लैला मजनूं की मज़ार: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) ('thumb|लैला मजनूं की मज़ार '''लैला मजनूं ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replacement - "किस्सा" to "क़िस्सा ") |
||
(7 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
[[चित्र:Laila-Majnu-Ki-Mazar.jpg|thumb|लैला मजनूं की मज़ार]] | [[चित्र:Laila-Majnu-Ki-Mazar.jpg|thumb|लैला मजनूं की मज़ार]] | ||
'''लैला मजनूं की मज़ार''' [[राजस्थान]] के [[गंगानगर ज़िला|गंगानगर जिले]] में अनूपगढ से 11 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मज़ार लोगों को प्रेम का अमर | '''लैला मजनूं की मज़ार''' [[राजस्थान]] के [[गंगानगर ज़िला|गंगानगर जिले]] में अनूपगढ से 11 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मज़ार लोगों को प्रेम का अमर क़िस्सा बयान करती प्रतीत होती है। लैला और मजनूं को भारतीय रोमियो जूलियट कहा जाता है। प्रेमी जोड़ों को भी यहां लैला मजनूं के नाम से पुकारा जाता है। एक दूसरे के प्रेम में आकंठ डूबे लैला मजनूं ने प्रेम में विफल होने के बाद अपनी जान दे दी थी। जमाने की रुसवाईयों के बावजूद सुनने में थोड़ा अजीब लगता है कि दोनों की मज़ारें बिल्कुल पास पास हैं। ख़ास बात यह है कि [[भारत]]-[[पाकिस्तान]] बॉर्डर के नजदीक स्थित यह मज़ार [[हिन्दू]] [[मुस्लिम]] और भारत पाकिस्तान के भेद से बहुत ऊपर उठ चुकी है। यहां हिंदू भी आकर सर झुकाते हैं और मुस्लिम भी। भारतीय भी आते हैं और पाकिस्तानी भी। सार यह है कि प्रेम धर्म और देशों की सीमाओं से सदा सर्वदा मुक्त रहा है। आज़ादी से पूर्व भारत और पाकिस्तान एक ही थे। यह देश मुस्लिम देशों की सीमाओं से लगा हुआ था। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दो देश बन गए और इन दोनों देशों को परस्पर दुश्मन के तौर पर देखा गया। राजस्थान [[पंजाब]] और [[कश्मीर]] की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं और समय समय पर सीमा पर तनाव की खबरें भी आती हैं। लेकिन दुश्मनी की इसी सीमा पर राजस्थान में एक स्थान ऐसा भी है जहां नफरत के कोई मायने नहीं हैं। जहां सीमाएं कोई अहमियत नहीं रखती है। यह स्थान राजस्थान के गंगानगर ज़िले की अनूपगढ तहसील के क़रीब है, जहां लैला मजनूं की मज़ारें प्रेम का संदेश हवाओं में महकाती हैं। अनूपगढ के [[बिजनौर]] में स्थित ये मज़ारें पाकिस्तान की सीमा से महज 2 किमी अंदर [[भारत]] में हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि अपने प्रेम को बचाने समाज से भागे इस प्रेमी जोड़े ने राजस्थान के इसी बिजनौर गांव में शरण ली और यहीं अंतिम सांस भी ली। इस स्थल को मुस्लिम लैला मजनूं की मज़ार कहते हैं और हिंदू इसको लैला मजनूं की समाधि कहते हैं।<ref name="pinkcity">{{cite web |url=http://www.pinkcity.com/hi/sri-ganganagar-2/the-grave-of-laila-majnu/ |title=लैला मजनूं की मज़ार |accessmonthday=23 अगस्त |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=pinkcity|language=हिंदी }}</ref> | ||
====मृत्यु पर अनेक मत==== | ====मृत्यु पर अनेक मत==== | ||
