गाल में चावल भरे होना: Difference between revisions

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'''अर्थ'''- मुँह में ठीक तरह बात न निकलन।
'''अर्थ'''- मुँह से ठीक तरह बात न निकलना।


'''प्रयोग'''- अरे उस व्यक्ति के मुँह में मानों जैसे हमेशा चावल ही भरे रहते हों कुछ समझ ही नहीं आता उसके मुँह से निकला हुआ शब्द्।
'''प्रयोग'''- अरे उस व्यक्ति के मुँह में मानों जैसे हमेशा ही 'चावल भरे रहते' हैं। उसके मुँह से निकला हुआ एक भी शब्द समझ ही नहीं आता।




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Latest revision as of 12:48, 21 April 2018

गाल में चावल भरे होना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।

अर्थ- मुँह से ठीक तरह बात न निकलना।

प्रयोग- अरे उस व्यक्ति के मुँह में मानों जैसे हमेशा ही 'चावल भरे रहते' हैं। उसके मुँह से निकला हुआ एक भी शब्द समझ ही नहीं आता।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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