सीताबेंगरा गुफ़ा: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Adding category Category:गुफ़ाएँ (को हटा दिया गया हैं।)) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " महान " to " महान् ") |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | |||
|चित्र=Sita-Bengra-Caves-Ramgarh.jpg | |||
|चित्र का नाम=सीताबेंगरा गुफ़ा, रामगढ़ | |||
|विवरण='सीताबेंगरा गुफ़ा' [[छत्तीसगढ़]] के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। माना जाता है कि [[कालीदास]] ने '[[मेघदूत]]' की रचना यहीं बैठकर की थी। | |||
|शीर्षक 1=राज्य | |||
|पाठ 1=[[छत्तीसगढ़]] | |||
|शीर्षक 2=ज़िला | |||
|पाठ 2=[[रायपुर ज़िला|रायपुर]] | |||
|शीर्षक 3=निर्माण काल | |||
|पाठ 3=लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पू.। | |||
|शीर्षक 4=धार्मिक मान्यता | |||
|पाठ 4=विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान [[श्रीराम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] के साथ पहुंचे थे। | |||
|शीर्षक 5= | |||
|पाठ 5= | |||
|शीर्षक 6= | |||
|पाठ 6= | |||
|शीर्षक 7= | |||
|पाठ 7= | |||
|शीर्षक 8= | |||
|पाठ 8= | |||
|शीर्षक 9= | |||
|पाठ 9= | |||
|शीर्षक 10=विशेष | |||
|पाठ 10=सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। यह [[एशिया]] की अति प्राचीन नाट्यशाला मानी जाती है। | |||
|संबंधित लेख=[[छत्तीसगढ़]], [[जोगीमारा गुफ़ाएँ]], [[कालिदास]] | |||
|अन्य जानकारी=इस गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है। यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
[[छत्तीसगढ़| | '''सीताबेंगरा गुफ़ा''' [[छत्तीसगढ़]] की राजधानी [[रायपुर]] से 280 किलोमीटर दूर रामगढ़ में स्थित है। [[अंबिकापुर]]-[[बिलासपुर छत्तीसगढ़|बिलासपुर]] मार्ग पर स्थित रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली यह गुफ़ा देश की सबसे पुरानी नाटयशाला है। सीताबेंगरा गुफ़ा पत्थरों में ही गैलरीनुमा काट कर बनाई गयी है। यह गुफ़ा प्रसिद्ध [[जोगीमारा गुफ़ाएँ|जोगीमारा गुफ़ा]] के नजदीक ही स्थित है। सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। माना जाता है कि यह [[एशिया]] की अति प्राचीन नाट्यशाला है। इसमें कलाकारों के लिए मंच निचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊँचाई पर है। प्रांगन 45 फुट लंबा और 15 फुट चौडा है। इस नाट्यशाला का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है, क्यूँकि पास ही जोगीमारा गुफ़ा की दीवार पर [[सम्राट अशोक]] के काल का एक लेख उत्कीर्ण है। ऐसे गुफ़ा केन्द्रों का मनोरंजन के लिए प्रयोग प्राचीन काल में होता था। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुहाश्रय के अन्दर लिपिबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. | रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुहाश्रय के अन्दर लिपिबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पू. होने की बात इतिहासकारों एवं पुरात्त्वविदों ने समवेत स्वर में स्वीकार की है। सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि [[कालिदास]] की विख्यात रचना '[[मेघदूत]]' ने यहीं आकार लिया था। यह विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान [[श्रीराम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में 'भेंगरा' का अर्थ कमरा होता है। गुफ़ा के प्रवेश द्वार के समीप खम्बे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर श्रीराम के चरण चिह्न अंकित हैं। कहते हैं कि ये चरण चिह्न [[महाकवि कालिदास]] के समय भी थे। कालीदास की रचना '[[मेघदूत]]' में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं ([[अप्सरा|अप्सराओं]]) की उपस्थिति तथा उसके रघुपतिपदों से अंकित होने का उल्लेख भी मिलता है। | ||
====संचालन==== | |||
यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी 'सुतनुका देवदासी' के हाथ में था। यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी। देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का 'कोपभाजन' बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा। रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर [[अभिलेख]] के रूप में सदैव के लिए अंकित कर दिया। यह भी कहा जाता है कि इस गुफ़ा में उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक आदि करवाए जाते रहे होंगे। | |||
==स्थापत्य== | |||
सीताबेंगरा गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है। यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेश द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फ़ीट है, जो भीतर जाकर 4 फ़ीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया गया है। गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीड़ियाँ बनाई गयी हैं। सीताबेंगरा गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ सीड़ियाँ बनी हुई हैं। प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ जैसी बनी हुई है। इसमें सीढ़ीदार दर्शक दीर्घा गैलरीनुमा ऊपर से नीचे की और अर्द्धाकार स्वरूप में चट्टान को इस तरह काटा गया है कि दर्शक-दीर्घा में बैठकर आराम से कार्यक्रमों को देखा जा सके। | |||
<blockquote><poem>[[ | गुफ़ा के बाहर दो फुट चौड़ा गडढ़ा भी है, जो सामने से पूरी गुफ़ा को घेरता है। मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है। इसके बाहर एक पांव का निशान भी है। इस गुफ़ा के बाहर एक सुरंग है। इसे 'हथफोड़ सुरंग' के नाम से जाना जाता है। इसकी लंबाई क़रीब 500 मीटर है। यहाँ पहाडी में [[राम]], [[लक्ष्मण]], [[सीता]] और [[हनुमान]] की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है। [[नवरात्र|चैत्र नवरात्र]] के अवसर पर यहाँ मेला लगता है। सीताबेंगरा गुफ़ा को 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा संरक्षित किया गया है। | ||
====अभिलेख==== | |||
सीताबेंगरा गुफ़ा के [[ब्राह्मी लिपि]] में लिखे हुए [[अभिलेख]] का आशय है- | |||
<blockquote><poem>[[हृदय]] को देदीप्यमान करते हैं स्वभाव से महान् ऐसे कविगण | |||
रात्रि में वासंती से दूर हास्य एवं विनोद में अपने | रात्रि में वासंती से दूर हास्य एवं विनोद में अपने | ||
को भुलाकर [[चमेली]] के [[फूल|फूलों]] की माला का आलिंगन करता है।</poem> | को भुलाकर [[चमेली]] के [[फूल|फूलों]] की माला का आलिंगन करता है।</poem></blockquote> | ||
</blockquote> | |||
दूसरे शब्दों में यह रचनाकार की परिकल्पना है कि 'मनुष्य कोलाहल से दूर एकांत रात्रि में [[नृत्य]], [[संगीत]], हास्य-परिहास की दुनिया में स्वीकार स्वर्गिक आनन्द में आलिप्त हो। भीनी-भीनी खुशबू से मोहित हो, फूलों से आलिंगन करता हो।' | |||
==बादलों की पूजा== | |||
सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालीदास ने विख्यात रचना '[[मेघदूत]]' यहीं लिखी थी। कालीदास ने जब [[उज्जयिनि]] का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने [[साहित्य]] की रचना की थी। इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल [[आषाढ़]] के महीने में बादलों की [[पूजा]] की जाती है। [[भारत]] में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहाँ कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है। इसके लिए हर साल प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन होता है। इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskarhindi.com/News/11830/.html|title=कालीदास ने यहीं लिखी थी 'मेघदूतम'|accessmonthday=08 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{छत्तीसगढ़ | {{छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक स्थान}}{{छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल}} | ||
[[Category:छत्तीसगढ़ राज्य]] | [[Category:छत्तीसगढ़ राज्य]][[Category:छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल]][[Category:छत्तीसगढ़ राज्य के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:गुफ़ाएँ]] | ||
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] | |||
[[Category: | |||
[[Category:गुफ़ाएँ]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 11:28, 1 August 2017
सीताबेंगरा गुफ़ा
| |
विवरण | 'सीताबेंगरा गुफ़ा' छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। माना जाता है कि कालीदास ने 'मेघदूत' की रचना यहीं बैठकर की थी। |
राज्य | छत्तीसगढ़ |
ज़िला | रायपुर |
निर्माण काल | लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पू.। |
धार्मिक मान्यता | विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहुंचे थे। |
विशेष | सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। यह एशिया की अति प्राचीन नाट्यशाला मानी जाती है। |
संबंधित लेख | छत्तीसगढ़, जोगीमारा गुफ़ाएँ, कालिदास |
अन्य जानकारी | इस गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है। यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। |
सीताबेंगरा गुफ़ा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 280 किलोमीटर दूर रामगढ़ में स्थित है। अंबिकापुर-बिलासपुर मार्ग पर स्थित रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली यह गुफ़ा देश की सबसे पुरानी नाटयशाला है। सीताबेंगरा गुफ़ा पत्थरों में ही गैलरीनुमा काट कर बनाई गयी है। यह गुफ़ा प्रसिद्ध जोगीमारा गुफ़ा के नजदीक ही स्थित है। सीताबेंगरा गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। माना जाता है कि यह एशिया की अति प्राचीन नाट्यशाला है। इसमें कलाकारों के लिए मंच निचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊँचाई पर है। प्रांगन 45 फुट लंबा और 15 फुट चौडा है। इस नाट्यशाला का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है, क्यूँकि पास ही जोगीमारा गुफ़ा की दीवार पर सम्राट अशोक के काल का एक लेख उत्कीर्ण है। ऐसे गुफ़ा केन्द्रों का मनोरंजन के लिए प्रयोग प्राचीन काल में होता था।
इतिहास
रामगढ़ शैलाश्रय के अंतर्गत सीताबेंगरा गुहाश्रय के अन्दर लिपिबद्ध अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस नाट्यशाला का निर्माण लगभग दूसरी-तीसरी शताब्दी ई. पू. होने की बात इतिहासकारों एवं पुरात्त्वविदों ने समवेत स्वर में स्वीकार की है। सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालिदास की विख्यात रचना 'मेघदूत' ने यहीं आकार लिया था। यह विश्वास किया जाता है कि यहाँ वनवास काल में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में 'भेंगरा' का अर्थ कमरा होता है। गुफ़ा के प्रवेश द्वार के समीप खम्बे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर श्रीराम के चरण चिह्न अंकित हैं। कहते हैं कि ये चरण चिह्न महाकवि कालिदास के समय भी थे। कालीदास की रचना 'मेघदूत' में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं (अप्सराओं) की उपस्थिति तथा उसके रघुपतिपदों से अंकित होने का उल्लेख भी मिलता है।
संचालन
यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी 'सुतनुका देवदासी' के हाथ में था। यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी। देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का 'कोपभाजन' बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा। रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर अभिलेख के रूप में सदैव के लिए अंकित कर दिया। यह भी कहा जाता है कि इस गुफ़ा में उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक आदि करवाए जाते रहे होंगे।
स्थापत्य
सीताबेंगरा गुफ़ा का निर्माण पत्थरों में ही गैलरीनुमा कटाई करके किया गया है। यह 44 फुट लम्बी एवं 15 फुट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेश द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फ़ीट है, जो भीतर जाकर 4 फ़ीट ही रह जाती हैं। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया गया है। गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीड़ियाँ बनाई गयी हैं। सीताबेंगरा गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ सीड़ियाँ बनी हुई हैं। प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ जैसी बनी हुई है। इसमें सीढ़ीदार दर्शक दीर्घा गैलरीनुमा ऊपर से नीचे की और अर्द्धाकार स्वरूप में चट्टान को इस तरह काटा गया है कि दर्शक-दीर्घा में बैठकर आराम से कार्यक्रमों को देखा जा सके।
गुफ़ा के बाहर दो फुट चौड़ा गडढ़ा भी है, जो सामने से पूरी गुफ़ा को घेरता है। मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है। इसके बाहर एक पांव का निशान भी है। इस गुफ़ा के बाहर एक सुरंग है। इसे 'हथफोड़ सुरंग' के नाम से जाना जाता है। इसकी लंबाई क़रीब 500 मीटर है। यहाँ पहाडी में राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है। चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहाँ मेला लगता है। सीताबेंगरा गुफ़ा को 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा संरक्षित किया गया है।
अभिलेख
सीताबेंगरा गुफ़ा के ब्राह्मी लिपि में लिखे हुए अभिलेख का आशय है-
दूसरे शब्दों में यह रचनाकार की परिकल्पना है कि 'मनुष्य कोलाहल से दूर एकांत रात्रि में नृत्य, संगीत, हास्य-परिहास की दुनिया में स्वीकार स्वर्गिक आनन्द में आलिप्त हो। भीनी-भीनी खुशबू से मोहित हो, फूलों से आलिंगन करता हो।'
बादलों की पूजा
सीताबेंगरा गुफ़ा का गौरव इसलिए भी अधिक है, क्योंकि कालीदास ने विख्यात रचना 'मेघदूत' यहीं लिखी थी। कालीदास ने जब उज्जयिनि का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने साहित्य की रचना की थी। इसलिए ही इस जगह पर आज भी हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है। भारत में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहाँ कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है। इसके लिए हर साल प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन होता है। इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कालीदास ने यहीं लिखी थी 'मेघदूतम' (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 जुलाई, 2013।
संबंधित लेख