[[बिजनौर]] के स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार लैला मजनूं मूल रूप से [[सिंध प्रांत]] के रहने वाले थे। एक दूसरे से उनका प्रेम इस हद तक बढ़ गया कि वे एक साथ जीवन जीने के लिए अपने-अपने घर से भाग निकले और [[भारत]] के बहुत सारे इलाकों में छुपते फिरे। आखिर वे दोनों [[राजस्थान]] आ गए। जहां उन दोनों की मृत्यु हो गई। लैला मजनूं की मौत के बारे में ग्रामीणों में एक राय नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनों के इश्क का पता चला तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और आखिर उसने निर्ममता से मजनूं की हत्या कर दी। लैला को जब इस बात का पता चला तो वह मजनूं के शव के पास पहुंची और वहीं उसने खुदकुशी करके अपनी जान दे दी। कुछ लोगों का मत है कि घर से भाग कर दर दर भटकने के बाद वे यहां तक पहुंचे और प्यास से उन दोनों की मौत हो गई। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अपने परिवार वालों और समाज से दुखी होकर उन्होंने एक साथ जान दे देने का फैसला कर लिया था और आत्महत्या कर ली। दोनों के प्रेम की पराकाष्ठा की कहानियां यहीं खत्म नहीं होती है। ग्रामीणों में एक अन्य कहानी भी प्रचलित है जिसके अनुसार लैला के धनी माता पिता ने जबरदस्ती उसकी शादी एक समृद्ध व्यक्ति से कर दी थी। लैला के पति को जब मजनूं और लैला के प्रेम का पता चला तो वह आग बबूला हो उठा और उसने लैला के सीने में एक खंजर उतार दिया। मजनूं को जब इस वाकये का पता चला तो वह लैला तक पहुंच गया। जब तक वह लैला के दर पर पहुंचा लैला की मौत हो चुकी थी। लैला को बेजान देखकर मजनूं ने वहीं आत्महत्या कर अपने आप को खत्म कर लिया।<ref name="pinkcity"/> | [[बिजनौर]] के स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार लैला मजनूं मूल रूप से [[सिंध प्रांत]] के रहने वाले थे। एक दूसरे से उनका प्रेम इस हद तक बढ़ गया कि वे एक साथ जीवन जीने के लिए अपने-अपने घर से भाग निकले और [[भारत]] के बहुत सारे इलाकों में छुपते फिरे। आखिर वे दोनों [[राजस्थान]] आ गए। जहां उन दोनों की मृत्यु हो गई। लैला मजनूं की मौत के बारे में ग्रामीणों में एक राय नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनों के इश्क का पता चला तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और आखिर उसने निर्ममता से मजनूं की हत्या कर दी। लैला को जब इस बात का पता चला तो वह मजनूं के शव के पास पहुंची और वहीं उसने खुदकुशी करके अपनी जान दे दी। कुछ लोगों का मत है कि घर से भाग कर दर दर भटकने के बाद वे यहां तक पहुंचे और प्यास से उन दोनों की मौत हो गई। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अपने परिवार वालों और समाज से दुखी होकर उन्होंने एक साथ जान दे देने का फैसला कर लिया था और आत्महत्या कर ली। दोनों के प्रेम की पराकाष्ठा की कहानियां यहीं खत्म नहीं होती है। ग्रामीणों में एक अन्य कहानी भी प्रचलित है जिसके अनुसार लैला के धनी माता पिता ने जबरदस्ती उसकी शादी एक समृद्ध व्यक्ति से कर दी थी। लैला के पति को जब मजनूं और लैला के प्रेम का पता चला तो वह आग बबूला हो उठा और उसने लैला के सीने में एक खंजर उतार दिया। मजनूं को जब इस वाकये का पता चला तो वह लैला तक पहुंच गया। जब तक वह लैला के दर पर पहुंचा लैला की मौत हो चुकी थी। लैला को बेजान देखकर मजनूं ने वहीं आत्महत्या कर अपने आप को खत्म कर लिया।<ref name="pinkcity"/> | ||
