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जमदग्नि भृगु के पौत्र तथा ऋचीक के पुत्र थे, जो ब्रह्मर्षि थे। पौराणिक गाथाओं के अनुसार जमदग्नि [[परशुराम]] के पिता थे। [[ऋग्वेद]] में उल्लिखित धार्मिक [[ऋषि|ऋषियों]] में जमदग्नि का नाम आता है। कुछ मंत्रों में इनका नाम मंत्र रचयिता के रूप में तथा एक मंत्र में [[विश्वामित्र]] के सहयोगी के रूप में उल्लिखित है।  
जमदग्नि [[भृगु]] के पौत्र तथा ऋचीक के पुत्र थे, जो ब्रह्मर्षि थे। पौराणिक गाथाओं के अनुसार जमदग्नि [[परशुराम]] के पिता थे। [[ऋग्वेद]] में उल्लिखित धार्मिक [[ऋषि|ऋषियों]] में जमदग्नि का नाम आता है। कुछ मंत्रों में इनका नाम मंत्र रचयिता के रूप में तथा एक मंत्र में [[विश्वामित्र]] के सहयोगी के रूप में उल्लिखित है। इनकी माता का नाम सत्यवती तथा पत्नी का नाम रेणुका था।
==विवाह==
इनका विवाह प्रसेनजित की कन्या [[रेणुका]] से हुआ था। [[महाभारत]] के अनुसार जमदग्नि ने वेदों का सांगोपांग अध्ययन कर उनका ज्ञान दुह लिया और तब उन्होंने [[सूर्यवंश]] के राजा रेणु अथवा प्रसेनजित के पास जाकर उसकी कन्या [[रेणुका]] को ब्याहा और आश्रम बना कर उसमें निवास करने लगे। उनकी पत्नी राजकन्या का वैभव छोड़कर तापसी का जीवन बिताने लगी। उससे जमदग्नि के पाँच पुत्र हुए-रूमण्वान सुषेण, वसु, विश्वावसु और [[परशुराम]]।
==स्वभाव==
जमदग्नि का भिन्न-भिन्न पुराणों में इनका चरित्र भिन्न-भिन्न प्रकार से वर्णित है। [[ऋग्वेद]] के नवम मण्डल के 62 तथा 65 एवं दसवें मण्डल के 110 वें सूत्र की रचना इन्होंने की है। जमदग्नि नाम के अनुरूप क्रोधी थे। जम अर्थात [[यमराज]] दग्नि-अग्नि की तरह क्रोधी अग्नि के समान थे। एक बार इनकी पत्नी को सरोवर से स्नान कर लौटने में देर हुई, तो इन्होंने पुत्रों को अपनी माता का वध करने की आज्ञा की परंतु उसकी आज्ञा का पालन केवल [[परशुराम]] ने किया। इसलिए जमदग्नि ने शेष चार पुत्रों का वध कर डाला। जमदग्नि परशुराम पर अत्यंत प्रसन्न हुए थे। अत: उन्होंने उसे वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपनी माता समेत चारों भाइयों को जीवित करने की प्रार्थना की। जमदग्नि ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और अपनी पत्नी और चारों पुत्रों को पुनर्जीवित किया। तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया।
==पुराणों के अनुसार==  
==पुराणों के अनुसार==  
[[अथर्ववेद]], [[यजुर्वेद]] एवं [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] में प्राय: इनका उल्लेख है। इनकी उन्नति तथा इनके परिवार की सफलता का कारण चतुरात्र यज्ञ बताया गया है। अथर्ववेद में इनका सम्बन्ध अत्रि, कण्व, असित एवं वीतहव्य से बताया गया है। शुन: शेष के प्रस्ताबित यज्ञ के ये अध्वर्यु पुरोहित थे।  
* [[अथर्ववेद]], [[यजुर्वेद]] एवं [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] में प्राय: इनका उल्लेख है। इनकी उन्नति तथा इनके परिवार की सफलता का कारण चतुरात्र [[यज्ञ]] बताया गया है। अथर्ववेद में इनका सम्बन्ध [[अत्रि]], [[कण्व]], असित एवं वीतहव्य से बताया गया है। शुन: शेष के प्रस्ताबित यज्ञ के ये अध्वर्यु पुरोहित थे। जमदग्नि को हैहयों ने इनको अपमानित कर इनकी [[कामधेनु|कामधेनु गाय]] छीन ली थी। इसका प्रतिशोध परशुराम ने लिया और उत्तर [[भारत]] के क्षत्रिय राजाओं को मिलाकर हैहयों को परास्त और ध्वस्त किया।  
 
