भारत का संविधान- संघ न्या‍यपालिका: Difference between revisions

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;128. उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति-
;128. उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति-
इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी व्यक्ति से, जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है और उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक रूंप से अर्हित है<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 15वाँ|पन्द्रहवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 1963 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थापित।</ref>, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूंप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिससे इस प्रकार अनुरोध किया जाता है, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान, ऐसे भत्तों का हकदार होगा, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे, किन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा, परन्तु जब तक यथापूर्वोक्त व्यक्ति उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूंप में बैठने और कार्य करने की सहमति नहीं दे देता है, तब तक इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली नहीं समझी जाएगी।
इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी व्यक्ति से, जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है और उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक रूंप से अर्हित है<ref>संविधान ([[संविधान संशोधन- 15वाँ|पन्द्रहवाँ संशोधन]]) अधिनियम, 1963 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थापित।</ref>, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूंप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिससे इस प्रकार अनुरोध किया जाता है, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान, ऐसे भत्तों का हकदार होगा, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे, किन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा, परन्तु जब तक यथापूर्वोक्त व्यक्ति उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूंप में बैठने और कार्य करने की सहमति नहीं दे देता है, तब तक इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली नहीं समझी जाएगी।
;129. उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना-
उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी।
;130. उच्चतम न्यायालय का स्थान-
उच्चतम न्यायालय [[दिल्ली]] में अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थानों में अधिविष्ट होगा, जिन्हें [[भारत]] का मुख्य न्यायमूर्ति, [[राष्ट्रपति]] के अनुमोदन से समय-समय पर, नियत करे।
;131. उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता-
इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए-
**(क) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच, या
**(ख) एक ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों और दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच, या
**(ग) दो या अधिक राज्यों के बीच,


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Revision as of 14:02, 15 April 2012

124. उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन-
  • (1) भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा, जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और, जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती है, तब तक, सात-सात से अनधिक अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा।
  • (2) उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा, जब तक वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है, परन्तु मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से सदैव परामर्श किया जाएगा, परन्तु यह और कि-
    • (क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
    • (ख) किसी न्यायाधीश को खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।

(2क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की आयु ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से अवधारित की जाएगी जिसका संसद विधि द्वारा उपबंध करे।[1]

  • (3) कोई व्यक्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूंप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा, जब वह भारत का नागरिक है और-
    • (क) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम पांच वर्ष तक न्यायाधीश रहा है; या
    • (ख) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा है; या
    • (ग) राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता है।

स्पष्टीकरण 1- इस खंड में, "उच्च न्यायालय" से वह उच्च न्यायालय अभिप्रेत है, जो भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग में अधिकारिता का प्रयोग करता है, या इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय प्रयोग करता था।
स्पष्टीकरण 2- इस खंड के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति के अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात ऐसा न्यायिक पद धारण किया है, जो ज़िला न्यायाधीश के पद से अवर नहीं है।

  • (4) उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा, जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है।
  • (5) संसद खंड (4) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और साबित करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन कर सकेगी।
  • (6) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने के पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्ति व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
  • (7) कोई व्यक्ति, जिसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूंप में पद धारण किया है, भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकारी के समक्ष अभिवचन या कार्य नहीं करेगा।
125. न्यायाधीशों के वेतन आदि-
  • (1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा, जो संसद, विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है, तब तक ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।[2]
  • (2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे विशेषाधिकारों और भत्तों का तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का, जो संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर अवधारित किए जाएँ और जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं किए जाते हैं, तब तक ऐसे विशेषाधिकारों, भत्तों और अधिकारों का जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा, परन्तु किसी न्यायाधीश के विशेषाधिकारों और भत्तों में तथा अनुपस्थिति छुट्टी या पेंशन के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
126. कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति-

जब भारत के मुख्य न्यायमूर्ति का पद रिक्त है या जब मुख्य न्यायमूर्ति, अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है, तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा एक न्यायाधीश, जिसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।

127. तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति-
  • (1) यदि किसी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति प्राप्त न हो तो भारत का मुख्य न्यायमूर्ति राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात, किसी उच्च न्यायालय के किसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक रूंप से अर्हित है और जिसे भारत का मुख्य न्यायमूर्ति नामोदिष्ट करे, न्यायालय की बैठकों में उतनी अवधि के लिए, जितनी आवश्यक हो, तदर्थ न्यायाधीश के रूंप में उपस्थित रहने के लिए लिखित रूंप में अनुरोध कर सकेगा।
  • (2) इस प्रकार नामोदिष्ट न्यायाधीश का कर्तव्य होगा कि वह अपने पद के अन्य कर्तव्यों पर पूर्विकता देकर उस समय और उस अवधि के लिए, जिसके लिए उसकी उपस्थिति अपेक्षित है, उच्चतम न्यायालय की बैठकों में, उपस्थित हो और जब वह इस प्रकार उपस्थित होता है, तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियाँ और विशेषाधिकार होंगे और वह उक्त न्यायाधीश के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा।
128. उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति-

इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी व्यक्ति से, जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है और उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यक रूंप से अर्हित है[3], उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूंप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिससे इस प्रकार अनुरोध किया जाता है, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान, ऐसे भत्तों का हकदार होगा, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगे, किन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा, परन्तु जब तक यथापूर्वोक्त व्यक्ति उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूंप में बैठने और कार्य करने की सहमति नहीं दे देता है, तब तक इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली नहीं समझी जाएगी।

129. उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना-

उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी।

130. उच्चतम न्यायालय का स्थान-

उच्चतम न्यायालय दिल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थानों में अधिविष्ट होगा, जिन्हें भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, राष्ट्रपति के अनुमोदन से समय-समय पर, नियत करे।

131. उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता-

इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए-

    • (क) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच, या
    • (ख) एक ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों और दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच, या
    • (ग) दो या अधिक राज्यों के बीच,


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संविधान (पन्द्रहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा अंत:स्थापित।
  2. संविधान (चौवनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1986 की धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  3. संविधान (पन्द्रहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 3 द्वारा अंत:स्थापित।

बाहरी कड़ियाँ

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