====लैला मजनूं मज़ार पर मेला==== | ====लैला मजनूं मज़ार पर मेला==== | ||
प्रेम की इस उच्च भावना को नमन करते हुए [[बिजनौर]] की इस मज़ार पर हर साल मेला भी आयोजित किया जाता है। प्रत्येक वर्ष [[15 जून]] को लैला मजनूं की मज़ार पर भरने वाले इस मेले में बड़ी संख्या में भारतीय और पाकिस्तानी प्रेमी युगल आते हैं, प्यार की कसमें खाते हैं और हमेशा हमेशा साथ रहने की मन्नतें मांगते हैं। स्थानीय लोगों में इन दोनों मज़ारों के लिए बहुत मान्यता है। प्राचीन समय से ही हिंदू इसे पवित्र समाधि स्थल तो मुस्लिम पवित्र मजान मानकर अपनी श्रद्धा जाहिर करते आए हैं। लेकिन दोनों समुदाय ही इन मज़ारों को लैला मजनूं से जोड़कर देखते हैं और उनके प्रेम को नमन करते हैं। पहले इस मज़ारों के ऊपर एक छतरी थी। लोगों का कहना है इन मज़ारों पर उन्होंने कई चमत्कार होते देखे हैं। जो लोग यहां अपना | [[चित्र:Laila-majnu-mazar-2.jpg|thumb|लैला मजनूं मज़ार]] | ||
प्रेम की इस उच्च भावना को नमन करते हुए [[बिजनौर]] की इस मज़ार पर हर साल मेला भी आयोजित किया जाता है। प्रत्येक वर्ष [[15 जून]] को लैला मजनूं की मज़ार पर भरने वाले इस मेले में बड़ी संख्या में भारतीय और पाकिस्तानी प्रेमी युगल आते हैं, प्यार की कसमें खाते हैं और हमेशा हमेशा साथ रहने की मन्नतें मांगते हैं। स्थानीय लोगों में इन दोनों मज़ारों के लिए बहुत मान्यता है। प्राचीन समय से ही हिंदू इसे पवित्र समाधि स्थल तो मुस्लिम पवित्र मजान मानकर अपनी श्रद्धा जाहिर करते आए हैं। लेकिन दोनों समुदाय ही इन मज़ारों को लैला मजनूं से जोड़कर देखते हैं और उनके प्रेम को नमन करते हैं। पहले इस मज़ारों के ऊपर एक छतरी थी। लोगों का कहना है इन मज़ारों पर उन्होंने कई चमत्कार होते देखे हैं। जो लोग यहां अपना दु:ख दर्द लेकर आते हैं उनके जीवन में कई अच्छी घटनाएं घटती हैं, उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। इसी चमत्कार ने हजारों लाखों लोगों में इन मज़ारों के प्रति असीम श्रद्धा भर दी है और वे हर साल यहां नियमित रूप से आने लगे हैं। वर्तमान में यहां दोनो मज़ारें एक दूसरे से सटी हुई दिखाई देती हैं लेकिन ऊपर छतरी कालांतर में हटा दी गई या ढह गई। [[कारगिल युद्ध]] से पूर्व यह स्थान पाकिस्तानी नागरिकों के लिए भी खुला था। लेकिन युद्ध के बाद पाकिस्तानी सीमा के द्वारों को इस स्थान के लिए बंद कर दिया गया है। अतीत के इन महान् प्रेमियों को भारतीय सेना ने भी पूरा सम्मान दिया है और बीएसएफ की एक नजदीकी पोस्ट का नाम ’मजनूं पोस्ट’ रखा गया है।<ref name="pinkcity"/> | |||
==वर्तमान में== | ==वर्तमान में== | ||