* डॉ. भगवतशरण उपाध्याय के शब्दों में " [[विष्णुपुराण]] का कथन है कि जब [[सत्यवती]] गर्भवती हुई तब उसके पति ने उसे एक प्रकार की मंत्रपूत खीर खिलायी जिससे उसका पुत्र ब्राह्मण के गुणों से संयुक्त उत्पन्न हो। ऐसी ही खीर ऋचीक ने सत्यवती की माता को भी खिलायी जिससे उसका पुत्र योद्धा हो। पर संयोग से खीर के पात्र बदल गये और परिणामत: ऋचीक के पुत्र जमदग्नि क्षत्रियकर्मा और गाधि के तनय [[विश्वामित्र]] ब्राह्मणकर्मा हुए। तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया। एक दिन जब रेणुका स्नान के लिए गयी तब उसने प्रेमासक्त मानव- मिथुन को जल में क्रीड़ा करते देखा और स्नान कर जब आश्रम में लौटी तो जलसिक्त तो नि:संदेह थी पर स्नान से पुनीत नहीं ऐसा ऋषि ने सोचा। जमदग्नि उसकी स्थिति से अत्यंत क्षुब्ध हो उठे और आयुक्रम से जैसे जैसे उनके पुत्र बाहर से आते गए वैसे-वैसे वे उनसे माता का वध करने के लिए कहते गए। पर उनके चार पुत्रों ने माता-वध का जघन्य पाप करने से इंकार कर दिया। परशुराम को जब यही आदेश मिला तब उन्होंने माता रेणुका का सिर अपने परशु से काट दिया जिससे प्रसन्न होकर पिता ने उनसे वर मांगने को कहा। परशुराम ने माँगा कि माता पुनर्जीवित हो उठे तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया।
==प्रतिशोध==
*इस सम्बन्ध में एक कथा और भी कही जाती है। हैहयों का राजा कार्तवीर्य जमदग्नि ऋषि तथा उनके पुत्रों की अनुपस्थिति में, उनके आश्रम में पहुँचा, जिसका ऋषिपत्नी ने प्रभूत अतिथि-सत्कार किया। पर अपनी शक्ति के दर्प में चूर कार्तवीर्य ने आश्रम के वृक्ष उखाड़ फेंक और जमदग्नि के तप से अर्जित आश्रम की [[गाय]] अपहृत कर ली। इससे जमदग्नि की पत्नी भी दुखी हुई। तो स्थिति जान कार्तवीर्य का पीछा किया ओर उसके सहस्त्र हाथ काट डाले। बाद में कार्तवीर्य के पुत्रों ने परशुराम की अनुपस्थिति में जमदग्नि को मार दिया। परशुराम जब लौटे और पिता की यह गति देखी तब उनके शव को चिता पर रखते हुए उन्होंने प्रण किया कि मैं क्षत्रियों का इक्कीस बार नाश करूँगा और उन्हें कभी शस्त्रज्ञान नहीं दूँगा। कार्तवीर्य के पुत्रों को खोजकर उन्होंने एक-एक कर वध किया और इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार किया।  
जमदग्नि को हैहयों ने इनको अपमानित कर इनकी कामधेनु गाय छीन ली थी। इसका प्रतिशोध परशुराम ने लिया और उत्तर [[भारत]] के क्षत्रिय राजाओं को मिलाकर हैहयों को परास्त और ध्वस्त किया।  
 
