मृदंग: Difference between revisions

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'''मृदंग''' [[दक्षिण भारत]] का एक थाप [[यंत्र]] है। [[भारत]] में [[संगीत]] का प्रचलन बहुत पुराना है।
[[चित्र:Mridangam-Manav-Sangrahalaya.jpg|thumb|250px|मृदंग, [[इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय]]]]
*मृदंग को मृदंग खोल, मृदंगम आदि भी कहा जाता है।  
'''मृदंग''' [[दक्षिण भारत]] का एक थाप [[यंत्र]] है। [[भारत]] में [[संगीत]] का प्रचलन बहुत पुराना है। मृदंग को 'मृदंग खोल', 'मृदंगम' आदि भी कहा जाता है। यह एक प्राचीन संगीत वाद्य है, जो चमड़े से मढ़ा हुआ होता है और ऐसे वाद्यों को 'अवनद्ध' कहा जाता है। [[ढोल]], [[नगाड़ा]], [[तबला]], ढप, खँजड़ी आदि को भी 'अवनद्ध' कहा जाता है।
*मृदंग प्राचीन संगीत वाद्य है जो चमड़े से मढ़ा हुआ होता है और ऐसे वाद्यों को अवनद्ध कहा जाता है।  
 
*[[ढोल]], [[नगाड़ा]], [[तबला]], ढप, खँजड़ी आदि को भी अवनद्ध कहा जाता है।  
*वर्तमान में भी [[भारत]] के लोकसंगीत में ढोल, मृदंग, [[झांझ]], [[मंजीरा]], ढप, नगाड़ा, [[पखावज]], [[एकतारा]] आदि [[वाद्य यंत्र|वाद्य यंत्रों]] का प्रचलन है।  
*वर्तमान में भी [[भारत]] के लोकसंगीत में [[ढोल]], मृदंग, [[झांझ]], [[मंजीरा]], ढप, [[नगाड़ा]], [[पखावज]], [[एकतारा]] आदि [[वाद्य यंत्र|वाद्य यंत्रों]] का प्रचलन है।  
*गांवों में लोग मृदंग बजाकर कीर्तन गीत गाते हैं।
*गांवों में लोग मृदंग बजाकर कीर्तन गीत गाते हैं।  
*मृदंग [[कर्नाटक संगीत]] में प्राथमिक ताल यंत्र होता है।  
*मृदंग [[कर्नाटक]] संगीत में प्राथमिक ताल यंत्र होता है।  
*[[अमीर ख़ुसरो]] ने मृदंग को काट कर [[तबला]] बनाया था और तबले का प्रयोग [[आधुनिक काल]] में गायन, वादन तथा [[नृत्य]] की संगति में होता है।  
*[[अमीर ख़ुसरो]] ने मृदंग को काट कर तबला बनाया और तबले का प्रयोग आधुनिक काल में गायन, वादन तथा नृत्य की संगति में होता है।  
*[[छत्तीसगढ़]] में [[नवरात्रि]] के समय देवी पूजा होती है, उसमें एक जैसे गीत गाये जाते हैं। उसमें मृदंग का उपयोग होता है।  
*[[छत्तीसगढ़]] में नवरात्रि के समय देवी पूजा होती है, उसमें एक जैसे गीत गाये जाते हैं। उसमें मृदंग का उपयोग होता है।  
*[[चैतन्य महाप्रभु]] ने अपने दोनों शिष्यों के सहयोग से ढोलक, मृदंग, झाँझ, मंजीरे आदि [[वाद्य यंत्र]] बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया।
*[[चैतन्य महाप्रभु]] ने अपने दोनों शिष्यों के सहयोग से ढोलक, मृदंग, झाँझ, मंजीरे आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया।


==बनावट==
==बनावट==
*इनको पहले मिट्टी से ही बनाया जाता था लेकिन आजकल मिट्टी जल्दी फुट जने और जल्दी ख़राब होने के कारण लकड़ी का खोल बनाने लग गये है।
*मृदंग पहले [[मिट्टी]] से ही बनाया जाता था, लेकिन आजकल मिट्टी जल्दी फूट जाने और जल्दी ख़राब होने के कारण लकड़ी के खोल बनाये जाने लगे हैं।
*मृदंग को बकरे के खाल से दोनों तरफ छाया जाता है और इनके दोनों तरफ स्याही लगाया जाता है।  
*इस वाद्य को बकरे की खाल से दोनों तरफ़ छाया जाता है और इनके दोनों तरफ़ स्याही लगाई जाती है।
*मृदंग ढोलक के जैसा ही होता हैं।
*मृदंग [[ढोलक]] के जैसा ही होता हैं। इसे भी हाथ से आघात करके बजाया जाता है।
*मृदंग को भी हाथ से आघात करके बजाया जाता है।
*इसका एक सिरा काफ़ी छोटा और दूसरा सिरा काफ़ी बड़ा (लगभग दस इंच) होता है।
*मृदंग का एक सिरा काफ़ी छोटा और दूसरा सिरा काफ़ी बड़ा (लगभग दस इंच) होता है।


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Latest revision as of 07:22, 8 August 2014

thumb|250px|मृदंग [[चित्र:Mridangam-Manav-Sangrahalaya.jpg|thumb|250px|मृदंग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय]] मृदंग दक्षिण भारत का एक थाप यंत्र है। भारत में संगीत का प्रचलन बहुत पुराना है। मृदंग को 'मृदंग खोल', 'मृदंगम' आदि भी कहा जाता है। यह एक प्राचीन संगीत वाद्य है, जो चमड़े से मढ़ा हुआ होता है और ऐसे वाद्यों को 'अवनद्ध' कहा जाता है। ढोल, नगाड़ा, तबला, ढप, खँजड़ी आदि को भी 'अवनद्ध' कहा जाता है।

बनावट

  • मृदंग पहले मिट्टी से ही बनाया जाता था, लेकिन आजकल मिट्टी जल्दी फूट जाने और जल्दी ख़राब होने के कारण लकड़ी के खोल बनाये जाने लगे हैं।
  • इस वाद्य को बकरे की खाल से दोनों तरफ़ छाया जाता है और इनके दोनों तरफ़ स्याही लगाई जाती है।
  • मृदंग ढोलक के जैसा ही होता हैं। इसे भी हाथ से आघात करके बजाया जाता है।
  • इसका एक सिरा काफ़ी छोटा और दूसरा सिरा काफ़ी बड़ा (लगभग दस इंच) होता है।


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