मल्ल महाजनपद: Difference between revisions
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'''मल्ल महाजनपद''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Malla Mahajanapada'') पौराणिक [[सोलह महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक था। यह भी एक गणसंघ था और पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] के इलाके इसके क्षेत्र थे। मल्ल देश का सर्वप्रथम निश्चित उल्लेख शायद [[वाल्मीकि रामायण]] में इस प्रकार है कि [[राम|रामचन्द्र]] ने [[लक्ष्मण]] के पुत्र [[चंद्रकेतु]] के लिए मल्ल देश की भूमि में चंद्रकान्ता नामक पुरी बसाई जो स्वर्ग के समान दिव्य थी।<ref>‘चंद्रकेतोश्च मल्लस्य मल्लभूम्यां निवेशिता, चंद्रकांतेति विख्याता दिव्या स्वर्गपुरी यथा’ वाल्मीकि रामायण, [[उत्तर काण्ड वा. रा.|उत्तरकाण्ड]] 102।</ref> | |||
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[[महाभारत]] में मल्ल देश के विषय में कई उल्लेख | [[महाभारत]] में मल्ल देश के विषय में कई उल्लेख हैं- | ||
*‘मल्ला: सुदेष्णा:प्रह्लादा माहिका शशिकास्तथा’<ref>महाभारत, भीष्मपर्व 9,46</ref> ; | *‘मल्ला: सुदेष्णा:प्रह्लादा माहिका शशिकास्तथा’<ref>महाभारत, भीष्मपर्व 9,46</ref> ; | ||
*‘अधिराज्यकुशाद्याश्च मल्लराष्ट्रं च केवलम्’<ref>महाभारत, भीष्मपर्व 9,44</ref>; | *‘अधिराज्यकुशाद्याश्च मल्लराष्ट्रं च केवलम्’<ref>महाभारत, भीष्मपर्व 9,44</ref>; | ||
*‘ततो गोपालकक्षं च सोत्तरानपि कोसलान्, मल्लानामधिपं चैव पार्थिवं चाजयत् प्रभु:’।<ref>महाभारत, सभापर्व 30,3</ref> | *‘ततो गोपालकक्षं च सोत्तरानपि कोसलान्, मल्लानामधिपं चैव पार्थिवं चाजयत् प्रभु:’।<ref>महाभारत, सभापर्व 30,3</ref> | ||
== बौद्ध-ग्रन्थ में उल्लेख== | ==बौद्ध-ग्रन्थ में उल्लेख== | ||
[[बौद्ध]]-ग्रन्थ [[अंगुत्तरनिकाय]] में मल्ल जनपद का उत्तरी [[भारत]] के [[महाजनपद|सोलह जनपदों]] में उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में मल्ल देश की दो राजधानियों का वर्णन | [[बौद्ध]]-ग्रन्थ [[अंगुत्तरनिकाय]] में मल्ल जनपद का उत्तरी [[भारत]] के [[महाजनपद|सोलह जनपदों]] में उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में मल्ल देश की दो राजधानियों का वर्णन है- | ||
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*[[मनुस्मृति]] में मल्लों को व्रात्य क्षत्रियों में परिगणित किया गया है, क्योंकि ये [[बौद्ध धर्म]] के दृढ़ अनुयायी थे। | *[[मनुस्मृति]] में मल्लों को व्रात्य क्षत्रियों में परिगणित किया गया है, क्योंकि ये [[बौद्ध धर्म]] के दृढ़ अनुयायी थे। | ||
*कुसजातक में ओक्काक ([[इक्ष्वाकु]]) नामक मल्ल-नरेश का उल्लेख है। इक्ष्वाकुवंशीय नरेशों का परंपरागत राज्य [[अयोध्या]] या [[कौशल|कोसल]] प्रदेश में था। राय चौधरी का मत है<ref>पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव ऐशेंट इंडिया, पृ. 107-108</ref> कि मल्ल राष्ट्र में [[बिंबिसार]] के पूर्व गणराज्य स्थापित हो गया था। इससे पहले यहाँ के अनेक राजाओं के नाम मिलते हैं। बौद्ध साहित्य में मल्ल जनपद के भोग नगर , अनुप्रिय तथा उरुवेलकप्प नामक नगरों के नाम मिलते हैं। बौद्ध तथा [[जैन]] साहित्य में मल्लों और [[लिच्छवी|लिच्छवियों]] की प्रतिद्वंदिता के अनेक उल्लेख हैं—<ref>बुद्धसाल जातक, [[कल्पसूत्र]] आदि</ref> बुद्ध के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त करने के उपरान्त, उनके अस्थि-अवशेषों का एक भाग मल्लों को मिला था जिसके संस्मरणार्थ उन्होंने कुशीनगर में एक [[स्तूप]] या चैत्य का निर्माण किया था। इसके खंडहर कसिया में मिले हैं। इस स्थान से प्राप्त एक ताम्रपट्टलेख से यह तथ्य प्रमाणित भी होता है—‘(परिनि) वार्ण चैत्यताभ्रपट्ट इति’। [[मगध]] के राजनीतिक उत्कर्ष के समय मल्ल जनपद इसी साम्राज्य की विस्तरणशील सत्ता के सामने न टिक सका। | *कुसजातक में ओक्काक ([[इक्ष्वाकु]]) नामक मल्ल-नरेश का उल्लेख है। इक्ष्वाकुवंशीय नरेशों का परंपरागत राज्य [[अयोध्या]] या [[कौशल|कोसल]] प्रदेश में था। राय चौधरी का मत है<ref>पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव ऐशेंट इंडिया, पृ. 107-108</ref> कि मल्ल राष्ट्र में [[बिंबिसार]] के पूर्व गणराज्य स्थापित हो गया था। इससे पहले यहाँ के अनेक राजाओं के नाम मिलते हैं। बौद्ध साहित्य में मल्ल जनपद के भोग नगर , अनुप्रिय तथा उरुवेलकप्प नामक नगरों के नाम मिलते हैं। बौद्ध तथा [[जैन]] साहित्य में मल्लों और [[लिच्छवी|लिच्छवियों]] की प्रतिद्वंदिता के अनेक उल्लेख हैं—<ref>बुद्धसाल जातक, [[कल्पसूत्र]] आदि</ref> बुद्ध के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त करने के उपरान्त, उनके अस्थि-अवशेषों का एक भाग मल्लों को मिला था जिसके संस्मरणार्थ उन्होंने कुशीनगर में एक [[स्तूप]] या चैत्य का निर्माण किया था। इसके खंडहर कसिया में मिले हैं। इस स्थान से प्राप्त एक ताम्रपट्टलेख से यह तथ्य प्रमाणित भी होता है—‘(परिनि) वार्ण चैत्यताभ्रपट्ट इति’। [[मगध]] के राजनीतिक उत्कर्ष के समय मल्ल जनपद इसी साम्राज्य की विस्तरणशील सत्ता के सामने न टिक सका। | ||
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मल्ल महाजनपद (अंग्रेज़ी: Malla Mahajanapada) पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। यह भी एक गणसंघ था और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके इसके क्षेत्र थे। मल्ल देश का सर्वप्रथम निश्चित उल्लेख शायद वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार है कि रामचन्द्र ने लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतु के लिए मल्ल देश की भूमि में चंद्रकान्ता नामक पुरी बसाई जो स्वर्ग के समान दिव्य थी।[1]
महाभारत में उल्लेख
महाभारत में मल्ल देश के विषय में कई उल्लेख हैं-
- ‘मल्ला: सुदेष्णा:प्रह्लादा माहिका शशिकास्तथा’[2] ;
- ‘अधिराज्यकुशाद्याश्च मल्लराष्ट्रं च केवलम्’[3];
- ‘ततो गोपालकक्षं च सोत्तरानपि कोसलान्, मल्लानामधिपं चैव पार्थिवं चाजयत् प्रभु:’।[4]
बौद्ध-ग्रन्थ में उल्लेख
बौद्ध-ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय में मल्ल जनपद का उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में मल्ल देश की दो राजधानियों का वर्णन है-
- महापरिनिब्बानसुत्त के वर्णन के अनुसार गौतम बुद्ध के समय में कुसीनारा या कुशीनगर के निकट मल्लों का शालवन हिरण्यवती नदी (गंडक) के तट पर स्थित था।
- मनुस्मृति में मल्लों को व्रात्य क्षत्रियों में परिगणित किया गया है, क्योंकि ये बौद्ध धर्म के दृढ़ अनुयायी थे।
- कुसजातक में ओक्काक (इक्ष्वाकु) नामक मल्ल-नरेश का उल्लेख है। इक्ष्वाकुवंशीय नरेशों का परंपरागत राज्य अयोध्या या कोसल प्रदेश में था। राय चौधरी का मत है[6] कि मल्ल राष्ट्र में बिंबिसार के पूर्व गणराज्य स्थापित हो गया था। इससे पहले यहाँ के अनेक राजाओं के नाम मिलते हैं। बौद्ध साहित्य में मल्ल जनपद के भोग नगर , अनुप्रिय तथा उरुवेलकप्प नामक नगरों के नाम मिलते हैं। बौद्ध तथा जैन साहित्य में मल्लों और लिच्छवियों की प्रतिद्वंदिता के अनेक उल्लेख हैं—[7] बुद्ध के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त करने के उपरान्त, उनके अस्थि-अवशेषों का एक भाग मल्लों को मिला था जिसके संस्मरणार्थ उन्होंने कुशीनगर में एक स्तूप या चैत्य का निर्माण किया था। इसके खंडहर कसिया में मिले हैं। इस स्थान से प्राप्त एक ताम्रपट्टलेख से यह तथ्य प्रमाणित भी होता है—‘(परिनि) वार्ण चैत्यताभ्रपट्ट इति’। मगध के राजनीतिक उत्कर्ष के समय मल्ल जनपद इसी साम्राज्य की विस्तरणशील सत्ता के सामने न टिक सका।
- चौथी शती ई. पू. में चंद्रगुप्त मौर्य के महान् साम्राज्य में विलीन हो गया। जैन ग्रंथ 'भगवती सूत्र' में मोलि या मालि नाम से मल्ल-जनपद का उल्लेख है। बौद्ध काल में मल्ल राष्ट्र की स्थिति उत्तर प्रदेश के पूर्वी और बिहार के पश्चिमी भाग के अंतर्गत समझनी चाहिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ‘चंद्रकेतोश्च मल्लस्य मल्लभूम्यां निवेशिता, चंद्रकांतेति विख्याता दिव्या स्वर्गपुरी यथा’ वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड 102।
- ↑ महाभारत, भीष्मपर्व 9,46
- ↑ महाभारत, भीष्मपर्व 9,44
- ↑ महाभारत, सभापर्व 30,3
- ↑ कुसजातक; महापरिनिब्बान सुत्त
- ↑ पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव ऐशेंट इंडिया, पृ. 107-108
- ↑ बुद्धसाल जातक, कल्पसूत्र आदि