 
==क्रोधी स्वभाव==
जमदग्नि का भिन्न-भिन्न पुराणों में इनका चरित्र भिन्न-भिन्न प्रकार से वर्णित है। ऋग्वेद के नवम मण्डल के 62 तथा 65 एवं दसवें मण्डल के 110 वें सूत्र की रचना इन्होंने की है। जमदग्नि नाम के अनुरूप क्रोधी थे। जम अर्थात [[यमराज]] दग्नि-अग्नि की तरह क्रोधी अग्नि के समान थे। एक बार इनकी पत्नी को सरोवर से स्नान कर लौटने में देर हुई, तो इन्होंने पुत्रों को अपनी माता का वध करने की आज्ञा की परंतु उसकी आज्ञा का पालन केवल [[परशुराम]] ने किया। इसलिए जमदग्नि ने शेष चार पुत्रों का वध कर डाला। जमदग्नि परशुराम पर अत्यंत प्रसन्न हुए थे। अत: उन्होंने उसे वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपनी माता समेत चारों भाइयों को जीवित करने की प्रार्थना की। जमदग्नि ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और अपनी पत्नी और चारों पुत्रों को पुनर्जीवित किया।
तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया।
 
 
==क्षत्रियकर्मा==
(2)-डॉ. भगवतशरण उपाध्याय के शब्दों में " [[विष्णुपुराण]] का कथन है कि जब [[सत्यवती]] गर्भवती हुई तब उसके पति ने उसे एक प्रकार की मंत्रपूत खीर खिलायी जिससे उसका पुत्र ब्राह्मण के गुणों से संयुक्त उत्पन्न हो। ऐसी ही खीर ऋचीक ने सत्यवती की माता को भी खिलायी जिससे उसका पुत्र योद्धा हो। पर संयोग से खीर के पात्र बदल गये और परिणामत: ऋचीक के पुत्र जमदग्नि क्षत्रियकर्मा और गाधि के तनय [[विश्वामित्र]] ब्राह्मणकर्मा हुए।
==विवाह==
[[महाभारत]] के अनुसार जमदग्नि ने वेदों का सांगोपांग अध्ययन कर उनका ज्ञान दुह लिया और तब उन्होंने [[सूर्यवंश]] के राजा रेणु अथवा प्रसेनजित के पास जाकर उसकी कन्या [[रेणुका]] को ब्याहा और आश्रम बना कर  उसमें निवास करने लगे। उनकी पत्नी राजकन्या का वैभव छोड़कर तापसी का जीवन बिताने लगी। उससे जमदग्नि के पाँच पुत्र हुए-रूमण्वान सुषेण, वसु, विश्वावसु और [[परशुराम]]।
 
तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया।
इस सम्बन्ध में एक कथा और भी कही जाती है। हैहयों का राजा कार्तवीर्य जमदग्नि ऋषि तथा उनके पुत्रों की अनुपस्थिति में, उनके आश्रम में पहुँचा, जिसका ऋषिपत्नी ने प्रभूत अतिथि-सत्कार किया। पर अपनी शक्ति के दर्प में चूर कार्तवीर्य ने आश्रम के वृक्ष उखाड़ फेंक और जमदग्नि के तप से अर्जित आश्रम की [[गाय]] अपहृत कर ली। इससे जमदग्नि की पत्नी भी दुखी हुई। तो स्थिति जान कार्तवीर्य का पीछा किया ओर उसके सहस्त्र हाथ काट डाले। बाद में कार्तवीर्य के पुत्रों ने परशुराम की अनुपस्थिति में जमदग्नि को मार दिया। परशुराम जब लौटे और पिता की यह गति देखी तब उनके शव को चिता पर रखते हुए उन्होंने प्रण किया कि मैं क्षत्रियों का इक्कीस बार नाश करूँगा और उन्हें कभी शस्त्रज्ञान नहीं दूँगा। कार्तवीर्य के पुत्रों को खोजकर उन्होंने एक-एक कर वध किया और इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार किया।
 


जमदग्नि भृगु के पौत्र तथा ऋचीक के पुत्र, जो ब्रह्मर्षि थे। इनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ था, जिनसे इन्हें समन्वान्‌, सुषेण, वसु, विश्वावसु और परशुराम, पाँच पुत्र पैदा हुए। एक बार इनकी पत्नी रेणुका का मन राजा चित्ररथ को अपनी स्त्रियों के साथ क्रीड़ा करते देख, विचलित हो गया। जमदग्नि योगबल से यह जान गए और उन्होंने अपने पुत्रों को बारी-बारी से रेणुका का वध करने की आज्ञा दी। सबके अस्वीकार करने पर परशुराम ने उसका वध किया। इसपर प्रसन्न होकर जमदग्नि में उन्हें वर माँगने को कहा। परशुराम ने माता के पुनर्जीवित हो जाने का वर माँग, इस प्रकार रेणुका पुन:जीवित हो उठीं। एक बार जब जमदग्नि ध्यानमग्न थे, कार्तवीर्य ने इन्हें मार डाला। (भोलानाथ तिवारी




