गिरधारी लाल विश्वकर्मा: Difference between revisions

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*इन्होंने [[2005]] में कम्प्यूटर से ग्रामोफोन को जोड़कर पुराने रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का काम शुरू किया।
*इन्होंने [[2005]] में कम्प्यूटर से ग्रामोफोन को जोड़कर पुराने रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का काम शुरू किया।
*गिरधारी लाल का लक्ष्य [[1970]] तक के रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन करना है।
*गिरधारी लाल का लक्ष्य [[1970]] तक के रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन करना है।
*इनके पास पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाएं भी हैं, जिनमें [[हिंदी]] फ़िल्म गीतकोश के आलावा ‘दो घड़ी मौज़, मौज़ मघ, रंगभूमि, चित्रपट, सिनेमा संसार, द मूवीज जैसी पत्रिकाएं शामिल हैं। ये पत्रिकाएं [[गुजराती]], [[मराठी]], [[हिंदी]] व [[अंग्रेज़ी]] में हैं। जिसमें पुरानी फ़िल्मों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं।
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==योगदान==
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[[1941]] से [[1950]] के दौर में बने रिकॉर्ड पर गायक के नाम की जगह फ़िल्म के कलाकारों के नाम लिखे जाते थे। ऐसे में गायक को आवाज से पहचानना पड़ता था, लेकिन कई बार इसमें भी मुश्किल पेश आती थी, जिससे गाने का श्रेय किसी और के हिस्से चला जाता था। [[1984]] में लिसनर बुलेटिन पत्रिका के संपादक, हरमंदिर सिंह ने ‘हमराज’ की [[हिंदी]] फिल्मकोश पुस्तक के दो वॉल्यूम मंगवाए। इनमें उन्हें फ़िल्मों के नाम, उसके बोल संगीतकार, गीतकारों के नाम तो मिले लेकिन कई जगहों पर गायकों का ज़िक्र नहीं था। कारण यह था कि कोई जानता ही नहीं था कि इन गानों को गाया किसने है। गिरधारी लाल ने इन खाली जगहों को अपने श्रोता मित्रों से बातचीत के ज़रिये तथ्य इकट्ठे कर भरना शुरू किया।
[[1941]] से [[1950]] के दौर में बने रिकॉर्ड पर गायक के नाम की जगह फ़िल्म के कलाकारों के नाम लिखे जाते थे। ऐसे में गायक को आवाज से पहचानना पड़ता था, लेकिन कई बार इसमें भी मुश्किल पेश आती थी, जिससे गाने का श्रेय किसी और के हिस्से चला जाता था। [[1984]] में लिसनर बुलेटिन पत्रिका के संपादक, हरमंदिर सिंह ने ‘हमराज’ की [[हिंदी]] फिल्मकोश पुस्तक के दो वॉल्यूम मंगवाए। इनमें उन्हें फ़िल्मों के नाम, उसके बोल संगीतकार, गीतकारों के नाम तो मिले लेकिन कई जगहों पर गायकों का ज़िक्र नहीं था। कारण यह था कि कोई जानता ही नहीं था कि इन गानों को गाया किसने है। गिरधारी लाल ने इन ख़ाली जगहों को अपने श्रोता मित्रों से बातचीत के ज़रिये तथ्य इकट्ठे कर भरना शुरू किया।


वे बताते हैं कि 1948 में आई फ़िल्म ‘अजामिल’ में रामप्यारी नामक गायिका ने गीत गाए थे, लेकिन इस बारे में कहीं कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। दो साल पहले उन्होंने संगीत के क्षेत्र से जुड़े किशोर देसाई का इंटरव्यू सुना। इसके बाद उनसे सम्पर्क किया, और बातों-बातों में फ़िल्म के संगीतकार मोहन जूनियर का जिक्र हुआ। किशोर ने बताया कि वे उनके साथ काम कर चुके हैं। जब उन्होंने उस फ़िल्म में गाने सुनाये तो पता चला कि जिस गीत की गायिका को सभी ज़ोहराबाई अम्बालेवाली सोच रहे थे, असल में वो राम प्यारी थीं।
वे बताते हैं कि 1948 में आई फ़िल्म ‘अजामिल’ में रामप्यारी नामक गायिका ने गीत गाए थे, लेकिन इस बारे में कहीं कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। दो साल पहले उन्होंने संगीत के क्षेत्र से जुड़े किशोर देसाई का इंटरव्यू सुना। इसके बाद उनसे सम्पर्क किया, और बातों-बातों में फ़िल्म के संगीतकार मोहन जूनियर का जिक्र हुआ। किशोर ने बताया कि वे उनके साथ काम कर चुके हैं। जब उन्होंने उस फ़िल्म में गाने सुनाये तो पता चला कि जिस गीत की गायिका को सभी ज़ोहराबाई अम्बालेवाली सोच रहे थे, असल में वो राम प्यारी थीं।
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Latest revision as of 11:46, 21 April 2018

