्र और शचि देवी
|पालक माता-पिता=
|पति/पत्नी=लक्ष्मी देवी और [[विष्णुप्रिया]]
|संतान=
|कर्म भूमि=[[वृन्दावन]], [[मथुरा]]
|कर्म-क्षेत्र=
|मुख्य रचनाएँ=
|विषय=
|भाषा=
|विद्यालय=
|शिक्षा=
|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=महाप्रभु चैतन्य के विषय में [[वृन्दावनदास ठाकुर|वृन्दावनदास]] द्वारा रचित '[[चैतन्य भागवत]]' नामक [[ग्रन्थ]] में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण [[कृष्णदास कविराज|कृष्णदास]] ने 1590 में '[[चैतन्य चरितामृत]]' शीर्षक से लिखा था।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
[[चैतन्य महाप्रभु]] ने 'अचिन्त्य भेदाभेदवाद' का प्रवर्तन किया, किन्तु प्रामाणिक रूप से इनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता। इनके कुछ शिष्यों के मतानुसार 'दशमूल श्लोक' इनके रचे हुए हैं। अन्य सम्प्रदायों के प्रवर्तकों ने अपने मत की पुष्टि के लिए भाष्य और अन्य ग्रन्थ लिखे हैं, जबकि चैतन्य ने [[ब्रह्मसूत्र]], [[गीता]] आदि पर भी भाष्य नहीं लिखे।
[[चैतन्य महाप्रभु]] ने 'अचिन्त्य भेदाभेदवाद' का प्रवर्तन किया, किन्तु प्रामाणिक रूप से इनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता। इनके कुछ शिष्यों के मतानुसार 'दशमूल श्लोक' इनके रचे हुए हैं। अन्य सम्प्रदायों के प्रवर्तकों ने अपने मत की पुष्टि के लिए भाष्य और अन्य ग्रन्थ लिखे हैं, जबकि चैतन्य ने [[ब्रह्मसूत्र]], [[गीता]] आदि पर भी भाष्य नहीं लिखे।


यह आश्चर्यजनक बात ही है कि भाष्य आदि की रचना न करने पर भी महाप्रभु चैतन्य को एक बड़े भारी सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना गया। यह सम्भवत: इस कारण सम्भव हुआ कि इनका मत अत्यधिक भावात्मक रहा, अत: उसको आम लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि [[चैतन्य महाप्रभु]] का आचार्यात्व शास्त्र विश्लेषण पर उतना आधारित नहीं, जितना कि उनके व्यावहारिक प्रभाव पर आधारित रहा। इनके उत्तरवर्ती शिष्यों ने उस शास्त्रीय आधार के अभाव की भी पूर्ति कर दी, जो भाष्य की रचना न करने के कारण इस सम्प्रदाय में चल रहा था। [[भक्ति]] को आधार बनाकर चैतन्य ने यथापि कोई नई परम्परा नहीं चलाई, फिर भी भावविह्लता का जितना पुट चैतन्य ने भक्ति में मिलाया, उतना किसी अन्य ने नहीं।