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पौराणिक गाथाओं के अनुसार जमदग्नि [[परशुराम]] के पिता थे।


जमदग्नि (यमदग्नि) पिता-भृगकुल के ऋचीक ऋषि (पद्म पुराण के अनुसार भृगु) । इनकी माता का नाम सत्यवती। तथा पत्नी का नाम रेणुका था। तथा जमदग्नि के पाँच पुत्र बताए जाते है। रूमण्वान, सुषेण, वसुमान्, विश्वावसु तथा परशुराम नामक इनके पुत्र थे।




एक दिन जब रेणुका स्नान के लिए गयी तब उसने प्रेमासक्त मानव- मिथुन को जल में क्रीड़ा करते देखा और स्नान कर जब आश्रम में लौटी तो जलसिक्त तो नि:संदेह थी पर स्नान से पुनीत नहीं ऐसा ऋषि ने सोचा। जमदग्नि उसकी स्थिति से अत्यंत क्षुब्ध हो उठे और आयुक्रम से जैसे जैसे उनके पुत्र बाहर से आते गए वैसे-वैसे वे उनसे माता का वध करने के लिए कहते गए। पर उनके चार पुत्रों ने माता-वध का जघन्य पाप करने से इंकार कर दिया। परशुराम को जब यही आदेश मिला तब उन्होंने माता रेणुका का सिर अपने परशु से काट दिया जिससे प्रसन्न होकर पिता ने उनसे वर मांगने को कहा। परशुराम ने माँगा कि माता पुनर्जीवित हो उठे
तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया।


<ref>हिन्दू कोश पेज न. 275</ref>
<ref>हिन्दू कोश पेज न. 275</ref>

Revision as of 09:47, 3 May 2011

जमदग्नि भृगु के पौत्र तथा ऋचीक के पुत्र थे, जो ब्रह्मर्षि थे। पौराणिक गाथाओं के अनुसार जमदग्नि परशुराम के पिता थे। ऋग्वेद में उल्लिखित धार्मिक ऋषियों में जमदग्नि का नाम आता है। कुछ मंत्रों में इनका नाम मंत्र रचयिता के रूप में तथा एक मंत्र में विश्वामित्र के सहयोगी के रूप में उल्लिखित है। इनकी माता का नाम सत्यवती तथा पत्नी का नाम रेणुका था।

विवाह

इनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ था। महाभारत के अनुसार जमदग्नि ने वेदों का सांगोपांग अध्ययन कर उनका ज्ञान दुह लिया और तब उन्होंने सूर्यवंश के राजा रेणु अथवा प्रसेनजित के पास जाकर उसकी कन्या रेणुका को ब्याहा और आश्रम बना कर उसमें निवास करने लगे। उनकी पत्नी राजकन्या का वैभव छोड़कर तापसी का जीवन बिताने लगी। उससे जमदग्नि के पाँच पुत्र हुए-रूमण्वान सुषेण, वसु, विश्वावसु और परशुराम

स्वभाव

जमदग्नि का भिन्न-भिन्न पुराणों में इनका चरित्र भिन्न-भिन्न प्रकार से वर्णित है। ऋग्वेद के नवम मण्डल के 62 तथा 65 एवं दसवें मण्डल के 110 वें सूत्र की रचना इन्होंने की है। जमदग्नि नाम के अनुरूप क्रोधी थे। जम अर्थात यमराज दग्नि-अग्नि की तरह क्रोधी अग्नि के समान थे। एक बार इनकी पत्नी को सरोवर से स्नान कर लौटने में देर हुई, तो इन्होंने पुत्रों को अपनी माता का वध करने की आज्ञा की परंतु उसकी आज्ञा का पालन केवल परशुराम ने किया। इसलिए जमदग्नि ने शेष चार पुत्रों का वध कर डाला। जमदग्नि परशुराम पर अत्यंत प्रसन्न हुए थे। अत: उन्होंने उसे वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपनी माता समेत चारों भाइयों को जीवित करने की प्रार्थना की। जमदग्नि ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और अपनी पत्नी और चारों पुत्रों को पुनर्जीवित किया। तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया।

पुराणों के अनुसार

  • अथर्ववेद, यजुर्वेद एवं ब्राह्मणों में प्राय: इनका उल्लेख है। इनकी उन्नति तथा इनके परिवार की सफलता का कारण चतुरात्र यज्ञ बताया गया है। अथर्ववेद में इनका सम्बन्ध अत्रि, कण्व, असित एवं वीतहव्य से बताया गया है। शुन: शेष के प्रस्ताबित यज्ञ के ये अध्वर्यु पुरोहित थे। जमदग्नि को हैहयों ने इनको अपमानित कर इनकी कामधेनु गाय छीन ली थी। इसका प्रतिशोध परशुराम ने लिया और उत्तर भारत के क्षत्रिय राजाओं को मिलाकर हैहयों को परास्त और ध्वस्त किया।
  • डॉ. भगवतशरण उपाध्याय के शब्दों में " विष्णुपुराण का कथन है कि जब सत्यवती गर्भवती हुई तब उसके पति ने उसे एक प्रकार की मंत्रपूत खीर खिलायी जिससे उसका पुत्र ब्राह्मण के गुणों से संयुक्त उत्पन्न हो। ऐसी ही खीर ऋचीक ने सत्यवती की माता को भी खिलायी जिससे उसका पुत्र योद्धा हो। पर संयोग से खीर के पात्र बदल गये और परिणामत: ऋचीक के पुत्र जमदग्नि क्षत्रियकर्मा और गाधि के तनय विश्वामित्र ब्राह्मणकर्मा हुए। तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया। एक दिन जब रेणुका स्नान के लिए गयी तब उसने प्रेमासक्त मानव- मिथुन को जल में क्रीड़ा करते देखा और स्नान कर जब आश्रम में लौटी तो जलसिक्त तो नि:संदेह थी पर स्नान से पुनीत नहीं ऐसा ऋषि ने सोचा। जमदग्नि उसकी स्थिति से अत्यंत क्षुब्ध हो उठे और आयुक्रम से जैसे जैसे उनके पुत्र बाहर से आते गए वैसे-वैसे वे उनसे माता का वध करने के लिए कहते गए। पर उनके चार पुत्रों ने माता-वध का जघन्य पाप करने से इंकार कर दिया। परशुराम को जब यही आदेश मिला तब उन्होंने माता रेणुका का सिर अपने परशु से काट दिया जिससे प्रसन्न होकर पिता ने उनसे वर मांगने को कहा। परशुराम ने माँगा कि माता पुनर्जीवित हो उठे तथा आचार में पूर्ववत उनकी प्रतिष्ठा हो जाये और पिता के शाप से प्राण-विरहित हो गये चारों भाइयों ज्ञान पुन: जीवन दान और ज्ञान मिल जाय। जमदग्नि ने उन्हें यथेप्सित वर दे दिया।
  • इस सम्बन्ध में एक कथा और भी कही जाती है। हैहयों का राजा कार्तवीर्य जमदग्नि ऋषि तथा उनके पुत्रों की अनुपस्थिति में, उनके आश्रम में पहुँचा, जिसका ऋषिपत्नी ने प्रभूत अतिथि-सत्कार किया। पर अपनी शक्ति के दर्प में चूर कार्तवीर्य ने आश्रम के वृक्ष उखाड़ फेंक और जमदग्नि के तप से अर्जित आश्रम की गाय अपहृत कर ली। इससे जमदग्नि की पत्नी भी दुखी हुई। तो स्थिति जान कार्तवीर्य का पीछा किया ओर उसके सहस्त्र हाथ काट डाले। बाद में कार्तवीर्य के पुत्रों ने परशुराम की अनुपस्थिति में जमदग्नि को मार दिया। परशुराम जब लौटे और पिता की यह गति देखी तब उनके शव को चिता पर रखते हुए उन्होंने प्रण किया कि मैं क्षत्रियों का इक्कीस बार नाश करूँगा और उन्हें कभी शस्त्रज्ञान नहीं दूँगा। कार्तवीर्य के पुत्रों को खोजकर उन्होंने एक-एक कर वध किया और इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार किया।






[1]

  1. हिन्दू कोश पेज न. 275