हालांकि लंबे समय तक ये मज़ारें स्थानीय ग्रामीणों की देख रेख में ही संभाली गई। लेकिन प्रति वर्ष यहां आने वाले यात्रियों की बढती संख्या देख सरकार ने भी अब इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की योजना बनाई है। राजस्थान के पर्यटन विभाग ने बिजनौर की मज़ारों को सुरक्षित रखने और इनकी देखभाल करने का जिम्मा उठाया है। पर्यटन की दृष्टि से इस स्थान पर सुविधाएं जुटाने और क्षेत्र को उन्नत करने के लिए योजना बनाई जा रही है। राजस्थान पर्यटन विभाग के अधिकारियों के अनुसार सीमा पर स्थित कई पर्यटन स्थलों का ब्यौरा लिया गया जिसमें लैला मजनूं की मज़ार भी शामिल है। यहां हिन्दू मालकोट की सीमा चौकी पर सुविधएं बढाने के लिए प्रस्ताव लाया गया है, लैला मजनूं की मज़ार का संरक्षण करने के लिए भी 25 लाख रूपए स्वीकृत किए गए हैं। लैला मजनूं की भावात्मक कहानी आज भी राजस्थान के जीवंत इतिहास और संस्कृति का एक गौरवपूर्ण हिस्सा है। आज भी युवा प्रेमी महसूस करते हैं कि यहां आकर कोई रूहानी ताकत उन्हें अपने प्रेम को दृढ करने का हौसला देती है, प्रेम में कुर्बान हो जाने की हिम्मत देती है, प्रेम को सभी भेदभावों और स्वार्थ से ऊंचा उठाकर एक गहरा और पवित्र रिश्ता बनाए रखने की नसीहत देती है। यहां की हवा में कुछ है जो कानों के पास सरसराकर कहती है कि प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है। | हालांकि लंबे समय तक ये मज़ारें स्थानीय ग्रामीणों की देख रेख में ही संभाली गई। लेकिन प्रति वर्ष यहां आने वाले यात्रियों की बढती संख्या देख सरकार ने भी अब इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की योजना बनाई है। राजस्थान के पर्यटन विभाग ने बिजनौर की मज़ारों को सुरक्षित रखने और इनकी देखभाल करने का जिम्मा उठाया है। पर्यटन की दृष्टि से इस स्थान पर सुविधाएं जुटाने और क्षेत्र को उन्नत करने के लिए योजना बनाई जा रही है। राजस्थान पर्यटन विभाग के अधिकारियों के अनुसार सीमा पर स्थित कई पर्यटन स्थलों का ब्यौरा लिया गया जिसमें लैला मजनूं की मज़ार भी शामिल है। यहां हिन्दू मालकोट की सीमा चौकी पर सुविधएं बढाने के लिए प्रस्ताव लाया गया है, लैला मजनूं की मज़ार का संरक्षण करने के लिए भी 25 लाख रूपए स्वीकृत किए गए हैं। लैला मजनूं की भावात्मक कहानी आज भी राजस्थान के जीवंत इतिहास और संस्कृति का एक गौरवपूर्ण हिस्सा है। आज भी युवा प्रेमी महसूस करते हैं कि यहां आकर कोई रूहानी ताकत उन्हें अपने प्रेम को दृढ करने का हौसला देती है, प्रेम में कुर्बान हो जाने की हिम्मत देती है, प्रेम को सभी भेदभावों और स्वार्थ से ऊंचा उठाकर एक गहरा और पवित्र रिश्ता बनाए रखने की नसीहत देती है। यहां की हवा में कुछ है जो कानों के पास सरसराकर कहती है कि प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है। <ref name="pinkcity"/> | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
Line 19: | Line 20: | ||
[[Category:पर्यटन कोश]] | [[Category:पर्यटन कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
Latest revision as of 14:01, 9 May 2021
thumb|लैला मजनूं की मज़ार लैला मजनूं की मज़ार राजस्थान के गंगानगर जिले में अनूपगढ से 11 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मज़ार लोगों को प्रेम का अमर क़िस्सा बयान करती प्रतीत होती है। लैला और मजनूं को भारतीय रोमियो जूलियट कहा जाता है। प्रेमी जोड़ों को भी यहां लैला मजनूं के नाम से पुकारा जाता है। एक दूसरे के प्रेम में आकंठ डूबे लैला मजनूं ने प्रेम में विफल होने के बाद अपनी जान दे दी थी। जमाने की रुसवाईयों के बावजूद सुनने में थोड़ा अजीब लगता है कि दोनों की मज़ारें