यह आश्चर्यजनक की बात ही है कि भाष्य आदि की रचना न करने पर भी महाप्रभु चैतन्य को एक बड़े भारी सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना गया। यह सम्भवत: इस कारण सम्भव हुआ कि इनका मत अत्यधिक भावात्मक रहा, अत: उसको आम लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि [[चैतन्य महाप्रभु]] का आचार्यात्व शास्त्र विश्लेषण पर उतना आधारित नहीं, जितना कि उनके व्यावहारिक प्रभाव पर आधारित रहा। इनके उत्तरवर्ती शिष्यों ने उस शास्त्रीय आधार के अभाव की भी पूर्ति कर दी, जो भाष्य की रचना न करने के कारण इस सम्प्रदाय में चल रहा था। [[भक्ति]] को आधार बनाकर चैतन्य ने यथापि कोई नई परम्परा नहीं चलाई, फिर भी भावविह्लता का जितना पुट चैतन्य ने भक्ति में मिलाया, उतना किसी अन्य ने नहीं।
[[चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-2.jpg|thumb|left|300px|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर, [[गोवर्धन]], [[मथुरा]]]]
[[वल्लभाचार्य]] आदि ने [[धर्म]] के और [[भक्ति]] के विधानात्मक पक्ष को महत्त्व दिया था, जबकि चैतन्य ने भावात्मक पक्ष को प्रश्रय दिया। चैतन्य की विचारधारा पर पांचरात्र साहित्य, [[भागवत]], [[पुराण]] तथा [[गीत गोविन्द]] का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। विभिन्न रूपों में प्रचलित और लिपिबद्ध [[कृष्ण]] की [[कथा]] ने उनके व्यक्तित्व को भीतरी भाग तक अवश्य ही छुआ होगा।
[[वल्लभाचार्य]] आदि ने [[धर्म]] के और [[भक्ति]] के विधानात्मक पक्ष को महत्त्व दिया था, जबकि चैतन्य ने भावात्मक पक्ष को प्रश्रय दिया। चैतन्य की विचारधारा पर पांचरात्र साहित्य, [[भागवत]], [[पुराण]] तथा [[गीत गोविन्द]] का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। विभिन्न रूपों में प्रचलित और लिपिबद्ध [[कृष्ण]] की [[कथा]] ने उनके व्यक्तित्व को भीतरी भाग तक अवश्य ही छुआ होगा।


यों तो सारा [[भारत]] ही चैतन्य से प्रभावित हुआ, किन्तु [[पश्चिम बंगाल]] का जनजीवन तो उनकी विचारधारा के साथ आमूलचूल एकाकार हो गया। फलस्वरूप न केवल [[हिन्दू]] अपितु तत्कालीन [[मुसलमान]] भी उनके मत से प्रभावित हुए बिना न रह सके। भक्ति भावना के अपेक्षाकृत ह्रास के बावजूद अब भी चैतन्य का प्रभाव समाज में लगातार अक्षुण्ण बना हुआ है। महाप्रभु की प्रभुता बढ़ाने और बनाए रखने में उनकी सुन्दरता, मृदुता, साहसिकता, सूझबूझ, विद्वत्ता और शालीनता का बड़ा हाथ रहा है।
यों तो सारा [[भारत]] ही चैतन्य से प्रभावित हुआ, किन्तु [[पश्चिम बंगाल]] का जनजीवन तो उनकी विचारधारा के साथ आमूलचूल एकाकार हो गया। फलस्वरूप न केवल [[हिन्दू]] अपितु तत्कालीन [[मुसलमान]] भी उनके मत से प्रभावित हुए बिना न रह सके। भक्ति भावना के अपेक्षाकृत ह्रास के बावजूद अब भी चैतन्य का प्रभाव समाज में लगातार अक्षुण्ण बना हुआ है। महाप्रभु की प्रभुता बढ़ाने और बनाए रखने में उनकी सुन्दरता, मृदुता, साहसिकता, सूझबूझ, विद्वत्ता और शालीनता का बड़ा हाथ रहा है।
{|style="width:100%"
|-
|
|}


{{लेख क्रम2 |पिछला=चैतन्य महाप्रभु की कृष्ण भक्ति |पिछला शीर्षक=चैतन्य महाप्रभु की कृष्ण भक्ति |अगला शीर्षक=चैतन्य महाप्रभु के सिद्धांत|अगला=चैतन्य महाप्रभु के सिद्धांत}}


{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
Line 27: Line 66:
*[https://www.youtube.com/watch?v=9p99dnKpTVA Shri Chaitanya Mahaprabhu -Hindi movie (youtube)]
*[https://www.youtube.com/watch?v=9p99dnKpTVA Shri Chaitanya Mahaprabhu -Hindi movie (youtube)]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{चैतन्य महाप्रभु}}{{भारत के संत}}{{दार्शनिक}}
{{चैतन्य महाप्रभु}}
[[Category:दार्शनिक]][[Category:हिन्दू धर्म प्रवर्तक और संत]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:सगुण भक्ति]][[Category:चैतन्य महाप्रभु]][[Category:कवि]][[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:सगुण भक्ति]][[Category:चैतन्य महाप्रभु]][[Category:साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 09:45, 22 April 2017

