हैदराबाद रियासत: Difference between revisions

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विभाजन के बाद हैदराबाद के निज़ाम उस्मान अली खान ने यह फैसला किया कि हैदराबाद रियासत न तो [[भारत]] और न ही [[पाकिस्तान]] में शामिल होगी। यह [[रियासत]] एक समृद्ध रियासतों मे से एक थी। हैदराबाद के पास अपनी सेना, रेलवे, एयरलाइन नेटवर्क, डाक व्यवस्था और रेडियो नेटवर्क था। जब [[15 अगस्त]], [[1947]] को भारत ने खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया, तो हैदराबाद ने भी खुद को स्वतंत्र अधिकार वाला देश घोषित कर दिया।
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भारत के मध्य में एक स्वतंत्र हैदराबाद देश होने का विचार हैरान करने वाला था। तब उपप्रधानमंत्री [[सरदार पटेल]] ने [[लॉर्ड माउंट बेटन]] के साथ परामर्श किया। माउंट बेटन की यह राय थी कि यह मसला बिना किसी सैन्य बल के सुलझा लिया जाए। भारत ने इसके बाद हैदराबाद को एक प्रस्ताव भेजा, जिसमें यह कहा गया था कि वह अपने निर्णय पर पुनः विचार करे और साथ ही यह अाश्वासन भी दिया कि इसके बदले कोई भी सैन्य कार्रवाई नहीं की जाएगी।
 
[[जून]], [[1948]] में भारत छोड़ने से पहले माउंट बेटन ने हैदराबाद को एक और प्रस्ताव दिया कि वह भारत से समझौता कर ले, जिसके अंतर्गत हैदराबाद भारत की प्रभुता के अधीन एक स्वायत्त राष्ट्र का दर्जा प्राप्त कर सकता है। समझौते के मसौदे में शर्त रखी गई थी कि हैदराबाद अपने सशस्त्र बलों पर प्रतिबंध लगाएगा और स्वैच्छिक बलों को स्थगित करेगा। साथ ही हैदराबाद अपने क्षेत्र पर शासन कर सकता है, लेकिन विदेश नीति [[भारत सरकार]] तय करेगी। इस समझौते पर भारत ने हस्ताक्षर कर दिए थे, लेकिन निजाम ने इनकार कर दिया।
 
अभी समझौते पर बात चल ही रही थी कि [[हैदराबाद]] में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे हो गए। पूरे राज्य में तनाव था। हैदराबाद को पाकिस्तान और [[गोवा]] के [[पुर्तग़ाली]] प्रशासन से हथियार प्राप्त हो रहे थे। जैसे ही भारत सरकार को जानकारी हुई कि हैदराबाद पाकिस्तान के साथ गठबंधन करने की योजना बना रहा है, भारत ने तब हैदराबाद को क़ब्ज़े मे लेने का फैसला किया। इस अभियान का नाम दिया गया "ऑपरेशन पोलो"।
 
[[13 सितंबर]], [[1948]] को भारत और हैदराबाद के बीच लड़ाई शुरू हुई जो [[18 सितंबर]] तक चली। निजाम की सेना ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरह हैदराबाद [[भारत]] का हिस्सा बन गया।
 
 
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[[चित्र:Charminar-Hyderabad-1.jpg|thumb|चारमीनार, हैदराबाद]] हैदराबाद दक्षिण-मध्य भारत का पूर्व सामंती राज्य था। यह निज़ाम-उल-मुल्क (मीर क़मरूद्दिन) द्वारा स्थापित था, जो 1713 ई. से 1721 ई. तक दक्कन में लगातार मुग़ल बादशाहों के सूबेदार रहे थे। उन्हें 1724 ई. में यह पद फिर से मिला और उन्होंने आसफ़जाह की उपाधि ग्रहण की। वस्तुतः इस समय तक वह स्वतंत्र हो गए थे। उन्होंने हैदराबाद में निज़ामशाही की स्थापना की। 1748 ई. में उनकी मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों और फ़्रांसीसियों ने उत्तराधिकार के लिए हुए युद्धों में भाग लिया।

विभाजन के बाद हैदराबाद के निज़ाम उस्मान अली खान ने यह फैसला किया कि हैदराबाद रियासत न तो भारत और न ही पाकिस्तान में शामिल होगी। यह रियासत एक समृद्ध रियासतों मे से एक थी। हैदराबाद के पास अपनी सेना, रेलवे, एयरलाइन नेटवर्क, डाक व्यवस्था और रेडियो नेटवर्क था। जब 15 अगस्त, 1947 को भारत ने खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया, तो हैदराबाद ने भी खुद को स्वतंत्र अधिकार वाला देश घोषित कर दिया।

भारत के मध्य में एक स्वतंत्र हैदराबाद देश होने का विचार हैरान करने वाला था। तब उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल ने लॉर्ड माउंट बेटन के साथ परामर्श किया। माउंट बेटन की यह राय थी कि यह मसला बिना किसी सैन्य बल के सुलझा लिया जाए। भारत ने इसके बाद हैदराबाद को एक प्रस्ताव भेजा, जिसमें यह कहा गया था कि वह अपने निर्णय पर पुनः विचार करे और साथ ही यह अाश्वासन भी दिया कि इसके बदले कोई भी सैन्य कार्रवाई नहीं की जाएगी।

जून, 1948 में भारत छोड़ने से पहले माउंट बेटन ने हैदराबाद को एक और प्रस्ताव दिया कि वह भारत से समझौता कर ले, जिसके अंतर्गत हैदराबाद भारत की प्रभुता के अधीन एक स्वायत्त राष्ट्र का दर्जा प्राप्त कर सकता है। समझौते के मसौदे में शर्त रखी गई थी कि हैदराबाद अपने सशस्त्र बलों पर प्रतिबंध लगाएगा और स्वैच्छिक बलों को स्थगित करेगा। साथ ही हैदराबाद अपने क्षेत्र पर शासन कर सकता है, लेकिन विदेश नीति भारत सरकार तय करेगी। इस समझौते पर भारत ने हस्ताक्षर कर दिए थे, लेकिन निजाम ने इनकार कर दिया।

अभी समझौते पर बात चल ही रही थी कि हैदराबाद में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे हो गए। पूरे राज्य में तनाव था। हैदराबाद को पाकिस्तान और गोवा के पुर्तग़ाली प्रशासन से हथियार प्राप्त हो रहे थे। जैसे ही भारत सरकार को जानकारी हुई कि हैदराबाद पाकिस्तान के साथ गठबंधन करने की योजना बना रहा है, भारत ने तब हैदराबाद को क़ब्ज़े मे लेने का फैसला किया। इस अभियान का नाम दिया गया "ऑपरेशन पोलो"।

13 सितंबर, 1948 को भारत और हैदराबाद के बीच लड़ाई शुरू हुई जो 18 सितंबर तक चली। निजाम की सेना ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरह हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया।


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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