Difference between revisions of "पंजाब की संस्कृति"
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[[चित्र:Bhangra.jpg|thumb|250px|[[भांगड़ा नृत्य|भांगड़ा]], पंजाब <br />Bhangra., Punjab]] | [[चित्र:Bhangra.jpg|thumb|250px|[[भांगड़ा नृत्य|भांगड़ा]], पंजाब <br />Bhangra., Punjab]] | ||
− | लोकगीत, प्रेम और युद्ध के नृत्य मेले और त्योहार, [[नृत्यकला|नृत्य]], [[संगीत]] तथा साहित्य इस राज्य के सांस्कृतिक जीवन की विशेषताएं हैं। पंजाबी साहित्य की उत्पत्ति को 13 वीं शताब्दी के मुसलमान सूफी संत शेख़ फरीद के रहस्यवादी और धार्मिक दोहों तथा सिक्ख पंथ के संस्थापक, 15वीं-16वीं शताब्दी के [[गुरु नानक]] से जोड़ा जा सकता है। जिन्होंने पहली बार काव्य अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में व्यापक रुप से [[पंजाबी भाषा]] का उपयोग किया। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पंजाबी साहित्य को समृद्ध बनाने में वारिस शाह की भूमिका अतुलनीय है। 20वीं शताब्दी के आरंभ में कवि व लेखन भाई वीरसिंह तथा कवि पूरण सिंह और धनी राम चैत्रिक के लेखन के साथ ही पंजाबी साहित्य ने आधुनिक काल में प्रवेश किया। हाल के वर्षों में पंजाबी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को चित्रित करने वाली विभिन्न लेखकों, कवियों और उपन्यासकारों की भूमिका भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। कवियों में सबसे प्रसिद्ध मोहन सिंह माहिर और शिव कुमार बटालवी थे; उपन्यासकारों में जसंवतसिंह कंवल, गुरदयाल सिंह और सोहन सिंह शीतल उल्लेखनीय हैं; कुलवंत सिंह विर्क एक विख्यात लेखक हैं। [[पंजाब]] के ग्रामीण जीवन का चित्रण करने वाले सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक ज्ञानी गुरदित सिंह की मेरा पिण्ड है, जो पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट रचना है। | + | लोकगीत, प्रेम और युद्ध के नृत्य मेले और त्योहार, [[नृत्यकला|नृत्य]], [[संगीत]] तथा साहित्य इस राज्य के सांस्कृतिक जीवन की विशेषताएं हैं। पंजाबी साहित्य की उत्पत्ति को 13 वीं शताब्दी के [[मुसलमान]] सूफी संत शेख़ फरीद के रहस्यवादी और धार्मिक दोहों तथा सिक्ख पंथ के संस्थापक, 15वीं-16वीं शताब्दी के [[गुरु नानक]] से जोड़ा जा सकता है। जिन्होंने पहली बार काव्य अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में व्यापक रुप से [[पंजाबी भाषा]] का उपयोग किया। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में पंजाबी साहित्य को समृद्ध बनाने में वारिस शाह की भूमिका अतुलनीय है। 20वीं शताब्दी के आरंभ में कवि व लेखन भाई वीरसिंह तथा कवि पूरण सिंह और धनी राम चैत्रिक के लेखन के साथ ही पंजाबी साहित्य ने आधुनिक काल में प्रवेश किया। हाल के वर्षों में पंजाबी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को चित्रित करने वाली विभिन्न लेखकों, [[कवि|कवियों]] और उपन्यासकारों की भूमिका भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। कवियों में सबसे प्रसिद्ध मोहन सिंह माहिर और शिव कुमार बटालवी थे; उपन्यासकारों में जसंवतसिंह कंवल, गुरदयाल सिंह और सोहन सिंह शीतल उल्लेखनीय हैं; कुलवंत सिंह विर्क एक विख्यात लेखक हैं। [[पंजाब]] के ग्रामीण जीवन का चित्रण करने वाले सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक ज्ञानी गुरदित सिंह की मेरा पिण्ड है, जो पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट रचना है। |
− | पंजाब में कई धार्मिक और मौसमी त्योहार, जैसे-दशहरा, | + | पंजाब में कई धार्मिक और मौसमी त्योहार, जैसे- [[दशहरा]], [[दीपावली]], [[बैसाखी]] और विभिन्न गुरुओं तथा संतों की वर्षगांठ-मनाए जाते हैं। [[भांगड़ा नृत्य|भांगड़ा]], झूमर और सम्मी यहाँ के लोकप्रिय नृत्य हैं। पंजाब की स्थानीय [[नृत्य]] शैली [[गिद्दा नृत्य|गिद्दा]], महिलाओं की विनोदपूर्ण गीत-नृत्य शैली है। [[सिक्ख|सिक्खों]] के धार्मिक संगीत के साथ-साथ उपशास्त्रीय मुग़ल शैली भी लोकप्रिय है, जैसे [[खयाल]], ठुमरी, गजल और [[कव्वाली]]। |
− | राज्य के उल्लेखनीय वास्तुशिल्प स्मारकों में [[अमृतसर]] में स्थित [[स्वर्ण मंदिर]] (हरमंदिर) है, जो उत्तर मुग़ल शैली के अनुरूप निर्मित है। इसके गुंबद और ज्यामितीय रुपांकन जैसी प्रमुखताएं सिक्खों के अधिकांश पूजा स्थलों में दुहराई गई हैं। स्वर्ण मंदिर में सोने की [[जरदोजी]] का काम, बूटेदार फलक और रंगीन पत्थरों से सज्जित संगमरमर की दीवारें हैं। अन्य महत्त्पूर्ण भवनों में अमृतसर में [[जलियाँवाला बाग़]] में शहीद स्मारक, दुर्गियाना (अमृतसर में भी) का हिन्दू मंदिर, कपूरथला में स्थित मूर शैली की मस्जिद और भटिंडा तथा बहादुरगढ़ में स्थित पुराने क़िले हैं। | + | राज्य के उल्लेखनीय वास्तुशिल्प स्मारकों में [[अमृतसर]] में स्थित [[स्वर्ण मंदिर]] (हरमंदिर) है, जो उत्तर मुग़ल शैली के अनुरूप निर्मित है। इसके गुंबद और ज्यामितीय रुपांकन जैसी प्रमुखताएं सिक्खों के अधिकांश पूजा स्थलों में दुहराई गई हैं। स्वर्ण मंदिर में [[सोना|सोने]] की [[जरदोजी]] का काम, बूटेदार फलक और रंगीन पत्थरों से सज्जित संगमरमर की दीवारें हैं। अन्य महत्त्पूर्ण भवनों में अमृतसर में [[जलियाँवाला बाग़]] में शहीद स्मारक, [[दुर्गियाना मंदिर|दुर्गियाना]] (अमृतसर में भी) का हिन्दू मंदिर, कपूरथला में स्थित मूर शैली की मस्जिद और [[भटिंडा]] तथा बहादुरगढ़ में स्थित पुराने क़िले हैं। |
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[[पंजाब]] में मेले एवं त्योहार इस प्रकार है- | [[पंजाब]] में मेले एवं त्योहार इस प्रकार है- | ||
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*[[दीपावली]] | *[[दीपावली]] | ||
*[[होली]] | *[[होली]] | ||
− | * | + | *मुक्तसर का माघी मेला |
*क़िला [[रायपुर]] में ग्रामीण खेल | *क़िला [[रायपुर]] में ग्रामीण खेल | ||
− | *पटियाला का बसंत | + | *[[पटियाला]] का बसंत |
*[[आनंदपुर साहिब]] का होला मोहल्ला | *[[आनंदपुर साहिब]] का होला मोहल्ला | ||
*तलवंडी साबू में [[वैशाखी]] | *तलवंडी साबू में [[वैशाखी]] | ||
− | *सरहिंद में रोज़ा शरीफ़ पर [[उर्स]], | + | *सरहिंद में रोज़ा शरीफ़ पर [[उर्स]], छप्पर मेला |
*[[फ़रीदकोट]] में शेख़ फ़रीद आगम पर्व | *[[फ़रीदकोट]] में शेख़ फ़रीद आगम पर्व | ||
*गांव रामतीरथ में राम तीरथ | *गांव रामतीरथ में राम तीरथ | ||
*सरहिंद में शहीदी ज़ोर मेला | *सरहिंद में शहीदी ज़ोर मेला | ||
*हरि वल्लभ संगीत सम्मेलन | *हरि वल्लभ संगीत सम्मेलन | ||
− | *जालंधर में बाबा सोदाल आदि | + | *[[जालंधर]] में बाबा सोदाल आदि |
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Revision as of 11:27, 7 February 2012
[[chitr:Bhangra.jpg|thumb|250px|bhaang da, panjab
Bhangra., Punjab]]
lokagit, prem aur yuddh ke nrity mele aur tyohar, nrity, sangit tatha sahity is rajy ke saanskritik jivan ki visheshataean haian. panjabi sahity ki utpatti ko 13 vian shatabdi ke musalaman soophi sant shekh pharid ke rahasyavadi aur dharmik dohoan tatha sikkh panth ke sansthapak, 15vian-16vian shatabdi ke guru nanak se jo da ja sakata hai. jinhoanne pahali bar kavy abhivyakti ke madhyam ke roop mean vyapak rup se panjabi bhasha ka upayog kiya. 18vian shatabdi ke uttararddh mean panjabi sahity ko samriddh banane mean varis shah ki bhoomika atulaniy hai. 20vian shatabdi ke aranbh mean kavi v lekhan bhaee virasianh tatha kavi pooran sianh aur dhani ram chaitrik ke lekhan ke sath hi panjabi sahity ne adhunik kal mean pravesh kiya. hal ke varshoan mean panjabi sanskriti ke vibhinn pahaluoan ko chitrit karane vali vibhinn lekhakoan, kaviyoan aur upanyasakaroan ki bhoomika bhi kafi mahattvapoorn hai. kaviyoan mean sabase prasiddh mohan sianh mahir aur shiv kumar batalavi the; upanyasakaroan mean jasanvatasianh kanval, guradayal sianh aur sohan sianh shital ullekhaniy haian; kulavant sianh virk ek vikhyat lekhak haian. panjab ke gramin jivan ka chitran karane vale sarvashreshth upanyasoan mean se ek jnani guradit sianh ki mera pind hai, jo panjabi sahity ki utkrisht rachana hai.
panjab mean kee dharmik aur mausami tyohar, jaise- dashahara, dipavali, baisakhi aur vibhinn guruoan tatha santoan ki varshagaanth-manae jate haian. bhaang da, jhoomar aur sammi yahaan ke lokapriy nrity haian. panjab ki sthaniy nrity shaili gidda, mahilaoan ki vinodapoorn git-nrity shaili hai. sikkhoan ke dharmik sangit ke sath-sath upashastriy mugal shaili bhi lokapriy hai, jaise khayal, thumari, gajal aur kavvali.
rajy ke ullekhaniy vastushilp smarakoan mean amritasar mean sthit svarn mandir (haramandir) hai, jo uttar mugal shaili ke anuroop nirmit hai. isake guanbad aur jyamitiy rupaankan jaisi pramukhataean sikkhoan ke adhikaansh pooja sthaloan mean duharaee gee haian. svarn mandir mean sone ki jaradoji ka kam, bootedar phalak aur rangin pattharoan se sajjit sangamaramar ki divarean haian. any mahattpoorn bhavanoan mean amritasar mean jaliyaanvala bag mean shahid smarak, durgiyana (amritasar mean bhi) ka hindoo mandir, kapoorathala mean sthit moor shaili ki masjid aur bhatianda tatha bahaduragadh mean sthit purane qile haian.
- tyohar
panjab mean mele evan tyohar is prakar hai-
- dashahara
- dipavali
- holi
- muktasar ka maghi mela
- qila rayapur mean gramin khel
- patiyala ka basant
- anandapur sahib ka hola mohalla
- talavandi saboo mean vaishakhi
- sarahiand mean roza sharif par urs, chhappar mela
- faridakot mean shekh farid agam parv
- gaanv ramatirath mean ram tirath
- sarahiand mean shahidi zor mela
- hari vallabh sangit sammelan
- jalandhar mean baba sodal adi
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