चैतन्य महाप्रभु विषय सूची
चैतन्य महाप्रभु का प्रभाव
पूरा नाम चैतन्य महाप्रभु
अन्य नाम विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, निमाई, गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर
जन्म 18 फ़रवरी सन् 1486 (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा)
जन्म भूमि नवद्वीप (नादिया), पश्चिम बंगाल
मृत्यु सन् 1534
मृत्यु स्थान पुरी, उड़ीसा
अभिभावक जगन्नाथ मिश्र और शचि देवी
पति/पत्नी लक्ष्मी देवी और विष्णुप्रिया
कर्म भूमि वृन्दावन, मथुरा
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी महाप्रभु चैतन्य के विषय में वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' नामक ग्रन्थ में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण कृष्णदास ने 1590 में 'चैतन्य चरितामृत' शीर्षक से लिखा था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

चैतन्य महाप्रभु ने 'अचिन्त्य भेदाभेदवाद' का प्रवर्तन किया, किन्तु प्रामाणिक रूप से इनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता। इनके कुछ शिष्यों के मतानुसार 'दशमूल श्लोक' इनके रचे हुए हैं। अन्य सम्प्रदायों के प्रवर्तकों ने अपने मत की पुष्टि के लिए भाष्य और अन्य ग्रन्थ लिखे हैं, जबकि चैतन्य ने ब्रह्मसूत्र, गीता आदि पर भी भाष्य नहीं लिखे।


यह आश्चर्यजनक की बात ही है कि भाष्य आदि की रचना न करने पर भी महाप्रभु चैतन्य को एक बड़े भारी सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना गया। यह सम्भवत: इस कारण सम्भव हुआ कि इनका मत अत्यधिक भावात्मक रहा, अत: उसको आम लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि चैतन्य महाप्रभु का आचार्यात्व शास्त्र विश्लेषण पर उतना आधारित नहीं, जितना कि उनके व्यावहारिक प्रभाव पर आधारित रहा। इनके उत्तरवर्ती शिष्यों ने उस शास्त्रीय आधार के अभाव की भी पूर्ति कर दी, जो भाष्य की रचना न करने के कारण इस सम्प्रदाय में चल रहा था। भक्ति को आधार बनाकर चैतन्य ने यथापि कोई नई परम्परा नहीं चलाई, फिर भी भावविह्लता का जितना पुट चैतन्य ने भक्ति में मिलाया, उतना किसी अन्य ने नहीं। [[चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-2.jpg|thumb|left|300px|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर, गोवर्धन, मथुरा]] वल्लभाचार्य आदि ने धर्म के और भक्ति के विधानात्मक पक्ष को महत्त्व दिया था, जबकि चैतन्य ने भावात्मक पक्ष को प्रश्रय दिया। चैतन्य की विचारधारा पर पांचरात्र साहित्य, भागवत, पुराण तथा गीत गोविन्द का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। विभिन्न रूपों में प्रचलित और लिपिबद्ध कृष्ण की कथा ने उनके व्यक्तित्व को भीतरी भाग तक अवश्य ही छुआ होगा।

यों तो सारा भारत ही चैतन्य से प्रभावित हुआ, किन्तु पश्चिम बंगाल का जनजीवन तो उनकी विचारधारा के साथ आमूलचूल एकाकार हो गया। फलस्वरूप न केवल हिन्दू अपितु तत्कालीन मुसलमान भी उनके मत से प्रभावित हुए बिना न रह सके। भक्ति भावना के अपेक्षाकृत ह्रास के बावजूद अब भी चैतन्य का प्रभाव समाज में लगातार अक्षुण्ण बना हुआ है। महाप्रभु की प्रभुता बढ़ाने और बनाए रखने में उनकी सुन्दरता, मृदुता, साहसिकता, सूझबूझ, विद्वत्ता और शालीनता का बड़ा हाथ रहा है।


left|30px|link=चैतन्य महाप्रभु की कृष्ण भक्ति|पीछे जाएँ चैतन्य महाप्रभु का प्रभाव right|30px|link=चैतन्य महाप्रभु के सिद्धांत|आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख