इपिकाकुआना: Difference between revisions
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*सूखी खाँसी में यह अधिक ढीला कफ उत्पन्न करके आराम पहुँचाती है। | *सूखी खाँसी में यह अधिक ढीला कफ उत्पन्न करके आराम पहुँचाती है। | ||
*एमेटीन अमीबी आमातिसार के लिए अचूक ओषधि है। एमेटीन अंत:पेशीय इंजेक्शन द्वारा दी जाती है तथा तीव्र आमातिसार अथवा यकृत्कोप में आश्चर्यजनक लाभ दिखाती है। इसकी मात्रा एक ग्रेन | *एमेटीन अमीबी आमातिसार के लिए अचूक ओषधि है। एमेटीन अंत:पेशीय इंजेक्शन द्वारा दी जाती है तथा तीव्र आमातिसार अथवा यकृत्कोप में आश्चर्यजनक लाभ दिखाती है। इसकी मात्रा एक ग्रेन प्रतिदिन के हिसाब से 12 [[दिन]] तक है। इतने दिन रोगी को विस्तर पर से उठना नहीं चाहिए। | ||
*इपीकाकुआना का चूर्ण कफ बढ़ाने के लिए 2 ग्रेन तक तथा वमन कराने के लिए 15 से 30 ग्रेन तक की मात्रा में प्रयुक्त होता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=529 |url=}}</ref> | *इपीकाकुआना का चूर्ण कफ बढ़ाने के लिए 2 ग्रेन तक तथा वमन कराने के लिए 15 से 30 ग्रेन तक की मात्रा में प्रयुक्त होता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=529 |url=}}</ref> | ||
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Latest revision as of 12:03, 29 August 2020
इपिकाकुआना 'सिफैलिस इपीकाकुआना' नमक पौधे की सूखी जड़ का नाम है। इसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसमें मुख्यत: एमेटीन तथा सिफैलीन ये दो ऐल्कलॉएड होते हैं। अंशत: पेट तथा अंशत: वामक केंद्र पर प्रभाव डालने के कारण यह बड़ी मात्रा में शक्तिशाली वमनकारक है।
- एमेटीन एक शक्तिशाली अमीबा नाशक है।
- इपीकाकुआना का प्रयोग वमन कराने तथा कफ का उत्सारण बढ़ाने के लिए होता है।
- सूखी खाँसी में यह अधिक ढीला कफ उत्पन्न करके आराम पहुँचाती है।
- एमेटीन अमीबी आमातिसार के लिए अचूक ओषधि है। एमेटीन अंत:पेशीय इंजेक्शन द्वारा दी जाती है तथा तीव्र आमातिसार अथवा यकृत्कोप में आश्चर्यजनक लाभ दिखाती है। इसकी मात्रा एक ग्रेन प्रतिदिन के हिसाब से 12 दिन तक है। इतने दिन रोगी को विस्तर पर से उठना नहीं चाहिए।
- इपीकाकुआना का चूर्ण कफ बढ़ाने के लिए 2 ग्रेन तक तथा वमन कराने के लिए 15 से 30 ग्रेन तक की मात्रा में प्रयुक्त होता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 529 |