बिल्कुल पास पास हैं। ख़ास बात यह है कि भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक स्थित यह मज़ार हिन्दू मुस्लिम और भारत पाकिस्तान के भेद से बहुत ऊपर उठ चुकी है। यहां हिंदू भी आकर सर झुकाते हैं और मुस्लिम भी। भारतीय भी आते हैं और पाकिस्तानी भी। सार यह है कि प्रेम धर्म और देशों की सीमाओं से सदा सर्वदा मुक्त रहा है। आज़ादी से पूर्व भारत और पाकिस्तान एक ही थे। यह देश मुस्लिम देशों की सीमाओं से लगा हुआ था। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दो देश बन गए और इन दोनों देशों को परस्पर दुश्मन के तौर पर देखा गया। राजस्थान पंजाब और कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं और समय समय पर सीमा पर तनाव की खबरें भी आती हैं। लेकिन दुश्मनी की इसी सीमा पर राजस्थान में एक स्थान ऐसा भी है जहां नफरत के कोई मायने नहीं हैं। जहां सीमाएं कोई अहमियत नहीं रखती है। यह स्थान राजस्थान के गंगानगर ज़िले की अनूपगढ तहसील के क़रीब है, जहां लैला मजनूं की मज़ारें प्रेम का संदेश हवाओं में महकाती हैं। अनूपगढ के बिजनौर में स्थित ये मज़ारें पाकिस्तान की सीमा से महज 2 किमी अंदर भारत में हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि अपने प्रेम को बचाने समाज से भागे इस प्रेमी जोड़े ने राजस्थान के इसी बिजनौर गांव में शरण ली और यहीं अंतिम सांस भी ली। इस स्थल को मुस्लिम लैला मजनूं की मज़ार कहते हैं और हिंदू इसको लैला मजनूं की समाधि कहते हैं।[1]
मृत्यु पर अनेक मत
बिजनौर के स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार लैला मजनूं मूल रूप से सिंध प्रांत के रहने वाले थे। एक दूसरे से उनका प्रेम इस हद तक बढ़ गया कि वे एक साथ जीवन जीने के लिए अपने-अपने घर से भाग निकले और भारत के बहुत सारे इलाकों में छुपते फिरे। आखिर वे दोनों राजस्थान आ गए। जहां उन दोनों की मृत्यु हो गई। लैला मजनूं की मौत के बारे में ग्रामीणों में एक राय नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनों के इश्क का पता चला तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और आखिर उसने निर्ममता से मजनूं की हत्या कर दी। लैला को जब इस बात का पता चला तो वह मजनूं के शव के पास पहुंची और वहीं उसने खुदकुशी करके अपनी जान दे दी। कुछ लोगों का मत है कि घर से भाग कर दर दर भटकने के बाद वे यहां तक पहुंचे और प्यास से उन दोनों की मौत हो गई। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अपने परिवार वालों और समाज से दुखी होकर उन्होंने एक साथ जान दे देने का फैसला कर लिया था और आत्महत्या कर ली। दोनों के प्रेम की पराकाष्ठा की कहानियां यहीं खत्म नहीं होती है। ग्रामीणों में एक अन्य कहानी भी प्रचलित है जिसके अनुसार लैला के धनी माता पिता ने जबरदस्ती उसकी शादी एक समृद्ध व्यक्ति से कर दी थी। लैला के पति को जब मजनूं और लैला के प्रेम का पता चला तो वह आग बबूला हो उठा और उसने लैला के सीने में एक खंजर उतार दिया। मजनूं को जब इस वाकये का पता चला तो वह लैला तक पहुंच गया। जब तक वह लैला के दर पर पहुंचा लैला की मौत हो चुकी थी। लैला को बेजान देखकर मजनूं ने वहीं आत्महत्या कर अपने आप को खत्म कर लिया।[1]
लैला मजनूं मज़ार पर मेला
thumb|लैला मजनूं मज़ार प्रेम की इस उच्च भावना को नमन करते हुए बिजनौर की इस मज़ार पर हर साल मेला भी आयोजित किया जाता है। प्रत्येक वर्ष 15 जून को लैला मजनूं की मज़ार पर भरने वाले इस मेले में बड़ी संख्या में भारतीय और पाकिस्तानी प्रेमी युगल आते हैं, प्यार की कसमें खाते हैं और हमेशा हमेशा साथ रहने की मन्नतें मांगते हैं। स्थानीय लोगों में इन दोनों मज़ारों के लिए बहुत मान्यता है। प्राचीन समय से ही हिंदू इसे पवित्र समाधि स्थल तो मुस्लिम पवित्र मजान मानकर अपनी श्रद्धा जाहिर करते आए हैं। लेकिन दोनों समुदाय ही इन मज़ारों को लैला मजनूं से जोड़कर देखते हैं और उनके प्रेम को नमन करते हैं। पहले इस मज़ारों के ऊपर एक छतरी थी। लोगों का कहना है इन मज़ारों पर उन्होंने कई चमत्कार होते देखे हैं। जो लोग यहां अपना दु:ख दर्द लेकर आते हैं उनके जीवन में कई अच्छी घटनाएं घटती हैं, उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। इसी चमत्कार ने हजारों लाखों लोगों में इन मज़ारों के प्रति असीम श्रद्धा भर दी है और वे हर साल यहां नियमित रूप से आने लगे हैं। वर्तमान में यहां दोनो मज़ारें एक दूसरे से सटी हुई दिखाई देती हैं लेकिन ऊपर छतरी कालांतर में हटा दी गई या ढह गई। कारगिल युद्ध से पूर्व यह स्थान पाकिस्तानी नागरिकों के लिए भी खुला था। लेकिन युद्ध के बाद पाकिस्तानी सीमा के द्वारों को इस स्थान के लिए बंद कर दिया गया है। अतीत के इन महान् प्रेमियों को भारतीय सेना ने भी पूरा सम्मान दिया है और बीएसएफ की एक नजदीकी पोस्ट का नाम ’मजनूं पोस्ट’ रखा गया है।[1]
वर्तमान में
हालांकि लंबे समय तक ये मज़ारें स्थानीय ग्रामीणों की देख रेख में ही संभाली गई। लेकिन प्रति वर्ष यहां आने वाले यात्रियों की बढती संख्या देख सरकार ने भी अब इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की योजना बनाई है। राजस्थान के पर्यटन विभाग ने बिजनौर की मज़ारों को सुरक्षित रखने और इनकी देखभाल करने का जिम्मा उठाया है। पर्यटन की दृष्टि से इस स्थान पर सुविधाएं जुटाने और क्षेत्र को उन्नत करने के लिए योजना बनाई जा रही है। राजस्थान पर्यटन विभाग के अधिकारियों के अनुसार सीमा पर स्थित कई पर्यटन स्थलों का ब्यौरा लिया गया जिसमें लैला मजनूं की मज़ार भी शामिल है। यहां हिन्दू मालकोट की सीमा चौकी पर सुविधएं बढाने के लिए प्रस्ताव लाया गया है, लैला मजनूं की मज़ार का संरक्षण करने के लिए भी 25 लाख रूपए स्वीकृत किए गए हैं। लैला मजनूं की भावात्मक कहानी आज भी राजस्थान के जीवंत इतिहास और संस्कृति का एक गौरवपूर्ण हिस्सा है। आज भी युवा प्रेमी महसूस करते हैं कि यहां आकर कोई रूहानी ताकत उन्हें अपने प्रेम को दृढ करने का हौसला देती है, प्रेम में कुर्बान हो जाने की हिम्मत देती है, प्रेम को सभी भेदभावों और स्वार्थ से ऊंचा उठाकर एक गहरा और पवित्र रिश्ता बनाए रखने की नसीहत देती है। यहां की हवा में कुछ है जो कानों के पास सरसराकर कहती है कि प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है। [1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 लैला मजनूं की मज़ार (हिंदी) pinkcity। अभिगमन तिथि: 23 अगस्त, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख