किनाराम बाबा: Difference between revisions

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Revision as of 08:29, 24 April 2011

  • महात्मा किनाराम का जन्म बनारस ज़िले के क्षत्रिय कुल में विक्रम संवत 1758 के लगभग हुआ।
  • किनाराम की द्विरागमन के पूर्व ही पत्नी का देहान्त हो गया। उसके कुछ दिन बाद उदास होकर किनाराम घर से निकल गये और गाज़ीपुर ज़िले के कारो नामक गाँव के संयोजी वैष्णव महात्मा शिवादास कायस्थ की सेवा टहल में रहने लगे और कुछ दिनों के बाद उन्हीं के शिष्य हो गये। कुछ वर्ष गुरुसेवा करके उन्होंने गिरनार पर्वत की यात्रा की। वहाँ पर किनाराम ने भगवान दत्तात्रेय का दर्शन किया और उनसे अवधूत वृत्ति की शिक्षा लेकर उनकी आज्ञा से काशी लौटे।
  • काशी में किनाराम ने बाबा कालूराम अघोरपंथी से अघोर मत का उपदेश लिया। वैष्णव भागवत और फिर अघोरपंथी होकर किनाराम ने उपासना का एक नया व अदभुत सम्मिश्रण किया। वैष्णव रीति से ये रामोपासक हुए और अघोर पंथ की रीति से मद्य-मांसादि के सेवन में इन्हें कोई आपत्ति न हुई।
  • किनाराम को जाति-पाति का कोई भेदभाव न था। किनाराम का पंथ अलग ही चल पड़ा। किनाराम के शिष्य हिन्दूमुसलमान दोनों ही हुए।
  • किनाराम ने अपने दोनों गुरुओं की मर्यादा निभाने के लिए इन्होंने वैष्णव मत के चार स्थान मारुफ़पुर, नयी डीह, परानापुर और महपुर में और अघोर मत के चार स्थान रामगढ़ (बनारस), देवल (गाज़ीपुर), हरिहरपुर (जौनपुर) तथा कृमिकुंड (काशी) में स्थापित किये। ये मठ अब तक चल रहे हैं।
  • किनाराम ने भदैनी में कृमिकुंड पर स्वयं रहना आरम्भ किया। काशी में अब भी इनकी प्रधान गद्दी कृमिकुंड पर है। किनाराम के अनुयायी सभी जाति के लोग हैं। रामावतार की उपासना इनकी विशेषता है। ये तीर्थयात्रा आदि मानते हैं, किनाराम को औघड़ भी कहते हैं। ये देवताओं की मूर्ति की पूजा नहीं करते। अपने शवों को समाधि देते हैं, जलाते नहीं हैं। किनाराम बाबा ने संवत 1800 वि. में 142 वर्ष की अवस्था में समाधि ली।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पाण्डेय, डॉ. राजबली हिन्दू धर्मकोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, पृष्ठ सं 187।


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