गिरधारी लाल विश्वकर्मा
कर्म भूमि जोधपुर, राजस्थान
पुरस्कार-उपाधि गिरधारी लाल विश्वकर्मा को मास्टर आर्टिस्ट के रूप में भारत के राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है।
प्रसिद्धि चित्रकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गिरधारी लाल विश्वकर्मा के पास पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाएं भी हैं, जिनमें हिंदी फ़िल्म गीतकोश के अलावा ‘दो घड़ी मौज़, मौज़ मघ, रंगभूमि, चित्रपट, सिनेमा संसार, द मूवीज जैसी पत्रिकाएं शामिल हैं। ये पत्रिकाएं गुजराती, मराठी, हिंदीअंग्रेज़ी में हैं। जिसमें पुरानी फ़िल्मों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं।
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गिरधारी लाल विश्वकर्मा (अंग्रेज़ी: Girdhari Lal wishvakarma) चित्रकार हैं और भारत के पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर में एक हस्तकला व्यवसाय चलाते हैं। उन्हें मास्टर आर्टिस्ट के रूप में भारत के राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। ये पुराने रिकॉर्ड्स के डिजिटाइजेशन का कार्य करते हैं। इन्होंने 1932 से लेकर 1953 तक के बारह हज़ार गानों को डिजिटल रूप में बदल दिया है। इस संग्रह में हिंदी फ़िल्मी गीतों के अलावा कई राजस्थानी दुर्लभ गीत भी शामिल हैं।[1]

संक्षिप्त परिचय

  • मूलरूप से बाड़मेर ज़िले के अलमसर गांव के रहने वाले गिरधारी लाल विश्वकर्मा को बचपन में ही रेडियों पर पुराने गीत सुनने का शौक था।
  • इन्होंने 2005 में कम्प्यूटर से ग्रामोफोन को जोड़कर पुराने रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का काम शुरू किया।
  • गिरधारी लाल का लक्ष्य 1970 तक के रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन करना है।
  • इनके पास पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाएं भी हैं, जिनमें हिंदी फ़िल्म गीतकोश के अलावा ‘दो घड़ी मौज़, मौज़ मघ, रंगभूमि, चित्रपट, सिनेमा संसार, द मूवीज जैसी पत्रिकाएं शामिल हैं। ये पत्रिकाएं गुजराती, मराठी, हिंदीअंग्रेज़ी में हैं। जिसमें पुरानी फ़िल्मों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं।

योगदान

1941 से 1950 के दौर में बने रिकॉर्ड पर गायक के नाम की जगह फ़िल्म के कलाकारों के नाम लिखे जाते थे। ऐसे में गायक को आवाज से पहचानना पड़ता था, लेकिन कई बार इसमें भी मुश्किल पेश आती थी, जिससे गाने का श्रेय किसी और के हिस्से चला जाता था। 1984 में लिसनर बुलेटिन पत्रिका के संपादक, हरमंदिर सिंह ने ‘हमराज’ की हिंदी फिल्मकोश पुस्तक के दो वॉल्यूम मंगवाए। इनमें उन्हें फ़िल्मों के नाम, उसके बोल संगीतकार, गीतकारों के नाम तो मिले लेकिन कई जगहों पर गायकों का ज़िक्र नहीं था। कारण यह था कि कोई जानता ही नहीं था कि इन गानों को गाया किसने है। गिरधारी लाल ने इन ख़ाली जगहों को अपने श्रोता मित्रों से बातचीत के ज़रिये तथ्य इकट्ठे कर भरना शुरू किया।

वे बताते हैं कि 1948 में आई फ़िल्म ‘अजामिल’ में रामप्यारी नामक गायिका ने गीत गाए थे, लेकिन इस बारे में कहीं कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। दो साल पहले उन्होंने संगीत के क्षेत्र से जुड़े किशोर देसाई का इंटरव्यू सुना। इसके बाद उनसे सम्पर्क किया, और बातों-बातों में फ़िल्म के संगीतकार मोहन जूनियर का जिक्र हुआ। किशोर ने बताया कि वे उनके साथ काम कर चुके हैं। जब उन्होंने उस फ़िल्म में गाने सुनाये तो पता चला कि जिस गीत की गायिका को सभी ज़ोहराबाई अम्बालेवाली सोच रहे थे, असल में वो राम प्यारी थीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गिरधारी लाल विश्वकर्मा (हिंदी) www.dnaindia.com। अभिगमन तिथि: 28 जून, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख